ओ समय !
किस रस्ते से तुम जाते हो ?
मुझे वो रास्ता बता दो !
मुझे तुम अपना मित्र बना लो !
मुझे अपने ही साथ ले चलो !!!
मैं जब ७ वीं कक्षा में था इस कविता की रचना की थी मैंने .
अब रचनात्मक कामों के लिए अवकाश की कमी महशुश होती है .
इसे अवकाश की कमी न कह कर प्रेरणा की कमी कहना बेहतर समझता हूँ
मेरी प्रेरणा ::मेरे पिता श्री अनिलचन्द्र ठाकुर ..
किस रस्ते से तुम जाते हो ?
मुझे वो रास्ता बता दो !
मुझे तुम अपना मित्र बना लो !
मुझे अपने ही साथ ले चलो !!!
मैं जब ७ वीं कक्षा में था इस कविता की रचना की थी मैंने .
अब रचनात्मक कामों के लिए अवकाश की कमी महशुश होती है .
इसे अवकाश की कमी न कह कर प्रेरणा की कमी कहना बेहतर समझता हूँ
मेरी प्रेरणा ::मेरे पिता श्री अनिलचन्द्र ठाकुर ..