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कारगिल हीरो कैप्टन विजयंत थापर

'कारगिल हीरोज़' पर लिखी एक अंग्रेजी किताब के कुछ चैप्टर का हिंदी अनुवाद किया था ।हिंदी में यह किताब कब और कहाँ से प्रकाशित हुई इसकी कोई सूचना नहीं मिली ।पर कुछ लोगों तक उन जाबांजों की कहानी और उनके विजय अभियान का विवरण पहुंचा होगा ।इतना सन्तोष ही काफी है ।उन सभी वीरों को शत शत नमन

उसी अनुवाद में से 'कैप्टन विजयंत थापर' पर लिखे आलेख का अंश ।

कैप्टन विजयंत थापर का जन्म 26 दिसंबर 1976 को हुआ था। उस वक्त उनके पिता कर्नल वी .एन.थापर की पोस्टिंग पठानकोट में बख्तरबंद ब्रिगेड ( armoured brigade ) के हेडक्वार्टर्स में थी। उनकी माँ तृप्ता थापर एक शिक्षिका हैं। उस ब्रिगेड के रेजिमेंट में उन दिनों विजयंत नामक टैंक थे। उन्हीं टैंक के नाम पर उनके माता-पिता ने उनका नाम विजयंत रखा ।
विजयंत जिनके घर का नाम रॉबिन था की शिक्षा देश के विभिन्न शहरों में हुई।शिक्षा पूरी करने के बाद 1997 में इन्डियन मिलटरी एकेडमी (IMA ) द्वारा जेंटलमैन कैडेट के रूप में उनका चुनाव हो गया। 23 दिसंबर 1998 को ग्वालियर में कैप्टन विजयंत ने अपनी बटालियन 2 RAJ RIF को ज्वाइन किया .उन्हें जम्मू और कश्मीर जाने का आदेश मिला, जहाँ की घाटी में काउंटर इंसरजेंसी ऑपरेशन की ट्रेनिंग दी जा रही थी ।
कारगिल में पाकिस्तान घुसपैठ रोकने के लिए सेना ने अपनी तैयारी शुरू कर दी ।
2 RAJ RIF की बटालियन को 25 मई 1999 से सोनमर्ग में ट्रेनिगं दी जाने लगी। ताकि 16000 फीट की उंचाई पर स्थित टोटोलिंग रिज़ पर किये जाने वाले युद्ध के लिए वे खुद को ढाल सकें।
'कैप्टन विजयंत भी ' टोटोलिंग टॉप' पर विजय पताका फहराने वाले सैनिक दल के सदस्य थे जिस अभियान का नाम था "बरबाद बंकर " और इसके तहत भारतीय सेना ने 12/13 जून 1999 को पाकिस्तानी सेना के उत्तरी लाईट इन्फेंट्री द्वारा कब्ज़ा किये बंकर को नेस्तनाबूद कर विजय हासिल की थी।
यह भारतीय सेना की पहली विजय थी। सैनिक बहुत ही खुश और जोश में भरे हुए थे। कैप्टन विजय भी अति उत्साहित थे। टोटोलिंग टॉप पर अधिकार जमाने के बाद 20 जून 1999 को इस यूनिट को एक पहाड़ी इलाका 'जिसे "ब्लैक रॉक्स " का नाम दिया गया पर आक्रमण करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी। यह इलाका 'टाइगर हिल ' और "टोटोलिंग टॉप " के बीच में था। इसे इलाके को भी तीन भागों में विभक्त किया गया। "नौल' (Knoll ) , "थ्री पिम्पल्स (Three Pimples) , और लोन हिल (Lone Hill ) . "A " कम्पनी को जिसका संचालन मेजर आचार्य और कैप्टन विजयंत कर रहे थे , नॉल (Knoll) पर कब्ज़ा करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी . नॉल पाकिस्तानियों का बहुत ही सुरक्षित ठिकाना था और अस्त्र-शास्त्रों का बड़ा भण्डार भी था। इस ठिकाने तक पहुँचने का रास्ता बहुत ही संकरा सा था और जिसपर लगातार गोलियों की बौछार होती रहती थी। ये रास्ता बहुत ही घुमावदार था और इसके दोनों तरफ गहरी घाटियाँ थीं।
कैप्टन विजयंत के प्रिय मित्र मेजर आचार्य ने विजयंत के प्लाटून को इस आक्रमण का नेतृत्व करने की जिम्मेवारी सौंपी। दुश्मन के ठिकाने से 800 मीटर की दूरी पर से उन्होंने अपने बटालियन द्वारा गोलीबारी करके विजयंत की यूनिट को कवर देने का प्लान भी बनाया। जिस से दुशमनो को अपना सर छुपाना पड़े और कैप्टन विजयंत के प्लाटून के बढ़ते कदम उन्हें नज़र न आयें।
कैप्टन विजयंत ने अपने प्लाटून द्वारा आक्रमण का समय 8 बजे रात को तय किया। इसे H -Hour कहा गया। यह पूर्णिमा की रात थी और कैप्टन विजयंत को लगा, चंद्रमा की रौशनी में उनकी यूनिट दुश्मन के ठिकाने तक पहुँच जायेगी। परन्तु दुश्मनों की तरफ से भारी गोलीबारी की गयी .प्लाटून के चारो तरफ दुश्मनों के आर्टिलरी फायर गोले बरसने लगे .और प्लाटून के कदम वहीँ रुक गए। भारतीय सैनिक जान बचाने के लिए तितर-बितर हो गए।
कमांडिंग ऑफिसर दूर से ही इस आक्रमण का जायजा ले रहे थे . उन्हें लगा, ये आक्रमण बुरी तरह से असफल हो गया। कैप्टन विजयंत और उनकी प्लाटून दिया गया टास्क पूरा नहीं कर पायी।
यह सब देखकर कैप्टन विजयंत बहुत आहत हुए और अपनी जान की सुरक्षा की परवाह किये बिना गोलियों की बौछारों के बीच इस चट्टान से उस चट्टान पर जम्प करते हुए अपने साथियों को आवाजें लगाते रहे ,उनका उत्साह बढाते रहे, उनमे जोश भरते रहे .आखिरकार वे उस बटालियन के 19 लोगो को जमा करने में सफल हो गए। उनके मित्र मेजर आचार्य इस युद्ध में शहीद हो गए थे ।
मेजर आचार्य की शहादत ने कैप्टन विजयंत को दुश्मनों से बदला लेने के लिए प्रतिबद्ध कर दिया। अब उनके लिए रुकना बिलकुल असम्भव था। वे बिलकुल तीखी चढ़ाइयों वाले संकरे रास्ते पर किसी तरह बढ़ रहे थे। चारो तरफ दुश्मन के तोप बंदूकें आग के गोले बरसा रहे थे . उनके द्वारा फेंके हुए ग्रेनेड के शेल, कैप्टन विजयंत और इन सैनिकों के आस-पास गिर रहे थे . आखिरकार नॉल (Knoll ) पर उन्हें पैर जमाने को थोड़ी सी जगह मिल गयी।
कैप्टन विजयंत जिन्हें सब प्यार से रॉबिन बुलाते थे , ने देखा नायक तिलक सिंह अकेले एक लाईट मशीनगन (LMG ) लेकर दुशमनो पर गोलियां बरसा रहा है। उन्होंने एक शहीद हुए साथी की मशीनगन उठायी और बीस मीटर की दूरी से दुश्मनों पर आक्रमण जारी रखा। दोनों तरफ से गोलियां चलनी जारी थीं। आधी रात के बाद युद्ध में थोडा सा ठहराव आया। रॉबिन उठकर दुश्मनों के ठिकाने की तरफ भागे उसी वक़्त दुशमनों ने उनपर गोलियों की बौछार कर दी। रॉबिन के हाथ पेट में कई गोलियां लगीं,फिर भी वे रेंगते हुए दुश्मनों पर हथगोले फेंकते रहे .और अपने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। पर उनकी शहादत बेकार नहीं गयी। उनके बलिदान से प्रेरणा पाकर उनकी बटालियन के सैनिक दुशमनो के ठिकाने पर पहुँच गए और दुश्मनों को मार गिराया। नॉल (Knoll ) बेस पर भारतीय सेना ने अधिकार कर लिया।
दुशमनो के विरुद्ध इतनी अभूतपूर्व वीरता दिखाने और उन्हें परास्त करने के लिए कैप्टन विजयंत को मरणोपरांत 'वीर चक्र ' प्रदान किया गया

