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शिव छंद "कारगिल युद्ध"

कारगिल पहाड़ियाँ।
बर्फ पूर्ण चोटियाँ।।
देश से अभिन्न हैं।
शत्रु देख खिन्न हैं।।

ये सुना रहीं व्यथा।
धूर्त पाक की कथा।।
आक्रमण छली किया।
छल कपट दिखा दिया।।

बागडोर थी 'अटल'।
देश का सबल पटल।।
मोरचा सँभाल फट।
उठ गये जवान झट।।

छोड़ गेह द्वार को।
मात भ्रात प्यार को।।
त्यज सुहाग सेज को।
भोज युक्त मेज को।।

शौर्य पूर्ण लाल वे।
शत्रु के कराल वे।।
वीर चल पड़े तुरत।
मातृभूमि को नवत।।

गिरि शिखर बड़े विकट।
डर जरा न पर निकट।।
झाड़ियाँ विछेद कर।
मग बना बढे जबर।।

तोप गर्जने लगीं।
खूब गोलियाँ दगीं।।
वायुयान की लड़ी।
बम्ब की लगी झड़ी।।

पाक मुँह छुपा भगा।
शौर्य देश का जगा।।
जगमगा उठा वतन।
भारती तुझे 'नमन'।।
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शिव छंद विधान -

शिव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह 2121212 मापनी आधारित मात्रिक छंद है। समानिका छंद में यही मापनी वर्णिक स्वरूप में है। परंतु शिव छंद मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ने की छूट है। यह रौद्र जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। 
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
28-05-22


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