सूरज जब डूबता है
तो चांद निकलता है,
तुम बैठे हो दूर हमसे,
मेरी आंखो को
तुम्हरा चेहरा झलकता है..
कोई जादू है तुम में
तो हमको भी बतलाओ...
कोई शरारत है तुम में
तो हमको भी समझाओ...
यूं तुम्हारा खामोश रहना
मुझको बेचैन करता है,
पूंछना चाहूँ सब सच सच
मगर पागल मन डरता है...
तन्हा बैठे बैठे जब
मन थक जाता है...
फिर दौड़ा दौड़ा
ये तुम तक आता है...
थाम लेती फिर तुम
मेरी नज़रो को,
और मेरा दिल
तुम्हारा होकर रह जाता है...
जो सच तुम नही कह पाती
तुम्हारा चेहरा कह जाता है...
सूरज जब डूबता है
तो चांद निकलता है,
तुम बैठे हो दूर हमसे,
मेरी आंखो को
तुम्हरा चेहरा झलकता है....
अभिषेक प्रताप सिंह