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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 3 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 3 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

पाठको को नवरात्रि पर्व मंगलकारी हो। वसुधैव कुटुंबकम् … इसी सूत्र को बढ़ाते हुए, आज सुबह घूमते हुए नजर पड़ी इस बड़े से फ्रिज पर। भारत में प्रायः बचा हुआ भोजन गाय, स्ट्रीट डाग्स को दे दिया जाता है। यहां चूंकि पैक्ड फूड अधिक प्रयुक्त होता है, लेफ्ट ओवर खाद्य सामग्री, या किंचित लंबे समय के लिए बाहर जाते समय फ्रिज में रखे गए भोज्य पदार्थ इस तरह के कमयूनिटी फ्रिज में छोड़ दिया जाता है। रोज खाओ कमाओ वाली प्रवृति के लोग यहां भी हैं ही, भोजन का सदुपयोग हो जाता है । श्रीमती जी ने पिछले दो तीन दिनों में किचन का प्रभार बेटे से ले लिया है, तो उनके रिव्यू से फ्रिज से बाहर किया गया ढेर सा खाना हमने भी इस फ्रिज में रखकर हल्का अनुभव किया।
जब हम मंडला में थे तो क्लब के अंतर्गत पिछली सदी के अंतिम दशक में ऐसे ही दो प्रोजेक्ट्स किए थे ।

पहला था तमाम डाक्टर मित्रों के घरों से उन्हें सेंपल में मिली दवाएं और अन्य अनेक परिवारों से घर पर बची हुई दवाएं एकत्रित करवा कर, झुग्गी बस्ती में मेडिकल कैंप लगाया था और निशुल्क दवा वितरण डाक्टर साहब की समझ के अनुरूप किया गया था।

दूसरा तो संभवतः आज तक चल ही रहा हो, कलेक्ट्रेट परिसर में प्रशासन के सहयोग से एक शेड में घर के पुराने कपड़े लाकर “वाल आफ चैरिटी” पर टांग दिए गए थे , स्लोगन यही था , जिसे जो लगे आकर टांग जाए , जिसे जो लगे ले जाए , इस तरह गरीबों को ठंड में कुछ सहारा मिल गया और लोगो के घरों की अलमारियों का बोझ कम हुआ ।

इसका अध्यातमिक पक्ष यह है की परमात्मा एक महान शक्ति है उसमे अपनी कण शक्ति समर्पण भाव से समाहित कर के देखिए फिर आप उस महान शक्ति के सामर्थ्य के साथ कनेक्ट हो जाते हैं और आपकी कणिक ऊर्जा असाधारण ऊर्जा बन जाती है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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