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मंथन


 

आज कितने दिनों के बाद फिर से मेरी इस डिजिटल की-बोर्ड रूपी कलम ने मुझे पुकारा और कहा कि क्या तुम मुझे भूल गई ? मैं तुम्हारी पुरानी दोस्त, जो तुम्हारे हर खट्टी-मीठी यादों की साझीदार, मुझे आज फिर से अपने हाथों में थामों, मुझे फिर से अपने छुअन से जीवन्त होने का एहसास कराओ। 


बस फिर क्या था ! मैंने उतारा अपनी परेशानियों और फिक्र का थैला और फिर से अपनी कलम से कर ली दोस्ती और इस ब्लाग के माध्यम से आप सबके सामने अपनी लेखनी के साथ पुनः प्रस्तुत हो गयी। 


सच में, मैं अपने एहसास के माध्यम से यह बात बताना चाहती हूँ , जब भी हम परेशान होते हैं, हमें कुछ भी समझ में नहीं आता है और मन में कैसे-कैसे अच्छे-बुरे ख्याल हमें घेर लेते हैं, उस समय हमें एक अच्छे दोस्त की आवश्यकता होती है, जो हमें सुने, जिससे हम अपनी बातें कह कर अपना मन हलका कर सके। पर सभी इतने खुशनसीब नहीं होते कि ऐसा शख्स उनके पास हो, जिनसे वो अपना दुःख-दर्द मिल बाँट कर अपना मन हल्का कर सके। तो ऐसे में हमें खुद को अपना दोस्त बना लेना चाहिए। 



सच, यकीन मानिये, हम खुद के इतने अच्छे दोस्त बन सकते हैं, इसका अनुमान आप शायद लगा ही नहीं सकते। और खुद से बात करने का सबसे अच्छा तरीका है- लिखना। हम लिखकर अपने आप से बात करके किसी भी परेशानी का हल ढूँढ़ सकते हैं। मेरी बात मान कर देखिये, अपनी किसी भी समस्या को आप शब्दों में दस से बीस या अधिक बात किसी पेज पर लिख कर देखिये।


 शुरु-शुरु में तो वो शब्द बराबर सही लिखे जाएँगे, पर जैसे-जैसे शब्दों की संख्या बढे़गी, कुछ शब्द कभी गलत हो जायेंगे, कभी कुछ शब्द हम भूल जायेंगे, कभी कुछ शब्द छूट जायेंगे और कभी हम खुद ही बोर होकर उस शब्द को लिखना बन्द कर देंगे। यह बात सुनने में बच्चों वाली लगती है, पर कभी-कभी हमें अपने पहाड़ जैसी लगने वाली परेशानियों को पार करने के लिए गीली मिट्ठी की तरह सरकना सीखना होता है। परेशानी, छोटी हो या बड़ी, शब्दों की तरह परेशानियाँ भी थक कर, छूट कर, बोर होकर हमसे दूर चली जायेंगी।


चलिये, आज मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाती हूँ। एक छोटी सी चीटीं दिन रात अपने घर को बनाने का सपना लिए रोज मेहनत में जुटी रहती थी। गीली मिट्ठी से फिसलती, फिर चढ़ती, फिर फिसलती, फिर चढ़ती। ऐसा कई बार होने के बाद, वो इतना थक गई कि फिर उसने चढ़ना भूल कर, फिसलना शुरु कर दिया। आखिरकार, उसे फिसलने में मजा आने लगा और फिर वो मिट्ठी पर चढ़ती जरूर, पर अपने घर को बनाने की चिंता में नहीं, बल्कि गीली मिट्ठी पर फिसलने का आनन्द लेने के लिए।




मैं यह नहीं कहती कि ऐसा करने से हमें अपनी चिन्ता से निजात मिल जाती है या फिर उससे हमारी परेशानियों का हल मिल जाता है, पर  एक बदलाव जरूर होगा कि हमारे मन में एक खुशी  और आनन्द का संचार होगा, जो हमें इन मुश्किलों से लड़ने की शक्ति देगा। जिन्दगी में, जब भी समय मिले, हमें अपनी परेशानियों के पहाड़ पर एक बार जरूर फिसलकर देख लेना चाहिए, क्योंकि अगर जीवन से मस्ती और आनन्द खतम हो गये तो समझिये कि हमारी जिन्दगी खतम हो गई।


अंततः मैं रश्मि, यह आशा करती हूँ कि मेरी ये लेखनी आपके जीवन में यदि एक पल के लिए भी, आपके जीवन से, आपके गमों को भुला सकने में, आपकी मदद कर सके तो मैं अपने इस पोस्ट को सार्थक समझुँगी।



आप सभी को नव-वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ। 


Image:Google



This post first appeared on एक नई दिशा ( EK NAI DISHA ), please read the originial post: here

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