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Stories For Kids in Hindi / जीवन एक संघर्ष है हिंदी की बहुत अच्छी कहानी

Stories For Kids in Hindi पाठकगणों इस पोस्ट Short Stories For Kids in Hindi की कहानी दी गयी है।  मुझे उम्मीद है कि यह Hindi Story आपको जरूर पसंद आएगी। 

जीवन एक संघर्ष है ( Stories For Kids in Hindi )

अनुपमा ने टिफिन तैयार कर दिया था। विशाल को ऑफिस जाना था और वह टिफिन लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया अनुपमा गिरने वाली थी, तभी विशाल ने उसे संभाल लिया, अगर विशाल ने उसे संभाला नहीं होता तो वह गिर गई होती।

अनुपमा को बिस्तर पर लिटाकर विशाल ने डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर ने आकर अनुपमा को चेक किया और बाहर आयी । विशाल बड़ी व्यग्रता के साथ बाहर घूम रहा था तभी डॉक्टर साहिबा ने विशाल से कहा, “आपके घर में एक नन्हे मेहमान का आगमन होने वाला है, इस ख़ुशी में मुँह मीठा कराइए।”

हिंदी की प्रेरक कहानी 

विशाल को डॉक्टर की बात पर विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि विशाल और अनुपमा की शादी को छः वर्ष बीत चुके थे और अभी तक भगवान की कृपा नहीं हुई थी। इसलिए उन दोनों ने बच्चे की उम्मीद छोड़ दी थी।

” क्या आप सच कह रही है डॉक्टर साहिबा ? ” विशाल ने डाक्टर से कहा। ” हाँ मैं सौ प्रतिशत सच कह रही हूँ आप पिता बनने वाले है और अब जल्दी से मुँह मीठा कराइए। ” डाक्टर साहिबा ने कहा।

विशाल का मन मयूर की तरह नाच उठा और वह दौड़कर अनुपमा के पास  गया और बोला, ” अनु हमारा बच्चा। हम माता – पिता बनने वाले है। ”

विशाल और अनु की खुशियां सातवें आसमान पर थी और हो भी क्यों न, ईश्वर ने उन्हें यह दिन छः वर्ष के बाद प्रदान किया था। विशाल ने अपने और अनु के माता – पिता को यह खुशियों भरा संदेश दिया अगले दिन सभी लोग उनसे मिलने पहुंचे। दोनों की माता ने आपसी सहमति बनाई और क्रमवार अनुपमा की देखभाल करने लगी।

खुशियों के पल बहुत जल्द ही बीत जाते है। नौ महीना कब बीत गया पता ही नहीं चला और नन्हे मेहमान का शुभागमन हुआ। अनुपमा ने एक खूबसूरत से लड़के को जन्म दिया था। नर्स ने जब अनुपमा को बच्चे का अवलोकन कराया तो वह बस लगातार बच्चे को ही निहार रही थी। आखिर वह इस पल का वर्षो से इंतजार कर रही थी।

न जाने कहाँ – कहाँ अपने माथा टेके और न जाने कितनों से आशीर्वाद लिया।  उसके पश्चात् ही उसे यह क्षण देखने को प्राप्त हुआ। विशाल तो अपने बेटे को देखकर बहुत ही प्रसन्न थाऔर अपने बेटे को गोद में लेकर ख़ुशी से कहा मेरा रुद्र यह सुनकर अनुपमा की खुशी की सीमा नहीं रही।

अनुपमा को भी यह नाम बहुत पसंद आया और परिवार के सभी सदस्य बच्चे को बारी – बारी  से अपनी – अपनी गोद में लेकर खिलाने लगे। लेकिन यह ख़ुशी अधिक समय तक नहीं रही। अकस्मात रुद्र के हाथ पैर में ऐठन आ गई और वह वक्री अवस्था में आ गया।

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यह दृश्य देखकर विशाल घबरा  उठा और रुद्र को लेकर डॉक्टर के पास भागा। डॉक्टर ने रुद्र का जाँच किया। रुद्र की जांच के बाद डॉक्टर ने विशाल से कहा, “आपके बेटे को असाध्य रोग हुआ है और इस बीमारी का इलाज असंभव है। अब आपका लड़का कभी चल भी सकेगा या नहीं यह कहना असंभव है।”

इसके बाद डाक्टर ने आगे कहा, ” दवाइयों से कुछ हद तक ही ठीक हो सकता है, लेकिन पूर्ण रुप से स्वस्थ होना भगवान के हाथ में है और तुमको बहुत विशेष देख भाल करनी होगी तभी इस लड़के को कुछ फर्क पड़ सकता है। ” डॉक्टर की यह बात सुनकर विशाल निराश हो गया।

