स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
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साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 190 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
☆
संभवतः
शिष्य के
हठ की
अहंकार की
विदीर्ण करने
मौन मुखरित हुआ
‘वत्स
स्वीकारता हूँ तुम्हारा आग्रह
जाओ –
गुरु दक्षिणा हेतु लाओ
आठ सौ श्यामकर्ण अवश्वमेधी अश्व।‘
सुन, गुरु वचन
अवाक् गालव
स्तब्ध मन,
क्षणांश में
हुआ सचेत
और
बोला
‘जो आज्ञा गुरु देव।’
प्रणाम अर्पित कर
गालव ने छोड़ा आश्रम ।
वनमार्ग पर
चलते चलते
सोचा
आठ सौ श्याम कर्ण अश्व
कहाँ पाऊँ
कैसे जुटाऊँ?
विपत्ति में
स्मरण आते हैं
क्रमशः आगे —
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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