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Prerak Moral Story in Hindi / छोटे प्रेरक प्रसंग / जीवन में हमेशा सीखते रहना चाहिए

Prerak Moral Story in Hindi पाठकगणो इस पोस्ट में  Prerak Prasang Story in Hindi की कहानियां दी गयी है।  इसमें Prerak Prasang Short Story in Hindi With Moral की बेहतरीन छोटे प्रेरक प्रसंग की कहानी दी गयी है। 

प्रयास हिंदी कहानी ( Prerak Moral Story in Hindi ) 

मित्रों किसी विशिष्ट कार्य हेतु किसी ना किसी को तो कदम आगे बढ़ाना ही पड़ता है और लोग जुड़ते जाते हैं और कारवां तैयार हो जाता है।  जब तक कोई आगे ही नहीं बढ़ेगा, उस समस्या के लिए आवाज नहीं उठाएगा, जूझेगा नहीं तो वह कार्य कैसे पूरा होगा। 

मित्रों आप भी ऐसे कार्यों के लिए जो वाजिब हो उसके लिए आवाज जरूर उठायें।  आज की यह कहानी उसी पर आधारित है। रमेश गंगापुर गांव में अपने माता – पिता के साथ रहकर कृषि के कार्य में हाथ बटाता था और साथ ही साथ अपने पढाई पर भी ध्यान रखता था।

रमेश का गांव विकास के मामले में सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही का जीता – जागता प्रमाण था, जबकि उसके बगल वाले गांवो की तस्वीर ही अलग थी।

प्रेरक प्रसंग इन हिंदी विथ मोरल

बगल वाले गांव रमेश के गाँव की खिल्ली  उड़ाया करते थे। जिसका कारण था कि रमेश के गांव गंगापुर में बिजली के खम्भे तो लगे थे, लेकिन उस पर लगे हुए बल्ब सालों से ख़राब थे । हालांकि सभी के घरों में बिजली थी।

इसे लेकर प्रायः रमेश  तनाव में रहता था क्योंकि इससे गाँव में चोरी और अन्य आपराधिक घटनाएं बढ़ गयी थी। इस कारण उसकी पढाई बाधित  होती थी।

एक दिन उसे एक Idea सूझी। वह एक बड़ा सा बांस लिया और उसने अपने घर से तार जोड़कर उसमें  Bulb लगा दिया।

इसपर उसके दोस्त ने कहा, ” एक Bulb लगाने से क्या होगा ? पुरे गांव में अंधेरा तो बना ही रहेगा ? ”

जब  शाम के समय रमेश के दरवाजे के सामने का बल्ब  जला तो उसका उजाला काफी दूर तक फैला,  जिससे उधर से आने जाने वालों की समस्या में थोड़ी सी कमी आई।

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रमेश के इस प्रयास का अन्य लोगों ने भी अनुकरण  करना शुरू किया, जिससे पूरा गांव ही उजाले से सराबोर हो गया। रमेश के इस छोटे से प्रयास का अनुकरण करके गांव वालों को अपार हर्ष हुआ।

अगले वर्ष गांव के प्रधान का चुनाव होना तय हुआ था। सभी गांव वाले रमेश के पक्ष में खड़े हुए और रमेश को  प्रधान चुन लिया। यह देखकर सरकारी कर्मचारियों के रातों की नींद उड़ गई, क्योंकि रमेश एक सच्चा प्रधान था, जो अपने काम को सही तरीके से करता था।

अब रमेश का वही गंगापुर गांव अपने अगल – बगल के गावो से मिलों नहीं कोसों आगे था और रमेश प्रधान के प्रयास से प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक थे। जिस कारण गंगापुर गांव तेज गति से विकास के पथ पर अग्रसर था और इससे रमेश को विकास पुरुष की उपाधि मिल गई थी।

Moral Of The Story – किसी शुभ कार्य के लिए किसी ना किसी को आगे आना ही पड़ता और जो आगे आता उसी का नाम होता है, इसलिए ऐसा कार्य जिसमें समाज का लाभ हो कुरीतियां मिटें, उसमें आगे अवश्य ही आना चाहिए।  

