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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 178 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – अभी भी बहुत शेष है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “अभी भी बहुत शेष है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘अनुगुंजन’ से – अभी भी बहुत शेष है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मंजिले पार करते हुये नित नई जिंदगी आज इस ठौर तक आ गई ।

राह फिर भी अभी भी बहुत शेष है इन चरण के चिरन्तन चलन के लिये ।। १ ।।

*

राह में मोड़ आये, चौराहे मिले कई उतारों-चढ़ावों के भी सिलसिले ।

कुछ तो सीखा है, फिर भी बहुत शेष है मौन मन के निरन्तर मनन के लिये ।। २ ।।

*

सड़कें चिकनी औ’ चौड़ी चमकदार हैं फिर भी कचरों औ’कांटों के अम्बार हैं।

रोशनी कम अँधेरा बहुत शेष है दूर करने अभी भी, किरण के लिये ।। ३ ।।

*

आये दिन सुख के नये लाखों साधन बने लोग फिर भी हैं सहमें, डरे अनमने ।

सीखना सबको अब भी बहुत शेष है रीति नई. प्रीति के आचरण के लिये ।। 8 ।।

*

पर लगा, आदमी बहुत उड़ने लगा छोड़ धरती सितारों से जुड़ने लगा ।

पर समझना सभी को बहुत शेष है यह धरा ही है जीवन मरण के लिये ।। ५ ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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