Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

इंसान और इंसानियत

भगवन ने इंसान को बनाया,
और देख के अपनी रचना,
स्वयं पर इतराया,
यूँ तो बनाएं हैं मैंने,
पशु-पक्षी, पेड़-पौधे भी,
पर नवाज़ा है इंसानियत से जिसे,
उसने सबसे लाजवाब
कहलाने का हक़ पाया

इंसान ने इंसानियत दिखाई,
धरती पर कदम रखा,
और पहले दिन ही
दो मछली और एक मुर्गी मार खाई.

मछलियों व् मुर्गियों में,
मच गया हाहाकार,
राजा शेर के दरबार,
जा लगाई गुहार.
"एक प्राणी, जो इंसान कहलाता है,
हम बेजुबानों को
मार कर खाता है".

राजा शेर ने उस इंसान को बुलवाया,
पास बैठाकर बड़े प्यार से समझाया,
"क्यों हो इतने निर्दय, क्यों जानवरों को खाते हो?
क्या बिगाड़ा है इन्होने   तुम्हारा,
जो इनको सताते हो?
तुम हो इंसान, है इंसानियत तुम्हारा धर्म,
जीयो और जीने दो, है यही तुम्हारा कर्म.
पहली गलती थी तुम्हारी, हमने तुम्हे माफ़ किया,
बड़ा दिल है हमारा, हमने ये इन्साफ किया.
जाओ घर अपने, न ये गलती दोहराना,
जान बख्श दी तुम्हारी,
न फिर यहाँ नज़र आना."

इंसान मुस्कुराया, हंसा, फिर खिलखिलाया,
"तू बख्शता है जान मेरी,
सुन के मज़ा आया.
अरे मूर्ख तू क्या कर लेगा,
जो चाहूंगा, सो करूंगा,
घोड़े पर बैठूंगा,
हाथी से काम कराऊंगा ,
तेरी खाल को तो
अपने घर में सजाऊंगा.
गाय का दूध चुरा के,
अपने बच्चों को पिलाऊँगा,
मक्खियों को मार,
उनका शहद भी खा जाऊंगा.
पहनूंगा खाल हिरण की,
और ऊँट को दौड़आऊँगा
भालू के गले में बाँध  के रस्सी,
सड़क पर नाच नचाऊंगा.
करेगा शिकायत भगवान् से,
तेरी अक्ल कम है,
भगवान् तो स्वयं,
मेरी मुठ्ठी में बंद है."

जान गया शेर,
यह नहीं समझ पायेगा,
बख्श दी जान इसकी,
तो गज़ब ढाएगा.
प्रकृति का क़ानून ये नहीं निभाएगा,
आज मारा एक को,
कल सबको सताएगा.

तो शेर को आया गुस्सा,
गरज कर झपटा मानव पर,
सबकी रक्षा हेतु, कदम,
उठाना पड़ा बड़ा दुष्कर.

उधर शहर में, गली गली,
मच गया यह शोर,
जंगल में एक शेर,
हो गया आदमखोर.
सारे इंसान बरछे, भाले,
बन्दूक लेकर आये,
उस प्राणी को मरना होगा,
जो इंसान को खाए.

तब से जानवर मनु की
चाकरी कर रहे,
ज़ालिम इंसान की,
इंसानियत से डर रहे.
और इंसान, अपनी
इंसानियत दिखा रहा,
जानवरों को ही नहीं,
अपनी कौम को भी खा रहा.






This post first appeared on अक्स, please read the originial post: here

Share the post

इंसान और इंसानियत

×

Subscribe to अक्स

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×