आप फिर याद आने लगे हैं/
जख्म फिर मुस्कुराने लगें हैं //
धुप की बढ़ रही है तपिश /
फूल फिर गुनगुनाने लगें हैं //
उम्र ज्यों होगई आइना /
अक्स खुद को डराने लगे हैं//
जान बक्शी की किस से अरज ?
दोस्त छूरे चलाने लगे हैं//
मुद्दतों बाद देखा है घर /
पर नयन डबदबाने लगे हैं //
किस से मन की कहें दास्ताँ ?
दर्द फिरसर उठाने लगे हैं //
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