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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 346 ⇒ जिन्दगी और टेस्ट मैच… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जिन्दगी और टेस्ट मैच।)

अभी अभी # 346 ⇒ जिन्दगी और टेस्ट मैच… श्री प्रदीप शर्मा 

एक समय था, जब ज़िंंन्दगी चार दिन की थी और टेस्ट मैच पांच दिनों का। यानी टेस्ट मैच जिंदगी से ज्यादा उबाऊ था। एक खिलाड़ी को दो दो पारी खेलनी पड़ती थी। वैसे देखा जाए तो किसकी होती है चार दिन की जिंदगी। सौ बरस जिंदगी जीने की आस, को ही शायद चार दिनों की जिंदगी माना गया हो।

२५ ब्रह्मचर्य, २५ गृहस्थ, २५ वानप्रस्थ और २५ सन्यास, लो हो गए चार दिन। वैसे एक क्रिकेटर की जिंदगी भी कहां २५ बरस से अधिक की होती है। उसे एक लंबे, सफल क्रिकेट कैरियर के बाद जिंदगी से नहीं, लेकिन हां क्रिकेट से सन्यास जरूर लेना पड़ता है। क्रिकेट राजनीति नहीं, जहां सन्यास लिया नहीं जाता, विरोधियों को दिलवाया जाता है।।

उबाऊ जिंदगी को रोचक और रोमांचक बनाने के लिए पांच दिन के टेस्ट मैच को एक दिन का, फिफ्टी फिफ्टी ओवर का कर दिया गया। यानी सौ बरस की जिंदगी हमारी अब पचास बरस की हो गई, क्योंकि इसमें से वानप्रस्थ और सन्यास को निकाल बाहर कर दिया गया। जिंदगी छोटी हो, लेकिन खूबसूरत हो।

खेलना कूदना, पढ़ना लिखना, कुछ काम धंधा करना और हंसते खेलते जिंदगी गुजारना। यानी कथित चार दिन की जिंदगी का मजा एक ही दिन में ले लेना, क्या बुरा है। फटाफट क्रिकेट की तरह, फटाफट जिंदगी।

जिंदगी एक सफर है सुहाना। यहां कल क्या हो, किसने जाना। अगर दुनिया मुट्ठी में करना है, तो आपको फटाफट जिंदगी जीना पड़ेगी। जब से क्रिकेट में टेस्ट मैच और वन डे का स्थान टी -20 ने लिया है, इंसान ने कम समय में जिंदगी जीना सीख लिया है।।

एक आईपीएल खिलाड़ी की उम्र देखो और उसका पैकेज देखो, और बाद में उनका खेल देखो और खेल की धार देखो। सिर्फ टी – 20 क्रिकेट ही नहीं, आज की युवा पीढ़ी को भी देखिए, समय से कितनी आगे निकली जा रही है। गए जमाने बाबू जी की नब्बे ढाई की नौकरी और रिटायरमेंट के बाद मामूली सी पेंशन के दिन। कितना सही लिखा है जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने, ” जो चाहते हो, वह पा लो, वर्ना जो पाया है, वही चाहने लगोगे।

काश हमारी जिंदगी भी क्रिकेट की तरह ही होती। हम रोज आउट होते और रोज हमें नई बैटिंग मिलती। हमारे भी जीवन के कैच मिस होते, नो बॉल पर हम क्लीन बोल्ड होते, फिर भी जीवनदान मिलता। एलबीडब्ल्यू की अपील होने के बावजूद हमें एक और लाइफ मिलती।।

अगर हमारा जीवन फाइव डे क्रिकेट की तरह लंबा है, तो हमें लिटिल मास्टर की तरह अपनी विकेट बचाते हुए, संभलकर खेलना है। अगर गलती से आउट भी हो गए, तो दूसरी पारी की प्रतीक्षा करना है।

अगर समय कम है तो कभी धोनी तो कभी विराट हमारे आदर्श हो सकते हैं।

जिंदगी में गति रहे, रोमांच रहे, कभी वन डे तो कभी टी – 20, लेकिन सावधानी हटी, विकेट गिरी। जिंदगी में वैसे भी गुगली, यॉर्कर और फुल टॉस की कमी नहीं। कभी आप टॉस हार सकते हैं, तो कभी जीत भी सकते हैं। दुनिया भले ही जालिम अंपायर की तरह उंगली दिखाती रहे, जब तक हमारा ऊपर वाला थर्ड अंपायर हमारे साथ है, कोई हमारा बाल बांका नहीं कर सकता।।

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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