आयी है क्योंकर दिवाली,
क्यों जले हैं दीप घर में?
मन तो तेरा है अमावस,
मन तो तेरा नागफन है।
जहर भरके इस हृदय में,
तू उगलने को चला है।
आज क्यों लक्ष्मी को पूजे,
कल तो मसला था कलि को।
आज कर जोड़े खड़ा है,
कोख में मारा उसीको।
गूँज है क्यों आरती की,
होठों पे तेरे भजन है।
मन तो तेरा है अमावस,
मन तो तेरा नागफन है।
कर के पावन इस हृदय को,
जिस घड़ी तू खुद मिटेगा,
हो किसी के घर उजाला,
बन के दीपक स्वयः जलेगा।
हर लम्हा होगी वो पूजा,
हर लम्हा होंगे भजन भी।
दीन को देने को कांधा,
हाथ तेरे जो उठेंगे,
आरती उस पल में होगी,
तू सुनेगा शंख-ध्वनि भी।
जिस लम्हा भूखे को देखा,
अपना भोजन कर के अर्पण,
समझेगा तू धन्य खुद को,
भोग लग जाये वहीं पर।
होगी तब लक्ष्मी प्रसन्न भी,
होगी पूजा तब सफल भी।
जिस भी दिन, बेटी किसी की,
तुम यों सर पे हाथ रखो,
ओ दुआ निकले ये दिल से,
मेरी उम्र लग जाये उसको।
होंगे दर्शन देवी के तब,
उस लम्हे को कहना जीवन,
इच्छा तेरी पूर्ण होगी,
पूजा ये सम्पूर्ण होगी,
भक्त होगा तू प्रथम ही,
होगा मंदिर तेरा मन भी,
हर लम्हा होगी वो पूजा,
हर लम्हा होंगे भजन भी।
आज घर रौशन भी कर ले,
देवी का न आगमन है,
मन तो तेरा है अमावस,
मन तो तेरा नागफन है।
जहर भरके इस हृदय में,
तू उगलने को चला है।