जम्मू काश्मीर में , 'काउंटर इंसरजेंसी ऑपरेशन' के दौरान कैप्टन विजयंत से जुड़ी एक बहुत ही मार्मिक घटना हुई जिसने सबके दिल में उनके लिए विशेष जगह बना ली । 'ट्रास' गाँव' के एक स्कूल में कैप्टन विजयंत, एक छोटी सी लड़की से मिले। रुखसाना छः सात साल की एक बच्ची थी जिसके पिता एक गरीब मजदूर थे . आतंकवादियों ने सेना के मुखबिर होने के शक में बहुत ही बेदर्दी से रुखसाना की माँ और रुखसाना की आँखों के सामने ही उसके पिता का क़त्ल कर दिया। इस घटना से रुखसाना को ऐसा शॉक लगा कि उस छोटी सी बच्ची की आवाज ही चली गयी।

उस वक़्त कैप्टन विजयंत का दल उस स्कूल के पास ही ठहरा हुआ था . उस बच्ची की ऐसी हालत देखकर विजयंत का ह्रदय पिघल गया और उन्होंने उस बच्ची से दोस्ती कर ली। वे ज्यादा से ज्यादा समय उस बच्ची के साथ बिताने लगे . उसके साथ खेलते, उसे चौकलेट देते, मिठाई देते . कैप्टन विजयंत के इस प्यार भरे व्यवहार का असर हुआ और लड़की ने धीरे धीरे वापस बोलना शुरू कर दिया। जब उन्हें घर जाने की छुट्टी मिली तो उन्होंने अपनी माँ से कहा , एक छोटी बच्ची के लिए कुछ कपडे खरीद कर रखें। वे जब वापस ड्यूटी पर लौटेंगे तो लेते आयेंगे। पर दुर्भाग्यवश, लड़ाई छिड़ गयी और कैप्टन विजयंत की छुट्टी कैंसल हो गयी। वे घर नहीं जा सके। उन्होंने अपने माता-पिता को चिट्ठी लिख कर कहा कि अगर वे युद्ध से जीवित न लौटें तो रुखसाना के लिए वे लोग हर महीने 50 रुपये भेज दिया करें।

कैप्टन विजयंत के शहीद हो जाने के बाद उनके माता-पिता , उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए नियमित रूप से रुखसाना को पैसे भेजते रहे। दस साल के बाद रुखसाना ने कैप्टन विजयंत के माता-पिता से उनके दिल्ली स्थित नोएडा वाले फ़्लैट में मिलकर उनकी नियमित मदद का शुक्रिया अदा किया .



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