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इंतज़ार - एक प्रेम का ...

मालुम है ले गया था तुम्हारे होठों की खिलखिलाती हँसी
वो खनकते कंगन, नीले आसमानी रँगों वाली काँच की चूड़ियाँ
वो टूटी पाजेब ... धागे के सहारे जिसे पांवों में अटका रखा था तुमने

 

हर वो शै जिसमें तुम्हारे होने का एहसास हो सकता था
मेरे ट्रंक में सहेज दी थी तुमने
अगर सही सही कहूँ ... तो ले आया था मैं उसे ... 

 

मैं जानता था जुदाई का वो पल इक उम्र से लम्बा होने वाला है

 

पर सच कहूँ तो उस दौर में एक पल भी तुमसे जुदा नही था
हालांकि छोड़ आया था तुम्हे तन्हा सबके बीच यादों के सहारे

 

अब जबकि लौट रहा हूँ तुम्हारे करीब,   
चाहता हूं तमान खुशियाँ समेत दूँ तुम्हारे दामन में ...

 

भर ली है लाल डिबिया में सुबह की लाली, माँग सजाने के लिए
कैद कर ली ही बारिशों की बूँदों में नहाते परिंदों की खनकती हँसी
माँग लिया है शाम का गहरा नीला आँचल,
रात की काली चादर पे चमकते तारे और इन्द्र-धनुष के सुनहरी रँग
ध्यान से देखना पूरब की और खुलने वाली खिड़की की जानिब
घिरने लगी होंगी कुछ आँधियाँ वहाँ ...
की भेजा है हवा के हाथ इक संदेसा तुम्हारे नाम

 

हाँ वो ढेर सारा प्यार भी इकठ्ठा है जो जोड़ रहा हूँ तबसे
जब जुदा हुए थे ज़िन्दगी के फ़र्ज़ पूरा करने को

 

मैं आउँगा छत के उसी सुनसान कोने में
खड़ी होगी जहाँ तुम होठ चबाती मेरे इंतज़ार में ...

#जंगली_गुलाब 


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