गुरु कौन? Shiksha Prerak Story in Hindi

२- मनुष्य को हमेशा सीखना चाहिए।  हर Situation में सीखना चाहिए।  यह कभी भी नहीं देखना चाहिए कि हम किसने सीख ले रहे हैं।  सीख देने वाला कभी छोटा या बड़ा नहीं होता है।  आज की यह हिंदी प्रेरक कहानी इसी पर आधारित है।

आप के गुरु कौन हैं और आपने किस गुरु से शिक्षा ली है ? ” एक शिष्य ने जिज्ञासा बस  स्वामी अंजनी दास से पूछा। ” तुमने उचित प्रश्न किया ,पुत्र। वैसे तो हमारे हजारों गुरु हैं, लेकिन पूर्ण रुप से मैंने तीन गुरुओं  से शिक्षा प्राप्त की है, जो मैं तुम्हे अवश्य ही बताऊंगा। हमारा पहला गुरु समाज को हानि पहुंचाने वाला एक चोर था। “

चोर ? शब्द से सभी शिष्य चौक गए।

गुरु ने कहा, “आप लोग चौकिए मत।  उस चोर की भावना देखिए। हर मनुष्य में कोई न कोई भावना छुपी होती है।  वह अच्छी भी हो सकती है, और बुरी भी सकती है। “

मैं अपने एक शिष्य के आमंत्रण पर उसके गांव  जगदीशपुर  के लिए जा रहा था।यात्रा दूरगामी होने के कारण हमें बिलम्ब हो गया और रात हो गई।

उस समय हमनें देखा कि पास के घर से कुछ आवाज आ रही थी। मैंने सोचा रात काफी हो चुकी है, शायद उस घर में हमें आश्रय मिल जाएगा, फिर सुबह अपने गंतव्य  पर निकल पडूंगा।

यही सोच कर मैं उस घर नजदीक गया तो वहां का दृश्य देखकर अवाक् रह गया। उस घर में एक चोर सेंधमारी की कोशिश कर रहा था।यह देखकर मैंने अपने आप को नियंत्रित करते हुए उस चोर से पूछा, ” भाई मैं यहां के रास्ते से अनभिज्ञ पथिक हूं।  मुझे एक रात के लिए आश्रय चाहिए।  क्या मुझे यहाँ कहीं आश्रय मिल सकता है ? “

चोर ने कहा, ”  इतनी रात गए यहां आपको किसी के पास आश्रय नहीं मिल सकेगा। हां, अगर आप चाहो तो हमारे साथ रहने के लिए चल सकते हो। लेकिन ,सोच लो मैं एक चोर हूं। अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो मेरे साथ जब तक चाहो रह सकते हो।  ”

मैं उसके साथ रहने के लिए उसके घर चला गया। मैं उसके साथ बीस दिन तक रहा। वह हर रोज रात को हमसे कहता कि मैं अपने काम पर जा रहा हूं, आप यहाँ आराम से रहकर मेरे लिए प्रार्थना करो।

जब वह अपने काम से वापस आता तो मैं उससे पूछा करता कि कुछ सफलता प्राप्त हुई कि नहीं, तो वह कहता आज तो कोई सफलता नहीं मिली। अगर ईश्वर ने चाहा तो, कल हमें अवश्य ही सफलता मिलेगी। वह कभी निराश उदास रहता ही नहीं था, हमेशा खुश रहता था।

मुझे ध्यान और साधना करते हुए कई वर्ष बीत गए। परिणाम शून्य ही था, मैं  हताश और निराश होकर सब कुछ छोड़ने की ठान लेता, लेकिन मुझे उस चोर के कहे हुए शब्द ” ईश्वर ने चाहा तो अवश्य ही कुछ मिलेगा ” याद आ जाते। उसके बाद फिर से अपने मार्ग पर अग्रसर हो जाता।

स्वामी ने कहा मेरा दूसरा गुरु  एक कुत्ता था। यह सुनकर सभी शिष्य एक साथ बोल उठे , कुत्ता ?

