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Kahani in Hindi Writing / जब बतख बनी खूबसूरत औरत, पढ़ें हिंदी कहानी

Kahani in Hindi Writing मन्दाकिनी नदी के तटपर गिरधरपुर नामक एक रियासत थी। वहाँ के राजा का नाम यादवेंद्र सिंह थे  और उसकी पत्नी का नाम रूपमती था। गिरधरपुर रियासत में भगवान की बहुत कृपा थी , और वहां के प्रजा जन को किसी प्रकार का कष्ट नहीं था।

एक दिन राजा अपने दरबार में बैठे हुए थे और किसी बात पर चर्चा चल रही थी, लेकिन राजा एका-एक उदास हो गए। उनकी उदासी को उनका प्रधान मंत्री गोपाल भांप गया, क्योंकि वह राजा की हर बात जनता था। उसने सभा समाप्त की घोषणा कर दी। सभी दरबारी अपने – अपने घर चले गए।  राजा यादवेंद्र और प्रधान मंत्री गोपाल राज दरबार में ही रह गए थे।

जब बतख बनी खूबसूरत औरत Hindi Kahani Writing Short

गोपाल ने कहा, ” महाराज ! मैं आपकी उदासी का कारण समझता हूँ, लेकिन इसमें भगवान की मर्जी के आगे कोई क्या कर सकता है ? ”

” हाँ गोपाल तुम ठीक कहते हो।चलो,अच्छा हम लोग टहल कर आते हैं। ” यह कहते हुए राजा यादवेंद्र सिंह और गोपाल तलहटे हुए उस राज की शाही झील की तरफ चले गए।

राजा और गोपाल के बीच वार्तालाप चल ही रहा था कि राजा की नजर तालाब के पानी पर पड़ी, जिसमें हल्का कम्पन हो रहा था। उन्होंने ध्यानसे देखा तो वहां एक बतख थी। ” गोपाल उधर देखो, यह कैसी बतख  है। ऐसी बतख  मैंने आज तक देखी नहीं ” राजा ने गोपाल से कहा।

” हाँ महाराज ! बहुत ही सुन्दर बतख  है, लेकिन ? ”

” लेकिन क्या गोपाल ? “राजा ने गोपाल की बात को काटते हुए कहा। ”

” इस सुनहरी बतख को देखने के बाद हमारा मन जैसे उसकी  तरफ खींचता चला जा रहा है। ” गोपाल ने कहा।

” गोपाल तुमने तो हमारे मन की बात कह दी।  हमें भी ऐसा ही लग रहा है, जैसे कोई चुम्बक किसी वस्तु को अपनी तरफ खींच रहा हो वैसा ही महसूस हो रहा है। चलो बत्तख की तरफ चलते है। ” राजा ने कहा।

उसके बाद  दोनों बतख के पास पहुंच गए।  बत्तख को देखकर रहा बहुत ही प्रसन्न हुए खुश होकर उसे अपने पास बुलाने लगे और पहले ही प्रयास में बत्तख राजा के कंधे पर आकर बैठ गई।  राजा को ऐसा एहसास हुआ जैसे उनकी अपनी छोटी बच्ची हो।

यह देखकर गोपल आश्चर्य से बोला, ” महाराज ! भगवान ने आपको बतख  के रूप में एक छोटी सी बच्ची दे दिया है। अब आप और रानी दोनों मिलकर इसकी परवरिस कीजिए। ”

राजा राजमहल में आए तो रानी उदास बैठी थी। राजा के गोंद में एक सुनहरी बत्तख को देखकर रानी बहुत खुश हुई। रानी के समीप जाते ही ‘ सुनहरी बत्तख ‘राजा के पास से उड़कर रानी की गोंद में चली गई , “जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की गोंद में चला जाता है। ”

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उसके बाद राजा ने रानी को पूरा वृतांत विस्तार से बताया , रानी बहुत ही हर्षित हुई। रानी ने एक माँ की तरह बतख  को पालना शुरू किया ,  उसका नाम ‘ नयनतारा  ‘ रखा गया। बत्तख इंसानी बोली के साथ ही सभी खूबियां सीख गयी थी।  इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए , तो रानी ने राजा से कहा की अब हमारी नैना बड़ी हो गई है। आप उसकी शादी के लिए कही लड़का देखिए।

