● maithili sharan gupt ka jeevan parichay (Biography) | मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त, भारतीय साहित्यिक समाज के प्रमुख कवियों में से एक थे। जिनका जन्म 3 अगस्त, 1886 को भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के फूलपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित रमाद्विलास गुप्त था और माता का नाम श्रीमती कुसुमकुमारी देवी था।
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मैथिलीशरण गुप्त को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काव्यकार माना जाता है और उन्हें "वीर रस कवि" के रूप मे याद किया जाता है।
वे वाराणसी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी, संस्कृत, वेद, दर्शन और साहित्य में स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद राजकीय विद्यालय में अध्यापन (पढाने) करने लगे।
उनकी रचनाएँ धार्मिक और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत थीं और उन्होंने राष्ट्रीय एकता, स्वाधीनता, भारतीय संस्कृति, और वीरता के विषय में अपनी कविताएँ लिखीं। उनकी लघुकविताएँ, मुक्तक, सोने की बेला, आवारा, माँ की ममता, आदि उनकी प्रसिद्ध कविताओं में से कुछ हैं।
इन्होंने कई नाटक और काव्यसंग्रह भी लिखे थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ 'भारत-माता', 'जय श्री राम', 'सत्य की विजय', 'यज्ञ भूमि', 'आवारा', 'पंचवटी', 'चंद्रगुप्त', 'बाजबाजाके', 'जगदम्बा', 'सप्तसिंधु तीर्थ', 'वाजिद अली शाह', आदि हैं।
रचनाएँ:-
मैथिलीशरण गुप्त ने विभिन्न विषयों पर कई प्रसिद्ध रचनाएँ लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
भारत-माता:
जय श्री राम:
यह कविता भगवान राम के वीर गुणों की प्रशंसा करती है।
सत्य की विजय:
इस कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने सत्य की विजय और अधर्म के अंत की महत्वपूर्णता पर बल दिया है।
यज्ञ भूमि:
इस कविता में उन्होंने भारत को यज्ञ भूमि के रूप में समर्पित किया है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की महानता का गान है।
आवारा:
इस कविता में गुप्त ने आवारा व्यक्ति के अंदर उसकी भावनाओं की अनूठी छाया को बयां किया है।
पंचवटी:
यह कविता रामायण के एक दृश्य को वर्णन करती है, जिसमें भगवान राम, सीता, और लक्ष्मण अश्रम में वनवास बिता रहे हैं।
चंद्रगुप्त:
इस कविता में गुप्त ने भारतीय इतिहास में मौर्य वंश के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के वीर गुणों की महिमा का गान किया है।
बाजबाजाके:
इस कविता में उन्होंने एक बाज के रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की महानता का वर्णन किया है।
जगदम्बा:
इस कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने भगवती दुर्गा की महिमा का गान किया है।
सप्तसिंधु तीर्थ:
इस कविता में गुप्त ने सप्तसिंधु के वीर योद्धाओं की वीरता और बलिदान का वर्णन किया है।
उनकी रचनाओं की सूची बहुत लंबी है, और उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग 12 से अधिक पुस्तकें लिखीं थीं।
मैथिलीशरण गुप्त जी अपने समय के एक महान विद्वान कवि थे।
भावपक्ष
मैथिलीशरण गुप्त (Mithileshwaranath Gupta) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और काव्यात्मक विचारक थे। वह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे और उनकी रचनाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को प्रकट करती थीं। गुप्त जी के विचार और रचनाएँ विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर प्रभावी थे और उन्हें "भावपक्षी कवि" के रूप में भी जाना जाता था। उनकी कविताएँ राष्ट्रीय भावना, गांधीवादी विचारधारा और सामाजिक न्याय के प्रति उनके समर्थन को प्रकट करती थीं। उन्होंने विभिन्न नारी विषयों पर भी रचनाएँ की, जिसमें उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की माँग की और उनके सम्मान को उजागर किया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में, मैथिलीशरण गुप्त गांधीजी के साथ जुड़े थे और गांधीवादी विचारधारा के पक्षधर थे। उन्होंने कई कविताएँ लिखीं, जिनमें स्वतंत्रता संग्राम की भावना और राष्ट्रीय एकता को प्रकट किया गया था।