इसपर  स्वामी ने कहा, हां कुत्ता। इसपर  शिष्यों ने पूछा कि कुत्ते से आपने कैसी शिक्षा ली, स्वामी जी?

स्वामी जी ने कहा, वही तो बताने का प्रयास कर रहा हूं, सावधान होकर सुनो। ज्येष्ठ मास की तपती  दुपहरी में मैं प्यास से व्याकुल नदी के तट पर जा रहा था।

उसी समय हमारे पास से एक कुत्ता गर्मी से बेहाल नदी की तरफ बहुत तेजी से दौड़ता हुआ जा रहा था। वह हमसे पहले नदी पर पहुंच गया और देखा कि प्यास बुझाने के लिए नदी में पर्याप्त जल था और जल पीने के लिए जैसे ही नदी में अपनी गर्दन झुकाई, लेकिन वह तुरंत ही भौंकते हुए पीछे चला गया।

कारण यह था कि, उसे जल में अपना प्रतिरुप परिलक्षित हुआ। वह अपने प्रतिरुप को देखकर उसे अपना शत्रु  समझकर पीछे हटकर चौकन्ना हो गया।

लेकिन प्यास लगने के कारण वह फिर से जल के समीप गया, लेकिन फिर भौंकता हुआ पीछे चला गया। यही क्रम तीन – चार बार चला। अंततः प्यास से व्याकुल  कुत्ता नदी के जल में कूद पड़ा और उसका शत्रु रुपी प्रतिरूप समाप्त हो चुका था।

थोड़ी देर के  उपरांत  वह कुत्ता तृप्त  होकर बाहर आ गया और उसके चेहरे पर पूर्ण रूपेण  संतुष्टि  के भाव को देखकर मुझे यह सीख मिली कि जो समस्याओ का निडर होकर सामना करता है, विजय श्री उसी का वरण करती है।

स्वामी जी कहा – मेरा तीसरा गुरु एक छोटा  बालक  है। शिष्यों ने पूछा, वो कैसे स्वामी जी ? स्वामी ने कहा, मैं आप लोगो की जिज्ञासा का आदर सम्मान करता हूं और उसे शांत करने का प्रयास करुंगा।

मैं एक गांव के पास से जा रहा था।  संध्या  हो चुकी थी। मुझे एक बालक हाथ में प्रज्वलित दीप लिए आता दिखा, शायद वह दीप किसी मंदिर में अपने ईष्ट  देव की आराधना के लिए जा रहा था। मैं उसके समीप पहुंच कर उस बालक से  सस्नेह प्रश्न  किया ? पुत्र, क्या यह दीप आपने ही प्रज्वलित  किया है या किसी और ने ?

उस बालक ने दृढ़ता पूर्वक  उत्तर दिया, ” यह दीप हमने ही प्रज्वलित किया है आपको शंका नहीं होनी चाहिए ? ” तभी हवा के हल्के कम्पन से एक क्षण के लिए वह दीप बुझ गया और पुनः दूसरे क्षण प्रज्वलित हो उठा। इस दृश्य को देखकर मैंने उस बालक से प्रश्न किया, ”  क्या आप बता सकते हो  कि यह दीप ज्योति एक क्षण के लिए कहां गई थी और पुनः दूसरे क्षण कहां से वापस आ गई ? “

उस बालक ने हँसते हुए उस दीप को बुझा दिया और पुनः हमसे ही प्रश्न कर बैठा, ” श्रीमान अब आप ही बताइए कि वह ज्योति कहाँ गयी है ? क्योंकि उसे जाते हुए आपने भी तो देखा है। ”

मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि  मैं उस बालक को क्या उत्तर दूं। मैं अवाक सा खड़ा रहा। तब तक वह बालक अपने पथ पर अग्रसर हो चुका था। मुझे अपने  ज्ञान का भंडार अभी भी रिक्त लग रहा था जिसे मैं अहंकार बस पूर्ण मान रहा था।

