अब तक,
दोस्ती से बेखबर हम,
हर राह चलते को,
दोस्त कह लिया करते थे।
और वह
कुछ दूर संग चल कर,
मुड़ जाता किसी मोड़ पर,
या पा कर हमारी राहों में कांटे,
साथ छोड़ देता वहीं पर।
हँसता, खिलखिलाता,
देख के ज़ख्मी जिगर,
थाम लेता बांह किसी और की,
पा के फूलों की डगर।
और हम
डर कर तन्हाईयों से,
दर्द की गहराईयों से,
फिर किसी राह चलते को
दोस्त कह लिया करते थे।
मगर, जब से
तुम आये हो ज़िंदगी में,
हमने जाना
कि दोस्ती क्या है।
हमारे लहुलुहान तलवों पर
मरहम लगाते,
चल रहे हो हमारे संग
दोस्ती निभाते।
कभी करते हो छाँव,
अपने आँचल की,
कभी रखकर सर
अपने काँधे पे
देते हो थपकियाँ।
हमारे आंसुओं को अपनी
आंखों में ले कर,
हमारे लबों पर
ज़रा मुस्कुराहट देकर,
ऐ दोस्त जब से
तुम आये हो ज़िंदगी में,
हमने जाना,
कि दोस्ती क्या है।
पथरीली डगर पर
लगी अब जो ठोकर,
खबर है हमे, तुम
संग चल रहे हो।
कितनी भी काली
हो जाये रैना,
राह मेरी,
रौशन कर रहे हो।
अब न हमें
आरज़ू सैकड़ों की,
कि बस एक तुम
ज़िंदगी की ज़रूरत।
न है अब गिला
हमको कोई खुदा से,
कि माँगा जो रब से,
बनी वह हकीकत।
क्योंकि, ऐ दोस्त,
जब से तुम आये हो ज़िंदगी में,
हम ने जाना,
कि दोस्ती क्या है।