Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

हमारी संवेदनायें बढ़ाती फिल्म ' वेटिंग '

हम सबको एक ही जिंदगी मिली होती है और हम दुनिया के सारे अनुभव नहीं ले सकते .किताबें और फ़िल्में, हमसे बिलकुल अलग परिस्थिति में जी रहे लोगों की ज़िन्दगी की झलक दिखाती हैं और दूसरों के प्रति हमारी संवेदनशीलता बढ़ाती हैं.

फिल्म 'वेटिंग' में अलग उम्र, अलग बैकग्राउंड के दो लोग एक सी अंतहीन प्रतीक्षा में शामिल हैं . दोनों के जीवनसाथी कोमा में हैं .दोनों अपने जीवनसाथी के होश में आने का इंतज़ार कर रहे है, पर उम्र के हिसाब से दोनों का नजरिया अलग है. शिव (नसीरुद्दीन शाह ) चालीस वर्ष साथ रही, अपनी पत्नी को हर हाल में होश में आते देखना चाहते हैं. पत्नी आठ महीने से कोमा में है, पर उन्होंने आस नहीं छोड़ी है. डॉक्टर ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं होते, उनके ठीक होने की किसी सम्भावना से इनकार करते हैं पर शिव सैकड़ों मेडिकल जर्नल पढ़ डालते हैं और डॉक्टर से पत्नी के ऑपरेशन के लिए आग्रह करते है.कई उदाहरण देते हैं कि अमुक को इतने वर्षों बाद होश आ गया था .

.करीब पच्चीस वर्षीया तारा (कल्कि) की शादी के कुछ हफ्ते ही हुए थे और पति का एक्सीडेंट हो गया. टेनिस खेलने वाले ,मैराथन में दौड़ने वाले पति के लिए जब डॉक्टर बताते हैं कि ऑपरेशन के बाद हो सकता है वह कभी चल फिर बोल नहीं पाए तो तारा ऑपरेशन के लिए मना कर देती है. पर जब डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं तो नास्तिक तारा, जो मंदिर में हाथ नहीं जोडती थी,प्रसाद नहीं लेती थी ,दौड़ते हुए,जाकर मंदिर के सामने खड़ी हो जाती है. खुद से सवाल भी करती है ,"क्या मैराथन में दौड़ते व्यक्ति को व्हीलचेयर पर बैठे देख, प्यार बदल जाना चाहिए .प्यार सच्चा है तो हर हाल में होना चाहिए'. प्यार की खातिर दोनों ने अपने अपने माता-पिता को नाराज़ कर शादी की थी.

फिल्म का कथानक बहुत गंभीर है पर फिल्म कहीं से भी बोझिल नहीं होती. . हॉस्पिटल में शिव और तारा मिलते हैं और बार बार जेनरेशन गैप सामने आ जाता है. आज की पीढ़ी की तारा ,हर वाक्य में F वर्ड बोलती है और शिव असहज हो जाते हैं . उनकी असहजता और तारा के साथ दोस्ती में F वर्ड बोलने की कोशिश दर्शकों को हंसा देती है. फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं ,जब पूरा हॉल हंस पड़ता है. तारा के पति के ऑफिस का एक कर्मचारी जो तारा की सहायता के लिए आता है ,उसके साथ कोई ना कोई रोचक स्थिति आ ही जाती है.
तारा आज की पीढी की तरह जल्दबाज़ है , उस से इंतज़ार नहीं होता वह शिव से पूछती है, ऐसी स्थिति में भी इतने zen (शांत ) कैसे हो ?' और शिव बताते हैं...इतना गहरा दुःख होने पर सबसे पहली स्थिति नकारने की होती है, फिर गुस्सा आता है ,फिर स्वीकार करना और उसके बाद डिप्रेशन .डिप्रेशन सबसे खतरनाक स्थिति होती है, उसमें बह गए तो जिंदगी बर्बाद और उबर गए तो फिर zen कि स्थिति में अ आजाते हैं .
फिल्म में सोशल मीडिया पर भी कटाक्ष है .तारा कहती है ,मेरे दो हज़ार फेसबुक फ्रेंड्स हैं, ट्विटर पर पांच हज़ार फौलोवर्स हैं ,कुछ भी उलटा सीधा लिखती हूँ ढाई सौ लाइक्स आ जाते हैं पर आज इस दुःख की घड़ी में मैं बिलकुल अकेली हूँ . शिव भावहीन चेहरे से पूछते हैं ,'ट्विटर क्या है ' तारा बताती है...'एक तरह का नोटिसबोर्ड है' :)
 
