गालों पे तुम्हारे, जो गुल पलाश के हैं,
हारोगी फिर भी तुमही, पत्ते ये ताश के हैं.
न अब मुझे बुलाना, कुछ रोज़ भूल जाना,
इतना नहीं क्या काफ़ी, अब दिन अवकाश के हैं.
बरखा ने कुछ न पूछा, ओ गयी बरस छमाछम,
होली पे यूं नशीले, नैना आकाश के हैं.
न जाम में नशा है, अमृत भी न सुहाए,
महबूब हम तो कायल, तेरे बाहुपाश के हैं.
छोड़ो यह ताजमहल, अपनी कुटी सजाओ,
बने प्रीत के ये मन्दिर, पत्थर तराश के हैं.