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मैं इसे सिर्फ लगी कहता हूँ ...

यूँ न बोलो के नही कहता हूँ.
हूबहू जैसे सुनी कहता हूँ.

कान रख देता हूँ हवाओं पर,
फिर जो सुनता हूँ वही कहता हूँ.

तेरे आने को कहा दिन मैंने,
रात को दिन न कभी कहता हूँ.

मेरा किरदार खुला दर्पण है,
कम भले हो में सही कहता हूँ.

हादसे दिन के इकट्ठे कर-कर,
मैं ग़ज़ल रोज़ नई कहता हूँ.

कब से रहते हैं वहाँ कुछ दुश्मन,
पर उसे तेरी गली कहता हूँ.


दिल्लगी तुमको ये लगती होगी,

मैं इसे सिर्फ़ लगी कहता हूँ.



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