उसके अन्तरंग मित्र भी अपनी अपनी उलझनों में फंसे हुए हैं और नहीं आ पाते .एक सहेली कुछ दिनों बाद आती भी है तो उसका बेटा बीमार पड़ जाता है और उसे वापस जाना पड़ता है. फिल्म में एक इशारा भी है...'सुख के सब साथी हैं...दुःख का ना कोई .'
डॉक्टर्स की मजबूरी भी बयां हुई है कि कैसे अपने आस-पास मरीजों के रिश्तेदारों का दुःख देखते हुए कैसे उसमें शामिल ना हों और निर्लिप्त रहें. डॉक्टर रजत कपूर अपने जूनियर्स को एक तरह से ट्रेन करते हैं हैं कि मरीज के परिजनों को स्थिति कैसे बताई जाए ,उसमें कितना अभिनय हो, कितना सच .
हॉस्पिटल और इंश्योरेंस कम्पनी की सांठगांठ की तरफ भी हल्का सा इशारा है .पैसे वाले मरीज के ऑपरेशन के लिए वे तुरंत तैयार हो जाते हैं जबकि दूसरों को टालते रहते हैं .आम जन की मजबूरी भी बताई है..'अपना घर गिरवी रख दिया ...सारी जमा पूंजी खर्च कर दी...बढती उम्र की वजह से लोन नहीं मिल सकता और आगे महंगा इलाज जारी रखना मुश्किल हो जाता है.

शायद तारा के नई पीढी की होने की वजह से पूरी फिल्म अंग्रेजी में ही है और हिंदी बोलते जैसे बीच बीच में अंग्रेजी का एकाध वाक्य बोला जाता है .वैसे ही बीच में कहीं कहीं हिंदी में डायलॉग हैं . कोची में स्थित होने के कारण मलयालम के भी कुछ शब्द हैं . फिल्म में 'F' वर्ड की भरमार है . हमलोग आश्चर्य कर रहे थे फिल्म को A सर्टिफिकेट क्यूँ दिया गया है. इस से कहीं ज्यादा तो टी वी पर सबकुछ दिखाया जा रहा है. पर हाल के विवाद देखते हुये समझ में आया ... इस 'F ' की वजह से ही फिल्म अडल्ट घोषित की गई है.

एक घंटे चालीस मिनट की फिल्म में कई छोटे छोटे बिन्दुओं को छुआ गया है. अनु मेनन का निर्देशन काबिल ए तारीफ़ है . सिर्फ हॉस्पिटल में शूटिंग कर कुछ पात्रों के सहारे अपनी बातें दर्शकों तक पहुंचाने में सफल हुई हैं. नसीरुद्दीन शाह के अभिनय के तो सभी कायल हैं. कल्कि का अभिनय बहुत बढ़िया है. उनका अभिनय बहुत सहज और विश्वसनीय है. छोटे रोल में सहयोगी कलाकारों ने भी बढ़िया काम किया है.



This post first appeared on Apni Unki Sbaki Baate, please read the originial post: here

Share the post

हमारी संवेदनायें बढ़ाती फिल्म ' वेटिंग '

×

Subscribe to Apni Unki Sbaki Baate

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×