” अभी एक क्षण पहले ही उसे ख़ुशी मिली थी और अभी भगवान ने उसे इतना बड़ा कष्ट दे दिया। उस नन्ही सी जान को विकलांग बना दिया। मैंने ऐसा कौन सा बुरा कर्म किया था जो भगवान ने हमें इतना बड़ा दंड दिया। ” वह मन ही मन निराश होकर सोचने लगा।

Short Moral Stories For Kids in Hindi

यह बात जब अनुपमा को मालूम हुई तो उसके चक्षु अश्रु वर्षा करने लगे। फिर वह धैर्य रखते हुए विशाल से बोली, “विशाल तुम चिंता मत करो डॉक्टर ने कहा है न दवाइयों के साथ अच्छी देखभाल से रुद्र काफी हद तक ठीक हो सकता है, तो जरुर ठीक होगा और वह हमारी आँखों का तारा है अगर नहीं भी चल पाया तो मैं पूरी जिंदगी उसे कंधे पर बैठाकर घुमाने को तैयार हूँ। ”

रुद्र की स्थिति में पहले से सुधार हुआ था। उसका मुंह पहले काफी टेढ़ा था जो अब कम हो गया था, लेकिन उसके मुंह से लार अवश्य ही गिर जाती थी। उसके हाथ पैर भी कुछ सीधे हो चुके थे। रुद्र अब तीन वर्ष का था लेकिन अभी तक चल नहीं सका था। लेकिन थोड़ा – थोड़ा सरकने लगा था।

एक दिन डॉक्टर ने विशाल और अनु को अपने अस्पताल में बुलाया।रुद्र की स्थिति को देखकर डॉक्टर ने विशाल और अनुपमा से कहा, “मुझे नहीं लगता है कि रुद्र इससे ज्यादा ठीक हो सकता है क्योंकि अब उसके उपर उन दवाइयों का ज्यादा असर नहीं हो रहा है।” इसलिए आप लोग बेवजह दवा खिलाना बंद कर दीजिए।

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अनुपमा ने डॉक्टर से कहा, “कोई और तो उपाय होगा हम यूं ही प्रयास करना बंद नहीं कर सकते है। हमें कुछ ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे रुद्र चल सके।”

इसपर डॉक्टर ने अनुपमा से कहा, “अब इसके शरीर की मालिश ही आखिरी विकल्प है।अगर मालिश करने से रक्त संचार बढ़ेगा तो ठीक होने की दो प्रतिशत आशा है, पर चल नहीं पाएगा।”

अनुपमा ने डॉक्टर से कहा, “दो प्रतिशत की आशा ही बहुत है। हम हिम्मत नहीं हारेंगे।”

जब विशाल और अनुपमा के द्वारा यह बात विशाल की माँ को पता चली तो उन्होंने कहा कि, “अब रुद्र की जिंदगी सामान्य नहीं हो सकती। हमारी डॉक्टर से बात हुई थी अनुपमा को दुबारा मातृत्व प्राप्त हो सकता है। तुम लोग दूसरे बच्चे के लिए भगवान से प्रार्थना करो। वह तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण  करेगा।”

यह बात सुनकर अनु और विशाल की बेचैनी और बढ़ गई। अनुपमा ने अपने सास से कहा कि, “रुद्र को इस समय बहुत ही सेवा और सुश्रुषा की आवश्यकता है। दूसरे बच्चे के आने पर रुद्र अपनी जिंदगी में पीछे छूट जाएगा उसकी उचित ढंग से सेवा और सुश्रुषा नहीं हो पाएगी। इसलिए अब हमें रुद्र के लिए ही जीना है और वह हम लोगो की जिंदगी है।

अनु ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी और प्रतिदिन सुबह और शाम रुद्र के शरीर की मालिश करती और साथ में व्यायाम भी करवाती। जिस दिन विशाल को थोड़ा समय मिलता वह भी रुद्र की परिचर्या में जुट जाता। रुद्र अब चार वर्ष का हो चुका है और आज उसका जन्मदिन है।

अनु और विशाल सुबह से ही तैयारी में लगे हुए थे। उन्होंने रुद्र की अब तक की सभी तस्वीरों से हाल को सजाया था। रुद्र बोलने तो लगा है पर उसका मुंह थोड़ा वक्र होने के कारण उसकी आवाज सबको समझ में नहीं आती  पर एक माँ को अपने बच्चे की हर बात अमझ में आ जाती है।

अनु और विशाल के प्रयास से रुद्र अब खड़ा होने का प्रयास करता लेकिन पुनः गिर जाता था। अनु ने अपना धीरज नहीं डिगने दिया, सभी मेहमान पार्टी में आ गए थे। अनु रुद्र को लेने उसके कमरे में गई, लेकिन रुद्र वहां नहीं था।

