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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मेरी डायरी के पन्ने से… संस्मरण – दिखावा – ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  संस्मरण – दिखावा)

मेरी डायरी के पन्ने से… संस्मरण – दिखावा – द ग्रेट नानी  

शिक्षण के क्षेत्र से जुड़े रहने के कारण तथा टीचर ट्रेनर होने के कारण कई स्थानों पर कभी-कभी वर्कशॉप लेने के अवसर मुझे मिलते रहे।

कुछ समय तक मैं निरंतर गुजरात के विभिन्न शहरों में वर्कशॉप लेने जाया करती थी। उस वर्ष भुज शहर के कुछ विद्यालयों के साथ मैं काम कर रही थी।

मेरे साथ एक एसिसटेंट भी हुआ करती थी। उसका नाम था सौदामिनी। मैं उसे अक्सर सौ कहकर ही पुकारती थी। एक तो उसे बात-बात पर खिलखिलाकर हँसने की आदत थी और दूसरी विशेषता यह थी कि उसके सान्निध्य में मुझे सौ लोगों के बीच रहने का सुख अनुभव होता था। वह बहुत बातूनी भी थी। उसकी तत्परता और उपस्थित बुद्धि दोनों ही मुझे बहुत अच्छी लगती थी।

हम लोगों को पुणे से भुज तक जाने के लिए एक रात का सफ़र तय करना था। दिक्कत यह थी कि उस मार्ग की रेलगाड़ी में केटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी। अतः अपने साथ पर्याप्त वस्तुएँ ले जाने की जरूरत पड़ती थी।

रात के 7:30 बजे गाड़ी चलती थी और दूसरे दिन शाम को करीबन 6:00 बजे भुज पहुँचती थी। उन दिनों यह गाड़ी सप्ताह में एक ही दिन चलती थी।

समयानुसार गाड़ी चल पड़ी और हमारी यात्रा शुरू हो गई। हमारे साथ डिब्बे में हमारेवाले हिस्से में अधिकतर महिलाएँ ही थीं। थर्ड क्लास एसी की बुकिंग थी।

गाड़ी के छूटते ही सभी महिलाएँ जो डिब्बे में थीं एक दूसरे से वार्तालाप करने लगीं। यह सिलसिला काफ़ी समय तक चलता रहा। एक दूसरे से परिचित होना, नाम, धाम, कार्यक्षेत्र आदि विषयों पर कुछ देर तक चर्चा होती रही।

डिब्बे में जो दो पुरुष थे उन्होंने ऊपर के बंकों में अपनी जगह सुरक्षित कर ली थी क्योंकि नीचे चार महिलाएँ और साइड की दो महिलाएँ आपस में घुल मिल गई थीं। इसमें अधिकतर महिलाएँ बिजनेस वोमन थीं।

महिलाओं में आपस में कई विषयों पर चर्चा छिड़ गई। वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर, वर्तमान युवा पीढ़ी के दृष्टिकोण तथा व्यवहारों पर, राजनीतिक परिस्थितियों पर तथा गुजरात की विशेषताओं पर। विशिष्टरूप से अधिक तर महिलाएँ गुजराती थीं तो वे वहाँ के उत्सव, पतंग उत्सव, गरबा नृत्य आदि पर भी गर्व से काफी चर्चा करने लगीं।

रेलगाड़ी में बैठकर दो घंटे तो वैसे बीत चुके थे। महिलाओं का प्रिय विषय भोजन पर चर्चा शुरू हुई। हमारे साथ एक सिंधी महिला भी थीं। वे आधुनिक कई पाक क्रिया पर चर्चा कर रही थीं। कुछ अन्य महिलाओं ने तो अपनी -अपनी डायरियाँ ही खोलकर कुछ लिख भी डालीं। सूप, चायनीज़ भोजन आदि।

