स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – शब्द दीप…।)
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साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 186 – शब्द दीप…
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मुट्ठियों से फिसली रेत की तरह
फिसल गई एक सदी,
बह रही है
एहसास की नदी ,
और मैं
नदी को भेंट कर रहा हूँ
अपने शब्द दीप
ओ, मेरे शब्द दीप
लहरों की नाव पर
जाना उसे तट तक
जो मेरे लिए अगम्य है ,
शायद वहां
उदासी का अंधेरा हो
और सन्नाटा
प्रतीक्षा बुन रहा हो।
ओ मेरे शब्द,
तुम मोर पंख की तरह
हौले से बुहारना,
अधरो का आंगन
अँजुरी में सहज लेना नयन जल
यहाँ खिल उठेगा
मेरे मन का शतदल कमल
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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