Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

बस कभी कभी.....

प्रियम,
तुम मेरे अन्दर छुपी
उस सोलह साल की
अल्हड़, नादान लड़की को
क्यों नहीं देख पाते,
जो कभी कभी तुमसे
बढ़ती उम्र के
पके बालों-सा
परिपक्व प्रेम नहीं,
बल्कि
कच्ची उम्र का
वो पहला
मदमस्त प्यार चाहती है,
जो मेरे
सिसकते सपनों को
फिर एक बार
सतरंगी रंगों से सजा दे,
जो मूझे
पंख फैला कर उड़ने को
खुला आसमान दे,
और
अपने आप से ही
फिर
प्यार करना सिखा दे।

प्रियम,
मैं जानती हूँ,
अब हमारी वो उम्र नहीं रही,
मगर फिर भी,
तुम मेरे अंदर छुपी
उस सोलह साल की
अल्हड़, नादान लड़की को
क्यों नहीं देख पाते
जो कभी कभी चाहती है
की तोड़ कर सारे बन्धन उम्र के
एक बार तुम भी
चुरा कर कुछ लम्हे ज़रा वक़्त से
बचाकर दोस्तों से नज़र,
मेरी और देखो
यूं शरारत से
कि दिल की धड़कन
सुनाई दे तुमको भी।
मेरे झुर्रिदार चेहरे पे
आ जाए एक चमक,
और में शरमा कर
यह कहती हुई उठ जाऊं,
कि लगता है
दरवाज़े पर कोई आया है।

प्रियम,
मैं मानती हूँ,
तुमसे अच्छा हमसफ़र
और कोई नहीं मेरे लिए,
मगर फिर भी
तुम मेरे अन्दर छुपी
उस सोलह साल की
अल्हड़ नादान लड़की को
क्यों नहीं देख पाते
जो कभी कभी,
बस कभी कभी
यह चाहती है
की तुम और मैं
जीवन की सारी रस्में तोड़ कर,
उम्र के इस कसते
दायरे को छोड़ कर,
बस एक-दूसरे में,
इस कदर खो जाएं,
की हमारा परिपक्व प्रेम कभी
बूढा न होने पाये।



This post first appeared on अक्स, please read the originial post: here

Share the post

बस कभी कभी.....

×

Subscribe to अक्स

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×