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'काँच के शामियाने ' पर मंजू रॉय जी की टिप्पणी



Manju Roy ji अंग्रेजी साहित्य की प्राध्यापिका हैं ।उन्होंने विश्व साहित्य पढ़ रखा है और पढ़ाती भी हैं । 'काँच के शामियाने ' पर उनकी प्रतिक्रिया पढ़ते वक्त मन थोडा आशंकित भी था और यह जानने की उत्सुकता भी थी कि उन्हें किताब कैसी लगी ।उन्हें किताब पसंद आई, ये देख सचमुच धन्य हो गई मैं :)

'बिहार की बेटी का एक कृतज्ञता ज्ञापन है ये किताब.'..यह पढ़कर तो नतमस्तक हूँ, मंजू दी
आप जैसी विदुषी की प्रतिक्रिया...लिखने का उत्साह भी बढ़ाती है और एक गहरी जिम्मेवारी का भी अहसास कराती है. ..बहुत शुक्रिया आपका...स्नेह बनाए रखें :)

'काँच के शामियाने '

दो दिन पूर्व रश्मि रविजा द्वारा लिखित उपन्यास,काँच के शामियाने की प्रति मिली।कॉलेज में कुछ व्यस्तता के बावजूद जल्दी से उपन्यास ख़त्म किया,जो मेरी पुरानी आदत है।

उपन्यास पढ़कर ऐसी अनुभूति हुई कि कितनी ही जया मेरे इर्द गिर्द हैं जो उपन्यास की नायिका की तरह परिवार,समाज और बच्चों की सोंचते सोंचते काफी समय बाद साहस करती हैं एक ऐसे विवाह से बाहर आने की जहाँ उन्हें दुःख,पीड़ा,अपमान,अवमानना,शारीरिक प्रताड़ना और आंसुओं के सिवा कुछ नहीं मिला।मुझे लगता रहा जया ने इतनी देर क्यों की, फिर लगा इसके लिए हम और हमारा समाज जिम्मेवार है जो एक लड़की को घुट्टी में यही पिलाता है कि तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है और शादी को बचाये रखने की जिम्मेदारी औरत की है,मर्द की नहीं।एक लड़की तब तक बर्दाश्त करती है जब तक उसके दर्द की इन्तहा न हो जाये।

जया के पति राजीव की तरह काफी पुरुष हैं जो इस एहसास के साथ बड़े हुए हैं कि वो लड़का है,जिसके लिए सात खून माफ़।कमाऊ पूत के अवगुण परिवार नहीं देखता।

उपन्यास में वर्णित जगहें,हाजीपुर,सीतामढ़ी,बेगुसराय,खगड़िया सब इर्द गिर्द हैं मेरे और वहां मैं जाती रही हूँ।
रश्मि ने जिस बारीकी से कॉलोनी लाइफ का चित्रण किया है वह काबिलेतारीफ है।देसी बोली जो इधर बोली जाती है,वह कहानी को और प्रमाणिक बनाती है।

मुम्बई रहकर भी रश्मि ने अपने प्रदेश को अपनी यादों में बसा रखा है,बिहार की बेटी का एक कृतज्ञता ज्ञापन है ये किताब।इसे पढ़ कर यदि एक जया भी अपनी जिंदगी को दुबारा शुरू करने की हिम्मत कर ले तो वो रश्मि की कामयाबी होगी। हमें अपनी बेटियों को बताना होगा कि हम उन्हें भार नहीं समझते और उनके हर फैसले में उनके साथ हैं।बेटियाँ इस दुनिया की खूबसूरती हैं।उम्मीद है रश्मि की दूसरी किताब जल्द ही सामने होगी।

बहुत बहुत बधाई,रश्मि, तुमने एक बेटी होने का फर्ज बहुत खूबसूरती से अदा किया है।


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