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य और स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण है। उनकी कविताएँ आज भी राष्ट्रीय भावना को प्रेरित करती हैं और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सन्दर्भ के रूप में याद किया जाता है।
कलापक्ष:-
मैथिलीशरण गुप्त के छायावादी काव्य का कलापक्ष था। जिसमें उन्होंने अपने काव्य में विषय, भावनाएँ, और रस को अद्भुत रूप से प्रस्तुत किया। उनके रचनाएँ साधारण जीवन के विषयों पर आधारित रहती थीं और सामाजिक चेतना को प्रोत्साहित करती थीं। गुप्तजी के कविताओं में प्रकृति प्रेम, भारतीय विरासत, राष्ट्रीय भावनाएँ, और संस्कृति के उदारता को अद्भुत रूप से व्यक्त किया गया है। उनकी प्रसिद्ध कविता "जयशंकर प्रसाद" एक प्रकार के बाल काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती है और यह बच्चों को देशप्रेम और संस्कृति के प्रति उत्साह भावना देने में सहायक सिद्ध हुई है। उनकी अन्य प्रमुख कविताएं में "सिंधुदेश," "सितलासमा," "यशोधरा," और "निर्झर" शामिल हैं।
मैथिलीशरण गुप्त को भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) से सम्मानित किया गया था। उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती हैं और छायावादी युग के महान कवियों में से एक के रूप में उनका स्थान हमेशा बना रहेगा।
साहित्य मे स्थान:-
मैथिलीशरण गुप्त को हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनके योगदान ने छायावादी युग को नई दिशा दी और हिंदी कविता को एक नया मोड़ दिया। उनकी कविताओं में विरासत, प्रकृति, राष्ट्रीय भावनाएँ, और संस्कृति के उदारता को अद्भुत रूप से व्यक्त किया गया है। उनके लेखन में उन्होंने सामाजिक चेतना को प्रोत्साहित किया और लोगों के माध्यम से राष्ट्रीयता के प्रति प्रेरणा प्रदान की।
छायावादी आन्दोलन में मैथिलीशरण गुप्त को एक मार्गदर्शक माना जाता हैं, और उनके साहित्यिक दृष्टिकोन ने दर्शकों को साहित्य की नई भावनाओं और रसों के साथ जुड़ाव सुझाया। उनकी कविताएँ आज भी हिंदी साहित्य के प्रमुख बोध केंद्र में से एक हैं और उनका साहित्यिक योगदान हिंदी के स्वर्णिम युग के रूप में माना जाता है। साथ ही, उन्हें हिंदी के छायावादी कवियों में से एक बनाता हैं, जिनमें सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, और हरिवंश राय बच्चन शामिल हैं। उनके रचनाकारी योगदान ने छायावाद को एक नई पहचान दी और इसे आधुनिक हिंदी साहित्य के स्वर्णिम युग का एक महत्वपूर्ण पहलु बना दिया।
● मैथिली शरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?
मैथिलीशरण गुप्त को "राष्ट्रीय कवि" कहा जाता है क्योंकि उनकी कविताएँ राष्ट्रीय भावनाओं और राष्ट्रीय स्वाधीनता के प्रति उनकी गहरी भावनाओं को प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताएँ भारतीय संस्कृति, इतिहास, और धरोहर को महानता और महत्त्व के साथ देखने की प्रेरणा प्रदान करती हैं।
गुप्तजी ने अपने काव्य के माध्यम से भारतीय भाषा, संस्कृति, और इतिहास के प्रति अपने गहरे प्रेम और समर्पण को प्रकट किया। उनके कविताओं में राष्ट्रीय चेतना, स्वाधीनता के प्रति अभिमान, और देशप्रेम की ऊर्जा भरी होती है। उनकी कविताएँ गौरवशाली इतिहास, वीरता, और देशभक्ति को स्तुति करती हैं और दर्शकों को राष्ट्रीय भावनाओं के प्रति प्रेरित करती हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीय विरासत के मूल्यों को महसूस कराया और देशभक्ति और राष्ट्रीयता के लिए प्रेरित किया।
इसलिए, उन्हें "राष्ट्रीय कवि" के रूप में सम्मानित किया जाता है,
क्योंकि उनके काव्य में राष्ट्रीय भावनाएँ और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका गहरा अनुराग उजागर होता है। उनकी रचनाएँ आज भी देशवासियों के दिलों में एक स्थान रखती हैं और उन्हें राष्ट्रीय कवि के रूप में सम्मानित किया जाता है।
● मैथिली शरण गुप्त का पहला काव्य संग्रह कौन सा है?