उस महिला की उँगलियों में अनेक हीरे की अँगूठियाँ थीं जिस प्रकार के सूटकेस लेकर वे चल रही थीं उससे ज़ाहिर था कि वे काफी धनाढ्य परिवार से थीं। परंतु उसके साथ ही साधारण लोगों के साथ उठना – बैठना एवं मिलना वे शायद पसंद भी करती थीं। वे काफ़ी स्टाइलिश भी थीं यह वेश-भूषा से ही स्पष्ट हो रहा था।

हर जगह ऐसे मौकों पर मैं श्रोता बनकर रहना अधिक पसंद करती हूँ। मुझे लोगों को निहारने, उनकी बातें सुनने में मज़ा आता है इससे मुझे अपनी कहानियाँ या संस्मरण लिखने के लिए पर्याप्त मसाले भी मिल जाते हैं।

वैसे भी मेरे साथ बातूनी सौ उपस्थित थी तो मुझे बात करने की आवश्यकता नहीं होती थी। मेरी सौ मेरी चुप्पी की कमी पूरी कर देती थी। उसमें जिज्ञासा बहुत थी और वह लोगों से खूब सवाल पूछती थी। सहज -सरल, चुलबुली स्वभाव की सौ बड़ी आसानी से सबके साथ घुलमिल जाती थी। ।

सौ की एक और खासियत थी कि वह लोगों से ईमेल आई डी लेकर उनके साथ पत्र व्यवहार भी जारी रखती थी। अब तक तो उसने संभवतः आधी दुनिया से रिश्ता जोड़ लिया होगा। उन दिनों उसके पास एक अत्याधुनिक कैमरा था जिसकी सहायता से वह हमारे वर्कशॉप की विडियो शूट किया करती थी।

हमारी यात्रा जारी थी। सौ सिंधी महिला से अत्यंत प्रभावित थी। चलिए अपनी सुविधा के लिए उनका नाम कोमल रख लेते हैं। वैसे आज मुझे उनका नाम याद नहीं। बस वह घटना याद है जो चिर स्मरणीय है।

रात के नौ बज चुके थे। अब तो हमारे डिब्बे में अलग-अलग प्रकार की खुशबू आ रही थी। सभी अपना – अपना भोजन का डिब्बा खोल चुके थे। ढोकला, थेपला, अचार, मुरब्बे पराँठे, सब्जियां और उसके साथ इडली चटनी, पूड़ी सब्जी आदि।

कोमल जी का डिब्बा बड़े करीने से सजा था। वे पेपर प्लेट, टिश्यूपेपर और प्लास्टिक की चम्मच निकालने लगीं। भोजन में हाथ लगाने से पूर्व उन्होंने एक तरह की सुगंधित तरल पदार्थ से अपने हाथों को स्वच्छ किया।

उत्साहवश हमारी सौ ने उनसे पूछ ही लिया कि वह हाथ में क्या लगा रही थीं उत्तर में कोमल जी ने बताया कि यह सैनिटाइजर है। अर्थात हाथ में अगर कोई जीवाणु हो तो उसका सफ़ाया हो जाएगा।

(पाठकों से यह बताना आवश्यक है कि जिस समय की यह घटना है उस समय सैनिटाइजर की प्रथा आम लोगों में नहीं थी और ना ही लोग उसका उपयोग आज की तरह किया करते थे।)

मैं ध्यान से कोमल जी को देखती रही। हर वस्तु बड़ी अच्छी तरह से प्लास्टिक के विभिन्न प्रकार व आकार के पैकेटों में लपेटी हुई थी। पूड़ी- सब्जी तथा सॉस के सेशे भी थे। अब कागज की बनी प्लेटों पर विभिन्न भोजन सजाए वह सभी को बड़े प्रेम से खिला रही थीं ऊपर बंक में लेटे व्यक्तियों को ज़बरन उठा- उठा कर भाई साहब, भाई साहब कहकर प्रेम से सबको खाना परोस कर खिला रही थीं।

सौ ने बड़ी आत्मीयता से पूछा, ” कोमल जी आपके घर पर ना रहने से आपके पति व बच्चे आपको बहुत मिस करते होंगे न!”

