Kaliyuga ka anta-कलियुग का अंत
एक बात कहो, बतलाता हूं
मैं तुमको विध्वंस सुनाता हूं
मृत्यु की वो शैय्या होगी, काल वक्त पर नाचेगा
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विध्वंसो के चक्रव्यूह में, अब दुर्योधन भागेगा
बहुत हुआ ये पाप चरम में, कब तक विध्वंस बचाओगे
ले अब उठा ली तलवार, शत्रु तुम कब तक युद्ध की गुहार लगाओगे
विध्वंसो के चक्रव्यूह में माधव भी तो आएंगे
सुना है,इस बारी महाबली भी गदा उठाकर लाएंगे
अर्जुन के वो बाण,तीक्ष्ण प्रहार लगाएंगे और अभिमन्यु ही चक्रव्यूह की युक्ति को सुलझाएंगे।
दुर्योधन तुम कान खोल लो, तुझसे मैं संवाद करूं
शकुनी मामा बहुत मिलेंगे तुझसे ये विस्तार कहू
कर्ण सा न अब मित्र मिलेगा, वचनों का कोई मान नहीं
साम्राज्य से जो बंधा हो कोई ऐसा भीष्म महान नहीं
गुरुवो में जो गुरु थे ऐसे द्रोण महान नहीं
हे दुर्योधन! इन तीनों के ना होने पर तेरा कोई सम्मान नहीं..
अब कलियुग विद्रोह रूपी स्थिति में है अब हर स्थिति में विद्रोह की भावना दिखाई देती है और विद्रोह ही व्यापक रूप से समाज और मानव कि मन मस्तिष्क पर छा गया है तो इसी पर कलियुग रूपी कुरुक्षेत्र की रचना की गई है।
इसमें हम वीर को लेते हैं वीर एक व्यक्ति का नाम मान लेते हैं..
तात्पर्य:-
वीर कहता है कि एक बात कहो, बतलाता हूं इसमें वीर समस्त समाज और समस्त मानव जाति से कहता है कि मैं एक बात कहूं क्या सुन पाओगे आपको उसी बात से अवगत कराता हूं जो आपने की है तुमको विध्वंस सुनाता हूं इस कलियुग में पाप,विध्वंस का रूप ले रहा है उसको सुनाता हूं
वीर कहता है की हमारी पृथ्वी में या कह सकते हैं संपूर्ण मानव जाति में या प्रकृति में पाप इस तरह से व्याप्त हो गया है कि अब लगता है की संपूर्ण प्रकृति का अंत होने वाला है तो वीर कहता है एक समय ऐसा होगा कि जब मृत्यु की वह शैय्या होगी काल वक्त पर नाचेगा वीर कहना चाहता है कि हमने इस प्रकृति में इस प्रकार या इस कदर पाप की सीमा बढ़ा दी है की हर जगह मुझे मृत्यु की शैय्या दिखाई देती है और मुझे कभी-कभी नहीं अपितु हर वक्त लगता है कि काल मेरे सिरहाने खड़ा है और मुझे लेने आया है क्योंकि पाप की सीमा और स्थिति का बंधन दोनों ही खंडित हो चुके हैं और कलियुग अपने चरम पर है और किसी भी वक्त इसका अंत निश्चित है।
वीर कहता है कि यदि हम अपनी इस गलती को सुधारना चाहते हैं तो हमारे पास एक ही अवसर है और एक ही मार्ग है जिसे हम भक्ति मार्ग कह सकते है भक्ति ही एक ऐसा मार्ग है जो हमें कलियुग रूपी समय में होने वाले विध्वंस से बचा सकता है भक्ति करने से समय का परिवर्तन होगा और एक नई ऊर्जा का संचार होगा और तब, जब भी दुर्योधन रूपी व्यक्ति पाप करेगा तब इस चक्रव्यूह में वही फसेगा।
तो वीर कहता है.. विध्वंसो के चक्रव्यूह में अब दुर्योधन भागेगा
वीर कहता है कि बहुत हुआ यह पाप चरम मे कहने का तात्पर्य है अब पाप की सीमा का अंत होने वाला है जितना पाप होना था अब हो चुका अब केवल पाप का अंत होगा।
बहुत हुआ यह पाप चरण में, कब तक विध्वंस बचाओगे
वीर कहता है कि पाप की सीमा समाप्त हो चुकी है कब तक शांत रहोगे अब तुम्हारे शस्त्र उठाने का वक्त आ चुका है यूंही कब तक पाप सहोगे।
वीर कहता है कि ले अब मैंने तलवार उठा ली पाप का विद्रोह करूंगा कब तक यह दुश्मन यह शत्रु युद्ध की गुहार लगाएंगे मुझे कभी ना कभी इनकी विनती सुननी ही पड़ेगी तो मैं इनकी गुहार को अनसुना क्यों करूं और आज मैं इनकी गुहार का उत्तर देने जा रहा हूं..
