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एक ग़ज़ल

होश में आगया हूँ इधर/
खुद की करने लगा हूँ कदर //
मिल गयी इतनी ज्यादा ख़ुशी /
डबदबाने लगी है नज़र//
रात तकियों ही तकियों कटी /
बज रहा है सुबह का गज़र //
जिनको पूजा था बुत मान कर /
उनसे ही लग रहा आज डर//
रण में कूदे ही जिनके लिए /
शास्त्र लेकर भगे वे ही घर //
उम्र भर जिनपे चलते रहे/
अजनबी क्यों लगीं रहगुज़र?//


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