राजा ने कहा, ”  क्या मजाक कर रही हो ?  (रानी ने बत्तख का नाम नयनतारा रखा था , उसे नैना के नाम से सम्बोधित करती थी। ) मैं मजाक नहीं हकीकत कहती हूँ। लड़का ऐसा ढूढ़िये कि वह गरीब हो , हम लोग अपना राज्य उसी को दे देंगे। उसका भी जीवन यापन हो जायेगा और हमारी भी इच्छा पूरी हो जाएगी कि हमने भी  ‘ कन्या दान ‘  किया।

राजा ने यह बात अपने मंत्री गोपाल को बताया। गोपाल न कहा, ” आप निश्चिंत रहिए, महाराज यह काम हो जायेगा। ”

दूसरे दिन गोपाल ने राजा को खबर दी कि मैंने लड़का देख लिया है। लड़का पांच भाइयों में सबसे छोटा है। उसका नाम मनीष है। हमने उसे सब कुछ बता दिया है। लड़का गरीब घर का है, लेकिन उसके लक्षण राजशाही जैसे है। उसका खानदान पूर्व में किसी रियासत का मालिक था, लेकिन समय चक्र से गरीब हो गया है।

“सोना कीचड़ में  पड़ा रहेगा तो भी उसकी चमक फीकी नहीं होती।  हमें वह रिश्ता मंजूर है।  ” राजा ने कहा। उसके बाद शादी की तैयारी हो होने लगी।

निश्चित समय पर बारात आ गई।  बारातियों का खूब स्वागत हुआ।  लड़का जब ‘कोहबर ‘में गया तो रानी जो उसकी ‘सासू माँ ‘ थी , उन्होंने लडके को पूरा बात बताई तो ‘दूल्हे ‘ लडके ने कहा कि हमें सब पता है।आप बिदाई करिए।

‘लड़का बत्तख रूपी दुल्हन के साथ’ अपने घर आ गया। उसकी भाभियों ने तथा गांव की औरतों ने ‘दुल्हन’को देखने की इच्छा जताई तो लड़के ने इंकार कर दिया। और ‘ बत्तख रूपी दुल्हन को ‘ कमरे में बंद कर दिया।

एक दिन लड़के के भाभियों ने आपस में मसविरा किया कि  ‘मनीष’ अपनी औरत को छुपा कर रखता है। इसे किस तरह बाहर निकाला जाए। सबने मिलकर एक नयनतारा को बिस्तर सिलने को दिया , तो भीतर से आवाज आई कि आप लोग कपड़ा और सुई धागा रख दीजिए। कल आपको बिस्तर तैयार मिलेगा। तो ‘मनीष ‘ की  भाभियों ने वैसा ही किया।

उन्हें सुबह -सुबह ही बिस्तर बाहर रखा हुआ मिला, वह  भी बहुत शानदार तरीके से। इसी तरह उन लोगों ने उसकी कई बार परीक्षा ली और नैना सभी परीक्षा में पास हो गई। एक दिन गांव की एक औरत आई उसे भी मालूम था कि मनीष अपनी औरत को किसी के सामने आने नहीं देता है, सो उसने एक प्लान बनाया था।

वह औरत मनीष से बोली, ” एक साल हो गया तुम्हारी शादी को। तुम अपनी शादी के सालगिरह की पार्टी कब दे रहे हो ? ” मनीष के बोलने से पहले ही अंदर से आवाज आई,”  चाची आप सब सामान भिजवा दो।  आप लोगो के लिए कल दोपहर में पार्टी का इंतजाम हो जाएगा। ”

” चुप हमेशा बक-बक करती है। करना तो कुछ आता नहीं सिर्फ बोलती रहती है। ”  मनीष गुस्से से बोला तो ‘ नैना ‘ चुप हो गई।

” अरे बेटा गुस्सा नहीं करते हमें सब पता है। मैंने तुम्हारी ‘ दुल्हन ‘ की आवाज सुनी।  अगर उसकी आवाज इतनी सुन्दर है तो उसकी सूरत कितनी सुन्दर होगी।  ठीक है, मैं जा रही हूँ।  शाम को सब पार्टी  का सामान आ जाएगा। ” उस औरत ने कहा।