ले अब उठा ली तलवार, शत्रु तुम कब तक युद्ध की गुहार लगाओगे
विध्वंसो के चक्रव्यूह में माधव भी तो आएंगे यह कलयुग रूपी वक्त में जो पाप चल रहा है इसका अंत करने महाभारत काल के जैसे ही
श्री कृष्ण इस बार पुनः आएंगे और सुना है कि इस बार महाभारत के जैसे हनुमान जी भी आएंगे पर इसमें और महाभारत काल में बस इतना फर्क होगा कि उस समय हनुमान जी और श्री कृष्ण ने अपने अस्त्र नहीं उठाए थे परंतु कलियुग में पाप का अंत करने के लिए इन दोनों को भी अस्त्र उठाने पड़ेंगे। अर्जुन के बाणो से तो आप भली-भांति रूप से परिचित हैं उसके बाणो के तीक्ष्ण प्रहार से ये कलियुग के यह पापी मृत्यु शैय्या में विश्राम करेंगे।
और वीर कहता है इस बार अभिमन्यु नहीं दुर्योधन ही चक्रव्यूह में फंसे गा इस बार दुर्योधन ही मृत्यु का आनंद प्राप्त करेगा और अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदेगा।
मैं दुर्योधन से कहता हूं कि हे दुर्योधन! ध्यान से कान खोल कर सुन लो कि अब तुम्हें कलियुग रूपी समय में शकुनी मामा तो कई मिल जाएंगे परंतु कर्ण सा मित्र ना मिलेगा जो अपने वचनों के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दे और ना ही साम्राज्य से बधे होने वाले पितामह भीष्म ना मिलेंगे और ना ही वह गुरुओं के गुरु द्रोण तुम्हारे पक्ष में होंगे।
तब हे! दुर्योधन इन तीनों के ना होने पर तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है इसलिए हे! दुर्योधन मैं तुमसे बार-बार यही कहता हूं की पाप त्याग कर धर्म की मार्ग पर आ जाओ और कलियुग रूपी वक्त में भक्ति रूपी सदमार्ग पर कदम बढ़ाओ।
माना जाए तो इस कलियुग रूपी समय में इस कदर पाप बढ़ गया है कि चारों तरफ दुर्योधन, कंस, और रावण जैसे पापी ही दिखाई देते हैं इस परिस्थिति मे राम और कृष्ण का आना संभावित है क्योंकि ईश्वर ने इस प्रकृति की रचना की है और वह अपनी बनाई गई वस्तु को यूं ही धूमिल और नष्ट नहीं होने दे सकते तो इसी भाव के आधार पर हमें अपने अंदर के दुर्योधन, कंस और रावण को मार कर भक्ति भाव में ही जीना चाहिए और अपने जन्म के उद्देश्य को समझना चाहिए ताकि हमें एक लक्ष्य की प्राप्ति हो और हम सदमार्ग पर चले।
GYAN KI BAAT..
आज की ज्ञान की बात यह है कि हमें अपने जीवन का एक उद्देश्य बनाना चाहिए की हमारा जन्म इस पृथ्वी पर क्यों हुआ है और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है यदि हमें हमारे जीवन का उद्देश्य पता चल जाए तो हम अपने कर्म क्षेत्र पर संलग्न हो जाएंगे और पाप क्षेत्र से बहुत दूर निकल जाएंगे और जिससे महाभारत काल जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।