स्वामी जी ने कहा, ” शिष्यों – इस संसार में कोई भी पूर्ण नहीं हो सकता।  उसमें रिक्तता अवश्य ही रहती है। अतः प्रत्येक मनुष्य को हर पल – हर क्षण सीखने के लिए प्रयत्न शील होना चाहिए। जो हमेशा सीखने की चेष्ठा करता है,  वही सफल होता है।

Moral Of The Story – जो व्यक्ति निरंतर और हर Situation में कुछ ना कुछ सीखता है और उसे अपने जीवन में उतारता है।  वही Success के मार्ग पर आगे बढ़ता है। 

चंचला प्रेरक हिंदी कहानी 

3- Prerak Moral Story in Hindi Written  बाजार में भीड़ – भाड़ वाले स्थान पर हल-चल होती देखकर चंचला वहां पहुंची तो पता चला कि एक आदमी सड़क पर गिरा था।  पूछने पर पता चला कि उसका रुपए से भरा ‘ बटुआ ‘ किसी उचक्के ने चुरा लिया।

जिससे उस आदमी को दिल का दौरा आ गया और वह वहीँ गिर गया। ” आप लोग कुछ सहायता तो कर नहीं रहे, सिर्फ घेरा बनाकर खड़े रहने से कुछ नहीं होगा।  ” चंचला ने कहा।

” तो आप ही कुछ क्यूं नहीं करती।  ” एक अधेड़ सज्जन बोल उठे। ” हां मैं ही करुँगी।  आप लोग बस तमाशा देखो। ” चंचला ने कहा।

चंचला के प्रयास से वह आदमी उठकर बैठा  और फिर चंचला ने उसके द्वारा बताए हुए दिशा में दौड़ लगा दी। करीब पांच मिनट के बाद एक ‘ हट्टे – कट्टे ‘ आदमी के साथ लौटी  तथा पहले वाले आदमी के करीब ” पांच हजार ” रुपए  भी दिलवा दिए।

” आपने  ऐसा क्यूं किया भाई साहब। हमें इस समय रुपयों की बहुत आवश्यकता  थी।  ” पहले वाले आदमी ने कहा।

” मुझे क्षमा करें महाशय।  मैं एक निहायत ही गरीब आदमी हूँ और मुझे भी पैसों की आवश्यकता थी, इसलिए मैंने ऐसा किया।  मुझे क्षमा करें।  ” चोर ने कहा।

” ठीक है। आपको कितने पैसे चाहिए ? ” चंचला ने कहा।

इसपर चोर ने कहा, ” मुझे ५००० रुपये की आवश्यकता है।  मैं बहुत ही मुसीबत में हूँ। ”

” आप लोग अपनी आँखे बंद करें। ” चंचला ने कहा।

उसके बाद चंचला ने १००००  रुपये चोर को देते हुए कहा, ” तुम वादा करो कि तुम कभी चोरी नहीं करोगे।  ५००० रुपये तुम अपनी जरुरत के लिए खर्च करो और बाकी ५००० में कुछ बिजनेस करो। ”

” तुम्हारे पास इतने पैसे ? ” चोर ने कहा।

” आप आम खाओ, गुठली मत गिनो, लेकिन एक बात याद रखो अब कभी चोरी मत करना।  ” चंचला ने थोड़ा गुस्से से कहा।

भुवनेश्वरी कॉलेज का वार्षिकोत्सव नजदीक आ गया था। प्रिंसिपल से लेकर क्लर्क तक सभी उत्साह से अपने -अपने काम को पूर्ण करने में लगे थे और कॉलेज के लड़के और लड़कीयों के समूह अपने – अपने नेतृत्वकर्ताओं का आदेश मानते हुए स्कूल प्रबंधक का पूर्ण रूपेण सहयोग कर रहे थे।

अचानक से ईश्वरीय व्यवधान आ खड़ा हुआ,  जिसके फल स्वरूप बारिश के साथ तेज हवाएं चलने लगी। आज  ईश्वरीय व्यवधान का पांचवां दिन था और सातवें दिन ” वार्षिकोत्सव ” होना था।

