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मजबूरी

रस्ते पे भिखारिन,
पिचका पेट,
और सामने,
मोटा सेठ।

मैली-सी धोती,
सटी सटी,
तन पे चोली,
फटी फटी,
सिमट गयी,
अपने ही आप में,
जब नज़र सेठ की,
नहीं हटी।
पूछ रहा,
क्या तेरा रेट,
खङा सामने,
मोटा सेठ।

उस की आंखों,
में प्यास है,
इसकी आखें,
उदास हैं।
इसके होंठ हैं,
सूखी पपड़ी,
उनपे तृष्णा,
का राज है।
आ कार में,
ना कर लेट,
खङा सामने,
मोटा सेठ।

लाल को मेरे,
ज़रा सा दूध,
लाचार मरद को,
दो रोटी,
और नहीं कुछ,
मेरा रेट,
रब्बा बन कर,
आया सेठ.



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मजबूरी

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