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चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब ...

होट बजे थे उठा जिगर में शोला जब.
नंगे पाँव चली थी कुड़ी पटोला जब.

 

आसमान में काले बादल गरजे थे,  
झट से रिब्बन हरा-हरा सा खोला जब.

 

टैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
दिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.

 

बीस नहीं मुझको इक्किस ही लगती हो,  
नील गगन के चाँद को तुझसे तोला जब.

 

इश्क़ लिखा था जंगली फूल के सीने पर,
बैठा, उड़ा, हरी तितली का टोला जब.

 

चूड़ी में, आँखों में, प्रेम की हाँ ही थी,
इधर, उधर, सर कर के ना-ना बोला जब.

 

चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब. 



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