तभी अनु ने देखा कि बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है। यह देखकर अनुपमा भागते हुए बालकनी में आई और रुद्र को वहां देखकर अनुपमा को तसल्ली हुई। और वह रुद्र के सामने बैठ गई रुद्र दौड़कर उसके गले लग गया।

तभी विशाल की आवाज आई, “अनुपमा  देखा तुमने रुद्र तुम्हारे पास चलकर आया है। दो कदम ही सही पर रुद्र चला।” यह सुनते ही अनु की आखें भींग गई और बड़े ही धूम – धाम से रुद्र का जन्मदिन मनाया गया।

अनुपमा अब पहले से अधिक रुद्र के व्यायाम और मालिश पर ध्यान देने लगी। अनु की कोशिश सफल हुई और रुद्र चलने लगा, लेकिन उसके हाथ अभी भी वक्र ही थे।

लेकिन वह बिना किसी के सहारे ही धीरे – धीरे चल लेता था। रुद्र अब अपने काम स्वयं ही कर लेता था। अनु और विशाल अपनी कोशिशों से बहुत ही खुश थे। उन्होंने अब रुद्र को स्कूल भेजने के बारे में सोचा।

रुद्र का दिमाग बहुत तेज था। हाथ मुड़े होने से उसे लिखने में थोड़ा परेशानी होती थी और इस कारण उसके लिखे हुए अक्षर वक्र हो जाते थे और सही आकार नहीं ले पाते थे। रुद्र ने अपने माता – पिता से एक बात बहुत बढ़िया सीखी थी। वह बात थी कि हिम्मत नहीं हारना और रुद्र ने प्रयास जारी रखा।

अनुपमा का प्रयास कामयाब हुआ अब रुद्र लिखने भी लगा था। उसकी लिखावट अच्छी नहीं थी लेकिन वह अपने लिखे हुए शब्द समझाने में कामयाब तो हो ही गया था। किस्मत ने रुद्र से बहुत कुछ छीन लिया था। लेकिन उसे विकलांग बनाकर उसे अच्छे दोस्तों का उपहार भी दिया था। जिसमे मंजीत, किश न, शंकर, वरुण और सोनम खास थे।

सभी दोस्त उसका विशेष ध्यान रखते बस में चढने और बैग टांगने में भी रुद्र की सहायता करते। रुद्र का स्वभाव बहुत ही अच्छा था इसलिए उसकी सहायता के लिए सभी हमेशा तैयार रहते।

अब रुद्र छठवीं कक्षा में जाने वाला था। उसके दोस्त दूसरे स्कूल में प्रवेश लेने वाले थे, क्योकि रुद्र का पहला स्कूल पांचवी तक ही था।

रुद्र भी उसी स्कूल में प्रवेश की तैयारी की सभी बच्चो का टेस्ट लिया गया। जिसमे रुद्र को भी उसके दोस्तों के साथ परीक्षा के लिए एक घंटे का समय मिला था। एक घंटे के उपरांत अध्यापक ने सबकी उत्तर पुस्तिका ले ली।

रुद्र के सभी दोस्तों का प्रश्न पत्र बहुत ही अच्छा हुआ था। पर रुद्र अकस्मात रोने लगा उसके दोस्तों ने उससे पूछा क्या हुआ? रोते हुए रुद्र ने कहा, “मैं सभी बच्चो के जैसा नहीं होने के कारण तेज नहीं लिख पाया और हमारा आधा प्रश्न पत्र छूट गया जिसके कारण मैं फेल हो जाऊंगा।”

विशाल को यह बात ज्ञात होने पर उसने रुद्र से कहा, “बेटा तू सबके जैसा नहीं हो सकता क्योकि तू सबसे खास है और जो सबसे खास होते है वह सबके समान नहीं हुआ करते। तुम चिंता मत करो तुम्हारा प्रवेश इसी स्कूल में होगा। ”

उसके बाद विशाल ने स्कूल में जाकर प्रधानाचार्य से मिलकर कहा, “मेरा बेटा इसी स्कूल में पढ़ना चाहता है उसे एक मौका और दीजिए वह आपको निराश नहीं करेगा।”

इसपर प्रधानाचार्य ने विशाल से कहा, “हम सिर्फ उन्ही बच्चो को प्रवेश देते है जो पढ़ने में कुशल हो ” विशाल ने कहा, “मैं दावे के साथ कहता हूँ हमारे बेटे से ज्यादा कुशल छात्र आपको कही नहीं मिलेगा।  कृपया एक बार आप हमारे बेटे से मिल लीजिए आप स्वतः ही समझ जाएंगे। मैं उस पर दया के लिए नहीं कहता हूँ आप थोड़ा समय ज्यादा दीजिए।”

प्रधानाचार्य रुद्र से मिले और उसे दुबारा मौका दिया गया। इसबार रुद्र ने प्रवेश परीक्षा बहुत ही अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की।  अब रुद्र का भी अपने दोस्तों के साथ उसी स्कूल में प्रवेश हो गया। लेकिन उसके नए सहपाठी रुद्र से सामंजस्य नहीं बिठा पाते थे।