प्रिंसिपल कनकलता गर्ग जो कि एक बहुत ही ” बिदुषी ” महिला थी। उस व्यवधान के समय भी अपने सहयोगियों के साथ एक बड़े से कक्ष में छात्र समूह के नेतृत्व के साथ बिचार – विमर्स में लीन थी। सामने यक्ष प्रश्न था  कि बरसात बंद होने पर इतनी जल्दी से सब तैयारी कैसे होगी।

क्लर्क रामाधीन चौधरी के माथे पर परेशानी के भाव  परिलक्षित होने लगे थे। तभी एक आदित्य वर्ण का लड़का बोला, ” श्रीमान  जी अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं एक सुझाव  दे सकता हूं।  ”

” अवश्य विवेक तुम सुझाव दे सकते हो, पसंद आने पर उस पर अमल भी किया जाएगा। ” कनकलता ने कहा।

” श्रीमान यह  उत्सव  बड़े पैमाने पर होने वाला है। चूँकि प्रकृति – प्रदत्त व्यवधान उतपन्न हुआ है, इसलिए  हम इसे छोटा और भव्य कर सकते है।” विवेक ने कहा।

तभी बीच में रामाधीन चौधरी ने कहा, ” बात तो कुछ हद तक तो ठीक है, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि पहले बारिश तो बंद हो। मौसम विभाग के अनुसार अभी २४ घंटे बहुत तेज बारिश होगी। ”

” बरसात  तो अभी दो घंटे के अंदर ही बंद होगी।  ” चंचला ने कहा।

” तुम्हें क्या मौसम विभाग की तरफ से सूचना मिली है ? ”  चौधरी थोड़ा नाराज होकर बोले।

” हमें इस कन्या की बातों को परखना  चाहिए। चौधरी साहब ” कनकलता गर्ग ने कहा।

उन्होनें चंचला के बारे में काफी सुन रखा था और वह भी ‘ चंचला ‘ की योग्यता को परखना चाहती थी और आश्चर्यजनक २ घंटे बाद बारिश अचानक से रुक गयी। सभी लोग बहुत ही आश्चर्यचकित थे।

” हमारा तुम्हे आहत करने इच्छा कदापि नहीं थी चंचला। सारी व्यवस्था हमें ही करनी है, इसलिए हमें थोड़ा अपने उपर ‘ बोझ ‘ जैसा अनुभव हो रहा था। ” चौधरी साहब थोड़ा  झेंपते हुए बोले।

” इस बोझ को आप विवेक, घनश्याम और चंचला को थोड़ा – थोड़ा बांट दीजिए। आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। ” कनकलता ने कहा।

”  थोड़ा ही क्यों  श्रीमान जी,  हम लोग पूरा बोझ उठाने के लिए तैयार है।  चौधरी सर हमारा मार्गदर्शन करें।  ”  विवेक और घनश्याम एक साथ कह उठे।

” मैं भी इसमें सहयोग करुँगी।  ” चंचला ने कहा।

इसपर कनकलता ने कहा, ” हाँ क्यों नहीं।  पुरे संसार में आप लोग देख लीजिए नारी शक्ति दिख जाएगी। कदाचित नारी शक्ति घर से लेकर देश – देशांतर तक व्यवस्था के मामले में पूर्ण रूपेण  सक्षम  है। ”

चंचला को ग्रुप लीडर बनाया गया। अगले दिन पुरे स्कूल में  चंचला ने सबको सबका काम समझा दिया। दूसरे दिन उत्सव था। ‘ भुवनेश्वरी ‘ कॉलेज के ” वार्षिकोत्सव ” में प्रदेश के बड़े – बड़े अधिकारीयों के साथ अन्य कॉलेज के प्राचार्य शिक्षक समूह के साथ – साथ मुख्यमंत्री को भी आमंत्रित किया गया था। सभी लोग पधार चुके थे।  मुख्यमंत्री का आना शेष था, क्योंकि दीप प्रज्वलित  उन्ही के  कर कमलों द्वारा प्रस्तवित  होना था।

समय खिसकता जा रहा था। कनकलता के माथे पर चिंता की लकीरें  साफ दिखाई दे रही थी। उन्होंने चंचला को सारी बातें बताई। उचित है, मैं आधे घंटे में आती



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