लेटी तो थी सोने को,
पर मन ये भटक गया,
कहाँ कहाँ की कैसी कैसी
यादों में अटक गया।
एक सखी जो स्कूल में मेरे
साथ में पढ़ती थी,
बात बात में रूठा करती,
मुझसे लड़ती थी।
फिर भी थी मेरी हमजोली,
उसके संग की आँख-मिचौली,
कैसे वक़्त सरक गया......
आज उसे मिलने को मेरा,
दिल भी तरस गया।
एक प्रोफेसर जो हमको
कॉलेज में पढाते थे,
कैंटीन में बैठ जिन्हें हम
खूब चिढ़ाते थे।
वड़ा-पाव, इडली ओ डोसे,
आइसक्रीम ओ' तीखे समोसे,
सब कुछ बदल गया......
आज उन्हीं यादों में मेरा,
मन क्यों भटक गया।
एक ख्वाब जिसे मैंने अपने
नयन बसाया था,
आसमान छूने की खातिर,
कदम बढाया था।
कब छूटा ख़्वाबों का दामन,
नून तेल में सिमटा जीवन,
धरती पर पटक गया.....
आज मेरे नैनों से कोई
बादल बरस गया।