रुद्र के मुंह से लार गिरने पर अन्य छात्र उसका उपहास करते थे। रुद्र के पुराने सहपाठी उसके उच्चारण को काफी समय साथ रहने के कारण समझ जाते थे,  लेकिन नए सहपाठी नहीं समझ पाते थे। इसलिए रुद्र निराश हो जाता था।

Moral Stories For Kids Kids in Hindi 

रुद्र की निराशा को देखकर अनुपमा बहुत चिंतित हो उठी। रुद्र ने अनुपमा से कहा, “आज अध्यापक ने सभी छात्रों के साथ साथ हमसे भी पूछा, तुम क्या बनना चाहते हो ? तो मैंने कहा मैं इंजीनियर बनना चाहता हूँ। मेरे पुराने दोस्तों को छोड़कर अन्य छात्र मेरा उपहास करने लगे। एक लड़के ने कहा, “चलना तो आता नहीं मुंह से लार टपकती है क्या ऐसे ही इंजीनियर बनेगा ?”

इसके बाद रूद्र ने आगे कहा, ” माँ किशन  ने हमारे लिए उस लड़के को बहुत पीटा। अगर अध्यापक ने नहीं छुड़ाया होता तो किशन उसका हाथ पैर भी तोड़ देता। पर माँ वह लड़का तो ठीक ही कह रहा था मैंने सपना तो बहुत बड़ा देखा लेकिन मैंने अपने पर गौर नहीं किया। ”

जिस तरह मयूर बहुत बढ़िया नाचता है लेकिन जब अपने पैरों की तरफ देखता है तो निराश हो जाता है। बिलकुल हमारी तरह, और रुद्र फूट -फूटकर रोने लगा।

यह बात सुनकर अनुपमा ने रुद्र से कहा, “बेटा तुम्हे पता नहीं है, तुम्हारे पैदा होने के कुछ समय बाद ही असाधारण बीमारी का तुम्हारे उपर प्रभाव पड़ा था। तो डॉक्टर ने कहा था कि अब तुम कभी नहीं चल पाओगे। लेकिन देखो आज तुम चल सकते हो और दौड़ने वाले के सहारे तुम क्रिकेट भी अच्छा खेलते हो। हमने उस समय अपने विश्वास को नहीं डिगाया तो अब भी हमारा विश्वास नहीं डिगेगा, और देखना तुम एक दिन  इंजीनियर अवश्य ही बनोगे।”

रुद्र ने हारना नहीं सीखा था। वह जो सोच लेता उसे अवश्य ही पूर्ण करता था। वह अपने इंजीनियर बनने की धार को और तेज करने लगा और कठिन मेहनत के साथ प्रयास करने लगा।

दसवीं बोर्ड की परीक्षा में उसे सहायक लिखने वाला मिला था और उसने उस परीक्षा में टॉप किया था। लेकिन बारहवीं की परीक्षा में सहायक नहीं मिला लेकिन एक घंटे का ज्यादा समय बोर्ड ने दिया है। ” मैं अपने सभी प्रश्न पत्र हल कर लूंगा। ” रुद्र ने पूरे आत्मविश्वास के साथ विशाल से कहा।

परीक्षा हो गई। रुद्र ने जल्दी लिखने की कोशिस की, लेकिन शारीरिक बनावट के फलस्वरुप जल्दी लिख नहीं पाया। लेकिन उसे मालूम था कि जितना लिखा गया है, वह अच्छे नंबरों के लिए पर्याप्त होगा। अब सबको परीक्षाफलों का इंतजार था।

रुद्र ने अपने कौशल से वह कर दिखाया जो सबसे ही अलग था। वह बिना किसी लिखने वाले सहायक के भी सबसे ज्यादा नंबर लाया था और अच्छे नंबरों के फलस्वरुप ही उसे आई. आई. टी. जैसे संस्थानों में प्रवेश मिल गया और उसकी इस सफलता पर सभी चकित थे।

रुद्र की इस कामयाबी पर उसके माता और पिता को सम्मानित करने के लिए बुलाया गया। रुद्र एक जीता जागता उदाहरण बन गया उसने अपनी शारीरिक कमी को अपनी प्रगति में बाधा नहीं बनने दिया और इसकी इस सफलता में सबसे बड़ा हाथ उसके माँ और पिता का था। जिसने उसे हर संकट से डटकर सामना करने का साहस दिया था।

रुद्र ने सारी कहानी बच्चो को सुनाई और कहा, “मन के हारे हार है , मन के जीते जीत।  अगर मैं मन से हार जाता तो हार निश्चित था। इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचो नकारात्मक मत सोचो।

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