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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 101 ☆ ’’जमाने का भरोसा क्या…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “जमाने का भरोसा क्या…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा 101 ☆ गज़ल – “जमाने का भरोसा क्या” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

समय हर पल बदलता है, जमाने का भरोसा क्या ?

अभी जो है, क्या होगा कल। जमाने का भरोसा क्या ?

दिया करता समय सबको अचानक ही बिना मॉगे

कभी वन या कि सिंहासन, जमाने का भरोसा क्या ?

था बनना राम को राजा, मगर जाना पड़ा वन को

किसी को था कहॉ मालूम, जमाने का भरोसा क्या ?

अचानक होते, परिवर्तन यहॉ पर तो सभी के सॅग

कहॉ बिछुडे, मिले कोई, जमाने का भरोसा क्या ?

कभी तूफान आ जाते कभी तारे चमक उठते

हो बरसातें या षुभ राते जमाने का भरोसा क्या ?

बहुत अनजान है इन्सान, है लाचार भी उतना

मिले अपयष या यष किसको, जमाने का भरोसा क्या ?

सुबह आ बॉट जाते दिन उदासी याकि नई खुषियॉ

यादें जायें समस्या कोई जमाने का भरोसा क्या ?

कभी बनती परिस्थितियॉ जो बढ़ा जाती हैं बेचैनी

कभी नये फूल खिल जाते जमाने का भरोसा क्या ?

बनी है जिंदगी षायद सभी स्वीकार करने को

मिलें कब आहें या चाहे, जमाने का भरोसा क्या ?

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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