श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “तुम्हारी भक्ति हमारे प्राण…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
Related Articles
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 194 ☆ तुम्हारी भक्ति हमारे प्राण… ☆
भक्ति और भावना को समेटे अक्षयलाल जी अपनी दिनचर्या से समय बचाकर नेक कार्यों में बिताने का संकल्प लिए हुए हैं। सच्ची बात तो ये है कि जहाँ संकल्प होता है वहाँ विकल्प शान से पहले ही विराजमान होकर सभा की शोभा बढ़ाने लगता है। बहानेबाजी करने में जिनको महारत हासिल हो वो तरह- तरह के कारण- निवारण बताने लगते हैं। एक झूठ सौ तरकीबें बनाने में माहिर होता है।यहाँ हम लोग अपने में भी व्यस्त होने का दिखावा कर रहे हैं और वहाँ संभावनाओं में भावना की तलाश जारी है। कहा भी गया है- जिन खोजे तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ …। सो एकता के साथ कामकाजी होने का बहाना साधे अवसर न मिलने का रोना रोते हुए चाय पानी में लगे हुए हैं। जन जाग्रति हेतु जनमानस के बीच जाना और अपना मनोरंजन करके वापस आ जाना, बस यही कार्यप्रणाली बरसों से चली आ रही है। न तो टू डू लिस्ट का पालन न कार्यकर्ताओं के विचारों पर अमल, बस अपनी डफली अपना राग इसी लक्ष्य को साधते हुए आगे बढ़े जा रहे हैं। कहते हैं जो निरन्तर चलता रहेगा वो कुछ न कुछ तो अवश्य पायेगा। यही उनकी जिंदगी का मूलमंत्र है। रास्ते में कितने लोग हाथ छोड़कर चले गए इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता बस अपनी धुन में मगन अपना राग अलापते हुए चलते जाना है।
मजे की बात ऐसे लोगों के सलाहकार भी जमीन से जुड़े न होकर सात समंदर पार बैठे हुए लोग होते हैं जो उल्टी ही चाल चलते हैं ताकि कोई न कोई बखेड़ा हो और न्यूज़ के फ्रंट फुट पर बिना कुछ किये ही बने रहा जा सके। कुछ लोग समय के इशारे को समझ कर अपनी राहें बदल लेते हैं किंतु कुछ अड़िग होकर बस भ्रमण को ही लक्ष्य समझते हैं। टाइमपास करते हुए टाइम मशीन के युग तक जाना, तकनीकी मुद्दों से दूरी बनाना बस विकास कब ,कैसे और क्यों होगा? इसी को समय- समय पर उठाते रहना। रोजगार और रेजगारी सबके बस की बात नहीं है, इन्हें संभालने के लिए बल बुद्धि दोनों चाहिए, जो मेहनती हैं उन्हें सब मिल रहा है , जो खाली हो हल्ला कर रहे हैं वे इस उम्मीद के सहारे बैठे हैं कि आज नहीं तो कल घूरे के दिन भी फिरेंगे। वक्त क्या रंग दिखायेगा ये तो तय है फिर भी औपचारिकता जरूरी होती है। सो गर्मजोशी के साथ सत्कर्मों का स्वागत करिए। अच्छे और सच्चे के साथी बन नेकनीयती का परिचय दीजिए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
The post हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 194 ☆ तुम्हारी भक्ति हमारे प्राण… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆ appeared first on साहित्य एवं कला विमर्श.
This post first appeared on ई-अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ - साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ कला विमरà¥à¤¶ (हिनà¥à¤¦à¥€/मराठी/अङà¥à¤—à¥à¤°à¥‡à¥›à¥€), please read the originial post: here