शाम होते ही सब सामान आ गया। मनीष तो बेचारा परेशान वह ‘ बत्तख ‘ रूपी औरत से क्या कह सकता था ? उधर सुबह चार बजे से ही ‘ नैना ‘ का कार्य कलाप चालू था। रानी ने ‘ बत्तख ‘ रूपी लड़की को सब कुछ सीखा दिया था, परन्तु उसे रोटी बनाना नहीं आता था।

‘ नैना ‘ ने सब खाना बनाकर रख दिया था और रोटी बनाने का नम्बर आया तो वह परेशान हो गई।  समय बीत रहा था उजाला होने वाला था और ‘ नैना ‘ रोए जा रही थी।

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उसी रास्ते से “देवाधि देव महादेव तथा महादेवी पार्वती “जा रहे थे। माता पार्वती ने करुण क्रंदन सुना तो उनका  दिल द्रवित हो उठा । उन्होंने भोलेनाथ से कहा, ”  महादेव कोई रो रहा है।  इस करुण क्रंदन से मुझे बहुत दुःख हो रहा है। कृपा करके आप उस प्राणी के दुखों का  निवारण  करें। ”

” प्रिये तुम हमेशा ऐसा ही करती हो। मै इस संसार में सबका ‘ दुःख निवारण ‘ करता रहूँगा तो अपने – अपने कर्मों का फल कौन भोगेगा ? ” महादेव ने कहा।

” सिर्फ एक बार आप हमारी बात मन लीजिए। फिर मैं किसी काम के लिए आपको कष्ट नहीं दूंगी। ” माता पार्वती ने कहा।

” तुम हमेशा ऐसे ही कहती हो,  लेकिन अगली बार फिर वही बात दुहराती हो। ” महादेव ने कहा।  अब  ‘ माता पार्वती ‘ को थोड़ा रोष आ गया। उन्होंने कहा, ” आप जाइए मैं ही देखती हूँ वह दुखियारी कौन है? ”

माता पार्वती उस तरफ गई, जहाँ से रोने की आवाज आ रही थी। उन्होंने देखा एक ‘ बतख  ‘ खूब रो रही थी। उन्होंने उससे पूछा, ” क्या बात है? ”

इसपर बतख  ने पूरा ‘ वृतांत ‘ कह सुनाया।  माता पार्वती ने पीछे देखा तो भोलेनाथ भी खड़े थे।  भोलेनाथ जी बतख से बोले, ” तुम अपना  पंख फैलाओ। ”

बतख  ने वैसा ही किया।  भोलेनाथ ने उसे अपने चिमटे से छुआ और बतख  बहुत ही खूबसूरत औरत बन गयी।  उसने उन दोनों को प्रणाम किया और उसे आशीर्वाद देकर ‘ महादेव पार्वती ‘ अंतर्ध्यान हो गए।

उधर वह औरत सुबह ही देखने के लिए आई ” क्या हो रहा है ? ”

नैना तब तक रोटी बनाकर जानेवाली थी।  नैना की खूबसूरती देखकर उस औरत की आखें चौधियां गयी।  इतने में नैना घर के अंदर जा चुकी थी। अब तो वह औरत मनीष के घर का दरवाजा जोर- जोर से पीटने लगी।

इतने में मनीष की नींद खुल गई।  उसने ‘नैना’ को देखकर पूछा, ”  कौन हो तुम ? कहाँ से आई हो ?  मनीष की आवाज थोड़ा ऊँची थी।

” मैं बताती हूँ। पहले दरवाजा तो खोल।  ” उस औरत ने कहा।

मनीष ने दरवाजा खोला तो उस औरत ने कहा, ” इतने दिन से दुल्हन को छुपा कर रखा था और आज भी हमें उल्लू बना रहा है। मैं जा रही हूँ , सबको बुलाकर लाती हूँ।  ”

यह कहकर वह औरत सबको बुलाने चली गयी। उधर ‘नैना’ ने सब बात मनीष को बता दिया। सभी लोग वहाँ जुट गए।  उसके बाद यह बात नैना के मायके गिरधरपुर पहुंचाई गयी।

सभी लोग बहुत ही खुश थे। उसके बाद ” मुह दिखाई ” की ‘ रश्म ‘ के साथ – साथ ही पार्टी की ख़ुशी मनाई गई। सबके सामने ही मनीष की भाभियाँ बोली, ”  मैं कहती थी ‘ न ‘ कि मनीष की ” दुल्हन ” ‘ परी है परी।  इसीलिए  वह किसी को दिखाता नहीं है। “सब में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी।

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