स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – सुनो माधवी…।)
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साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 187 – सुनो माधवी…
नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य)
☆
आह! माधवी
तुम्हारी कथा
व्यथा
वेधती है
हृदय।
अवसाद से भर उठते हैं
प्राण
मन।
तिलमिलाती है
चेतना।
होता हूँ
लज्जावनत
और दुःखी।
घेर लेता है
एक नपुंसक आवेश!
तपःपूत ऋषियों
और दानवीर, योद्धा
नरेशों के नाम,
मुँह में घोलते हैं
कड़वाहट
और सबसे अधिक
पीड़ित करता है
तुम्हारा
अनुर्वर मौन।
प्रश्न है
तुम
नारी, नदी या पाषाणी हो
माधवी ?
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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