इस पर ज़रा – सा झेंपकर अपनी अदा से माथे पर लटकी जुल्फों को उन्होंने गर्दन झटका कर पीछे हटाया एक मधुर – सी मुस्कान के साथ बोलीं, ” जी सो तो है। दे मिस मी अ लॉट ” उनके बातचीत करने के ढंग में भी काफी आधुनिकता थी और वे काफी स्टाइल से बातें किया करती थीं।

सभी ने अनेक प्रकार के भोजन का आनंद लिया। बातचीत में समय अच्छा कट रहा था। अब कोमल जी ने एक बड़ा – सा, ऊँचा – सा टप्पर वेयर का डिब्बा निकाला और उसमें रखे बेसन के लड्डू सबको खिलाने लगीं। साथ में गीले टिश्यू पेपर भी पकड़ाती रहीं। बार-बार कहती रहीं, ” भोजन के बाद थोड़ा स्वीट खाना तो बनता ही है। ” साथ में यह भी बोलीं कि ” यह तो घर का बना हुआ है, मैं अब मायके से लौट रही हूँ न!” जो पुरुष अब तक ऊपर बैठे थे वे भी भोजन करने के लिए नीचे उतर आए थे।

आठ लोगों की अच्छी मजलिस जमी हुई थी अब। कई प्रकार की बातें हँसी – ठठ्ठा आदि सब कुछ चलने लगा। ऐसा लगने लगा मानो सभी एक ही परिवार के सदस्य थे। शायद रेल में सफ़र करनेवाले लोग इसी तरह कुछ समय के लिए मिलते हैं और फिर बिछड़ भी जाते हैं।

भोजन समाप्त कर सब अब सोने की तैयारी करने लगे। रेलवे सेवा की ओर से सभी यात्रियों को कंबल चद् दर व तकिया दिए गए थे। अब सब आराम से सोना चाहते थे। दूसरे दिन शाम को ही सब अपनी मंजिल तक पहुँचने वाले थे।

अचानक बत्ती बंद करने से पहले कोमल जी ने बड़ी मीठी और सुरीली आवाज में एक सवाल किया, ” यहाँ कोई खर्राटे तो नहीं लेता है ना! मुझे खर्राटों से सख्त नफ़रत है।

मैं रात भर सो नहीं सकती। अगर किसी को खर्राटों की आदत हो तो….प्लीज़……

उनकी मधुर, मीठी, सुरीली आवाज़ में पूछे गए प्रश्न का किसीने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन एक चुप्पी और सन्नाटा ने अचानक सबको चुप रहने के लिए विवश कर दिया।

थोड़ी देर सभी चुप रहे तथा बगलें झाँकने लगे। पर हमारी सौ कहाँ चुप रहती भला! उसने तुरंत कोमल जी से पूछ ही लिया, ” मैडम, आपको खर्राटे से इतनी नफ़रत आख़िर क्यों है ?”

कोमल जी मानो उत्तर देने के लिए प्रस्तुत ही बैठी थीं। अपनी अदाओं और लटकों -झटकों से अपनी ज़ुल्फों को पीछे हटाते हुए बोलीं, “एक्चुअली मेरे हस्बैंड को खर्राटे लेने की बड़ी बुरी आदत है। मैं उनके इस आदत से बहुत परेशान हूँ। मुझे रात भर नींद नहीं आती। आजकल तो अक्सर मैं बाहर के बैठक में ही सो जाती हूँ। क्या करूँ मुझे तकलीफ़ जो होती है। “

फिर क्या था सब को मानो चर्चा के लिए नया विषय ही मिल गया। कोई अपने पति की कोई पिता की और तो कोई माता के खर्राटे भरने की बात पर चर्चा करने लगा। घंटा भर सभी चर्चा का आनंद लेते रहे। उस चर्चा के दौरान विभिन्न प्रकार के खर्राटों की भी चर्चा होती रही। सभी ने सहर्ष इस चर्चा में हिस्सा लिया। इस प्रकार एक मनोविनोद का वातावरण वहाँ निर्माण हो गया।

