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बुजुर्गों की कर्मठता



सच ही कहा जाता है, इंसान उम्र भर सीखता रहता है। दो वर्ष पूर्व तक मुझे लगता था,बुजुर्गों को कोई काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने सारा जीवन काम किया है। अब जीवन का आनंद लें, टी वी देखें-गप-शप करें-टहलें-अच्छा खाये-पहनें बस।
अपनी माँ-मौसियों से कहती भी रहती थी, 'बहुत काम कर लिया तुमलोगों ने,अब तुम्हारी काम करने की उम्र नहीं।' पापा से भी हम सब यही कहते थे। पर पापा एक वाक्य बार बार दुहराते,"I want to die with my boots on "
और यही हुआ भी।स्कूल की देखभाल करते, सोसायटी की देखरेख करते सिर्फ दस दिनों की बिमारी में पापा चले गए । जाने के चार दिन पहले उन्होंने निर्देश दिया था कि स्कूल के बच्चों के रिजल्ट के साथ उनमें नोटबुक और पेंसिल बंटवा देना 🙏 .

 हमारे मन में मलाल भी है कि शायद पापा ने इतनी मेहनत नहीं की होती तो उनका शरीर इतना कमजोर नहीं हुआ होता। जरा सी बीमारी उन्हें हमसे दूर नहीं कर देती। पर मन को यही दिलासा देते हैं कि उन्होंने जैसा जीवन चाहा, आखिरी वक्त तक बिल्कुल वैसा ही जिया 🙏

मेरा छोटा बेटाअपूर्व जब डबलिन पढ़ने 
 गया और अपने 83 वर्षीय मकान मालिक जिन्हें ग्रैंडपा कहता है, के विषय में बताने लगा तो मुझे आश्चर्य हुआ।अकेले रहते हैं,अपने घर के सारे काम के साथ इतने सुंदर लॉन की देखभाल करते हैं। बीज से पौधे तैयार करना, उन्हें लगाना ,खाद-पानी, सिंचाई-निराई सब खुद ही करते हैं। कोरोना से पहले वीकेंड पर नियमित पब जाते थे। अपने दोस्तों के साथ रोड  ट्रिप पर जाते हैं। आज भी उनके बच्चे वैकेशन पर कहीं उन्हें साथ ले जाते हैं।तो ग्रैंड पा उनकी गाड़ी में नहीं जाते ( बेटे-बेटी-बहू की ड्राइविंग नहीं पसंद ) खुद ड्राइव करके जाते हैं। 84 वर्ष की  उम्र में 300 किलोमीटर ड्राइव करके  जाना और आना तो मुझे विस्मित करता हैं।

लेकिन ये सब सुनकर मेरी सोच भी बदली है, अब दोस्त भी जब परेशान होकर कहते हैं कि उनके माता-पिता अकेले रहना चाहते हैं, तो मैं उन्हें समझाती हूँ, "अगर एक ही शहर में हैं तो उन्हें अकेले रहने दो । हफ्ते में एक बार जाकर देखभाल कर आना। " सोच लिया है, माँ जब मेरे पास मुंबई आएंगी तो पहले जहाँ उन्हें कुछ भी नहीं करने देती थी,अब सब्जी बनाने की जिम्मेवारी उन्हें ही सौंप दूँगी । अपने हाथों का खाकर बोर भी हो गई हूँ :) 


अपूर्व रोज सुबह चाय पीते हुए, अपने ग्रैंडपा के लॉन में फूलों के बीच टहलते हुए ही फोन करता है। आदतवश मैं पीछे पड़ गई, 'फोटो भेजो '। पर लड़कों ने माँ की इस आदत बिल्कुल नहीं अपनाया है।आखिरकार एक दिन मैंने फोन कट किया, कहा 'पहले फोटो खींच कर भेज दो फिर दुबारा कॉल लगाओ 🙂'

आज फोटोग्राफी दिवस पर इन सुंदर फूलों को यहाँ भी सहेज लेती हूँ :) 





 












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