मैथिलीशरण गुप्त का पहला काव्य संग्रह "जयशंकर प्रसाद" है। यह संग्रह पहली बार 1910 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता "जयशंकर प्रसाद" भी शामिल है, जिसमें राष्ट्रीय भावनाएँ और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जयशंकर प्रसाद की महिमा बताई गई है।
"जयशंकर प्रसाद" के अलावा, इस संग्रह में उनके दूसरे गीतों और कविताओं को भी सम्मिलित किया गया था, जो उनके विद्यालय और समाज के विषयों पर आधारित थे। यह संग्रह मैथिलीशरण गुप्त के छायावादी काव्य के पहले पहलू को प्रकट करता है, जो बाद में उन्हें राष्ट्रीय कवि के रूप में पहचाना जाता है।
● मैथिलीशरण गुप्त ने कितने महाकाव्य लिखे हैं?
मैथिलीशरण गुप्त ने एक महाकाव्य रचा है, जिसका नाम "सिंधुदेश" है। यह महाकाव्य 1930 में प्रकाशित हुआ था। "सिंधुदेश" भारतीय इतिहास, संस्कृति और प्राचीन सभ्यता पर आधारित है और इसमें नदियों और सिंधुसरोवर की सुंदरता को वर्णन किया गया है। इस काव्य में प्रकृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और यह छायावाद के सूर्यों में से एक है। "सिंधुदेश" एक महत्वपूर्ण रचना है जिसमें मैथिलीशरण गुप्त ने भारतीय इतिहास और संस्कृति को सम्मान दिया और भारतीय विरासत को प्रशंसा की गई है। इसमें भारतीय वीरता, दृढ़ता, और समर्पण के प्रति उनकी भावना दिखती है। "सिंधुदेश" महाकाव्य के द्वारा मैथिलीशरण गुप्त ने अपने कविता-कला में अद्भुत कौशल और समृद्धि का प्रदर्शन किया।
● मैथिली शरण गुप्त का कृष्ण काव्य कौन सा है?
मैथिलीशरण गुप्त का कृष्ण काव्य "सिंधुदेश" है नहीं, वरन् उनके एक अन्य कृष्ण काव्य का नाम "सौरभ" है। "सौरभ" कृष्ण भगवान के जीवन और लीलाओं पर आधारित है और यह उनकी अपूर्व कृष्ण भक्ति का प्रतिबिम्ब है। "सौरभ" एक भव्य काव्य है, जिसमें मैथिलीशरण गुप्त ने भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उदार रूप से वर्णन किया है। इस काव्य में भगवान के बाल लीलाएं, गोपियों के संग रास लीला, और भगवान के शिक्षावाक्यों का वर्णन शामिल है। "सौरभ" में मैथिलीशरण गुप्त ने भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति के उदाहरण को प्रस्तुत किया है और इसे एक अद्भुत कृष्ण काव्य के रूप में माना जाता है। यह कृष्ण काव्य मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनकी रचनाएँ भक्ति और धार्मिक भावनाओं को प्रोत्साहित करने में मदद करती हैं।
● मैथिली शरण गुप्त को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?
मैथिलीशरण गुप्त को ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मिला था। उन्हें इस पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया था भारतीय साहित्य के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए। इस पुरस्कार से पहले, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था, जिससे उनकी रचनाएँ और साहित्यिक योगदान को मान्यता मिली थी। ज्ञानपीठ पुरस्कार उनके उपन्यास "यशोधरा" को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया गया था, जो एक प्रसिद्ध उपन्यास है और साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्यों में से एक माना जाता है। इस पुरस्कार से उनके साहित्यिक योगदान को और भी अधिक मान्यता मिली और उन्हें भारतीय साहित्य में एक महान कवि के रूप में पहचाना जाता है।