रात काफी हो चुकी थी। उस एसी कंपार्टमेंट के अन्य सभी सदस्य अपनी बत्तियाँ बुझा कर सोने का प्रयास कर रहे थे। पर हम सब की चर्चा हँसी और शोर ने औरों को भी शायद परेशान ही कर दिया था।

मैंने धीरे से कहा, ” चलिए अब सोया जाए। इस विषय पर चर्चा कल सुबह जारी रखेंगे। ” सभी को इस बात का अहसास हुआ कि बाकी सभी लोगों ने बत्ती बंद कर दी थी अतः हम लोगों ने भी एक दूसरे को गुड नाईट कहा और अपनी-अपनी चादरों और कंबलो में दुबक गए।

दूसरे दिन सुबह सभी उठे तो पहले कोमल जी ने सबसे फिर उसी सुरीली, मधुर आवाज में धन्यवाद कहा। सबको पता तो था कि कोमल जी ने सुबह-सुबह सबको धन्यवाद क्यों कहा पर फिर भी सौ उनकी थोड़ी बहुत खिंचाई करना चाहती थी। फिर अपनी मधुर मीठी सुरीली आवाज में कोमल जी ने कहा, “आप सब ने रात को खर्राटे नहीं लिए और मैं आराम से सो सकी इसलिए धन्यवाद कह रही हूँ। इतना कहकर वे अपना ब्रश- पेस्ट और हैंड टॉवेल लेकर डिब्बे के बाहर की ओर चली गईं।

उनके पीछे मुड़ते ही सौ ने अपना मोबाइल निकाला और मुझे कोमल जी की सभी तस्वीरें जो उसने पिछली रात को खींची थी दिखाई। रात के समय वह विभिन्न आवाजों में खर्राटे भर रही थीं। उस तस्वीर को देखकर और आवाज सुनकर डिब्बे की बाकी महिलाएँ ठहाका मारकर हँसने लगीं। इतने में कोमल जी ब्रश करके लौट आईं। तो सब की ओर देखकर थोड़ी देर अवाक – सी सबका मुँह ताकती रह गईं। फिर उन्हें देखकर हँसने वालों ने अपने मुँह पर हाथ रख लिया या दुपट्टे रख लिए। तो उन्होंने फिर सुरीली आवाज में पूछा, ” वाह किस जोक पर आप सब हँस रही हैं? मुझे भी तो उसमें शामिल कीजिए “।

सौ ने बड़ी अदा से कोमल जी के सीट पर बैठ जाने पर कहा, ” यह देखिए आपकी तस्वीरें। क्या आपने धन्यवाद इसलिए कह रही थीं क्योंकि सब ने आपके खर्राटे सहन किए रात भर ? वैसे मैं तो जागती ही रही रात भर। तभी तो यह तस्वीरें ले सकी। सॉरी आपको पूछे बिना ही मैंने ये क्लिक किए। “

कोमल जी कैमरे में कैद अपनी खर्राटे भरती हुई तस्वीरें देखकर अत्यंत लज्जित हुईं शायद क्रोधित भी।

सौ ने भी क्षमा माँगकर सारी तस्वीरें डिलीट कर दी।

फिर बाकी सारा दिन कोमल जी किसी से ना बोलीं और ना ही भोजन की पिटारी खुली। शायद अपने अमृततुल्य भोजन खिलाकर वे सबको उनके खर्राटे सहन करने के लिए तैयार कर रही थीं।

सौ की शरारती मैं कभी नहीं भूलूँगी।

आज वह मेरे साथ नहीं है लेकिन उसकी कुछ बातें और भुज की वह यात्रा सदैव स्मरणीय रहेगा।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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