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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है पत्रकार, सहियकार “स्व अजित वर्मा जी” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆

“आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

पत्रकार, साहित्यकार अजित वर्मा का स्मरण आते ही उनका चिंतन-मनन और लेखन में डूब हुआ धीर-गम्भीर चेहरा सामने आ जाता है। उन्होंने इले. इंजीनियरिंग की पढाई की थी फिर राजनीति शास्त्र में एम.ए., एल.एल.बी., साहित्यरत्न, कोविद (संस्कृत) एवं पत्रकारिता में पत्रोपाधि की। कुछ समय म.प्र.उच्च न्यायालय में वकालत और शासन के रिवीजन ऑफ़ गजेटियर्स में राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्य किया, किन्तु वे तो सकारात्मक चिंतन करने, जनहित में लिखने और पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों, अपराधियों, भ्रष्टाचारियों पर तीखे प्रहार करके उन्हें समाज के सम्मुख लाने, समाज को दिशा प्रदान करने, प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें उचित मार्गदर्शन देने और कलमकारों के हित में कुछ करने के लिए ही पैदा हुए थे अतः उन्हें राजपत्रित अधिकारी का पद पसंद नहीं आया। उन्होंने जीवन यापन के लिए उद्देश्य पूर्ण पत्रकारिता का कष्ट कंटकों भरा मार्ग चुना। वर्मा जी ने पत्रकारिता की शुरुआत अपने छात्र जीवन से ही प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘युगधर्म’ से कर दी थी। उन्होंने नई दुनिया, नवीन दुनिया, दैनिक नवभास्कर के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए नई पीढ़ी के पत्रकारों का मार्गदर्शन किया। अजित वर्मा जी ने 30 वर्ष पूर्व स्वयं के संपादकत्व में सांध्य दैनिक “जयलोक” समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। विशाल ह्रदय के स्वामी अजित भाई ने “जयलोक” को दीवारों और घेरों से मुक्त, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की नीति पर आगे बढ़ाया। “जयलोक” के द्वार हर नए-पुराने जरूरतमंद पत्रकार के लिए खोल दिए। उल्लेखनीय है कि सिद्धान्तवादी पत्रकारों का जीवन बहुत अस्थिर होता है। मुझे यह लिखते हुए हर्ष हो रहा है कि भाई अजित वर्मा की इस उदार नीति पर उनके सुपुत्र “जयलोक” के वर्तमान संपादक श्री परितोष वर्मा एवं अजित जी के परम मित्र “जयलोक” के समूह संपादक श्री सच्चिदानंद शेकटकर आज भी चल रहे हैं। अजित वर्मा और “जयलोक” को पत्रकारिता की पाठशाला का विशेषण यों ही नहीं मिला। इधर जहाँ ससम्मान अनेक नामी पत्रकारों ने अपने जीवन की संध्या गुजारी वहीं इन वरिष्ठ पत्रकारों और अजित वर्मा जी के मार्गदर्शन और अनुशासन में अनेक नए पत्रकारों की कलम में धार पैदा हुई जो आज विभिन्न पत्रों में कार्य करते हुए यश-कीर्ति अर्जित कर रहे हैं।

वर्मा जी के द्वारा विविध विषयों पर निर्भीक होकर लिखी लेख मालाएं बहुत चर्चित रहीं। उनकी रचित प्रकाशित पुस्तकों में जीवन दर्शन, लोकतंत्र सूली पर, आहुति (जबलपुर में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास), अनहर्ड क्राइज (जबलपुर भूकम्प), दिग्विजयी लोकनीति, तहलका और हम, विमर्श और सान्निध्य की अर्द्धशती (जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के साथ) तथा वीरांगना दुर्गावती प्रमुख हैं। वर्मा जी का प्रमाण पुष्ट लेखन बताता है कि विभिन्न विषयों पर उनका कितना गहन अध्ययन-चिंतन था।

वे 1979 से 83 तक जबलपुर पत्रकार संघ के महामंत्री और फिर अध्यक्ष रहे। उन्हीं के कार्यकाल में पत्रकार भवन का निर्माण हुआ। उन्होंने पांच दशकों से अधिक समय तक पूरी प्रतिबद्धता व निष्ठा के साथ श्रेष्ठतम मूल्यों और आदर्शों के अनुरूप पत्रकारिता को नए आयाम दिए। वे अ.भा.आध्यात्मिक संघ के सक्रिय प्रदेश महामंत्री भी रहे। ऐसा नहीं कि चिंतन-मनन, लेखन, धर्म-आध्यात्म और पत्रकारिता ने उनकी सरसता छीन ली हो। अजित वर्मा जी ने अपने साथियों के साथ 1967 में सांस्कृतिक संस्था “मित्रसंघ” की स्थापना की और नगर के श्रोता-दर्शकों को वर्षों तक उत्कृष्ट कार्यक्रमों की श्रृंखला दी। मित्रसंघ द्वारा प्रारम्भ भूले बिसरे गीतों का कार्यक्रम अति लोकप्रिय हुआ था इसकी सौ से अधिक प्रस्तुतियां हुईं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्मृति शेष भाई अजित वर्मा शारीरिक शिथिलता के बावजूद अंतिम सांस तक चैतन्य और बौद्धिक रूप से सक्रिय रहे।

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

संकलन –  जय प्रकाश पाण्डेय

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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