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नज़र के इशारे नकाबों ने खोले ...

न महफ़िल न किस्से न बातों ने खोले.
सभी राज़ उनकी निगाहों ने खोले.

 

शहर तीरगी के मशालों ने खोले,
कई राज़ मिल के सितारों ने खोले.

 

मुहर एक दिन सब लगा देंगें इस पर,
तरक्की के रस्ते किताबों ने खोले.

 

रहस्यों का खुलना, मेरा मानना है,
लगातार होते सवालों ने खोले.

 

अदा है के मासूमियत, क्या करें हम,
कई सच तो उनके बहानों ने खोले,

 

न जुगनू की कोशिश में कोई कमी पर,
अंधेरों के चिलमन उजालों ने खोले.

 

अदा थी, हया थी, के इश्क़े – बयाँ था,
नज़र के इशारे नकाबों ने खोले
.



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