काश कि मैं एक पंछी होता,
नील गगन में मैं उड़ जाता,
दोनों पंख फैला कर अपने,
आसमान को छू कर आता।
जब तुम छत पर आती दीदी,
अपने हाथ में लेकर रोटी,
फुर्र से आता, चूँ चूँ करता,
छीन के रोटी फिर मुड़ जाता।
चाहती तुम दोपहर को सोना,
शोर माचाकर तुम्हें जगाता,
झांकती जब खिड़की से तुम माँ,
चूँ चूँ कर के तुम्हें चिड़ाता।
आसमान में जब उड़ता तो,
चन्दा से भी मिलकर आता,
और तुम्हारे लिए मैं दादी,
चोंच में तारे भरकर लाता.