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रवि और दिवाकर बहुत ही अच्छे दोस्त थे। अपना हर सुख-दुख एक दूसरे के साथ बाँटते थे, एक साथ समय बिताते और ऐसे ही एक दूसरे को जानते हुए उन्हें बीस वर्ष हो गये । ये बचपन के दोस्त जो थे। अब एक ही कम्पनी में जाॅब भी करते थे। पर एक दिन दिवाकर के मोबाइल में एक लड़की की तस्वीर देखकर रवि हैरान रह गया। उसने दिवाकर से प्रेम -प्रसंग छुपाकर रखने के कारण थोड़ा गुस्सा भी दिखाया। पर दिवाकर ने कहा- "मैंने इसकी थोड़ी मदद कर दी थी तो बस दोस्ती हो गयी, यार रवि जब कुछ ऐसा होगा तो, मैं सबसे पहले तुझे बताऊँगा।" 


पर रवि की आँखों में उस लड़की का चेहरा समा गया था। मन ही मन वो उसे चाहने लगा था। फिर एक दिन अचानक उस लड़की से रवि की मुलाकात हो गई। 'माया' नाम था उसका। वो किसी से ज्यादा मेल-मिलाप ना रखने वाली लड़की थी। पर दिवाकर का नाम सुनकर दोस्ती करने को तैयार हो गई और यह दोस्ती धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई ये रवि और माया दोनों को ही पता नहीं चला। 


एक दिन रवि ने माया से अपने दिल की बात कह दी पर माया ने शादी की बात को टाल दिया। फिर एक दिन अचानक लखनऊ जाने की बात कह कर चली गई और फिर उसका कोई अता-पता नहीं चला। रवि ने दिवाकर से अपने और माया के बारे में सारी बात बता दी तो दिवाकर से उसे उस कम्पनी का नाम और फोन नम्बर मिला जहाँ माया काम करती थी। कम्पनी ने उसे माया के घर का नम्बर दिया। रवि ने उसे घर पर फोन किया तो माया ने फोन उठाया और उसने कहा कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है और बीमार  हैं। वो उसकी शादी अपने दोस्त के बेटे के साथ जल्दी कराना चाहते हैं, जो एक अच्छी जगह पर जाॅब करता है। उसकी सैलरी बहुत अच्छी है, घर बहुत बड़ा है।  माया उस अन्जान शख्स के तारिफों के पुल बाँधती रही और रवि सुनता रहा। 

अचानक रवि ने माया को टोका और पूछा- "हमारे प्यार का क्या ?" माया ने रवि को उत्तर दिया, जिसकी उसे कभी भी उम्मीद नहीं थी। उसने रवि से कहा- "समय के साथ सब धुँधला हो जाता है। यदि पैसा और पोजीशन न रहा तो जीवन कैसा ? मेरी मानो तुम भी जिन्दगी में आगे बढ़ो और कहीं अच्छी जगह जाॅब कर लो, जहाँ सैलरी जीवन जीने लायक मिले।"




माया की बात सुनकर रवि हतप्रभ सा रह गया कि उसने प्यार के बारे में जो सुना था, क्या वो यही है ? जिसके लिए लोग मर भी जाते हैं। रवि ने माया को फिर कभी पलट कर नहीं देखा। शायद यही सच्चे प्यार की पहचान थी, जिसे रवि ने निभाया।


समय बीतता गया। रवि को एक दिन काॅल आया। दिल्ली से कोई कम्पनी उसे जाॅब ऑफर  करना चाहती थी। रवि भी अब उस शहर से दूर हो जाना चाहता था, सो उसने ऑफर  स्वीकार कर लिया। उसी दिन माया की भी शादी थी। रवि अपनी आँखों में आँसू लिए रवाना हुआ। 


धीरे-धीरे चार साल बीत गए। रवि की मेहनत और लगन रवि को एक ऐसे मुकाम पर ले आई, जहाँ उसे अब पैसे की कोई कमी नहीं रह गई थी। वह उसी कम्पनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत था और कम्पनी द्वारा दिये गये फ्लैट में रह रहा था।


एक दिन दिवाकर का फोन आया और उसने रवि का अपनी शादी की बात बताई। रवि यह सुनकर बहुत खुश हुआ। एक हफ्ते बाद शादी थी। दिवाकर रवि का सबसे अच्छा दोस्त था। कुछ रिश्ते सच्चे व सुन्दर होते हैं, जो वक्त की आँधियों में भी अपनी लालिमा नहीं खोते।


आज दिवाकर की शादी में जाने के लिए रवि तैयार हुआ। काले सूट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था। अपनी कार से वह शादी समारोह वाले स्थान पर पहुँचा। दिवाकर उसे देख कर बहुत खुश हुआ। उसने उसे अपने सभी जानने वाले लोगों से मिलवाया। तभी रवि की नजर लाल साड़ी पहनी हुई एक महिला पर पड़ी। वो और कोई नहीं उसकी माया थी, जो अपने पति के साथ दिवाकर के शादी में शामिल होने के लिए आई थी।


माया के पति ने रवि को देखते ही ‘सर’ कह कर सम्बोधित किया। रवि ने भी उत्तर में सिर हिलाया। माया ने अपने पति से पूछा- ‘‘ये आपके बाॅस हैं ?’’  माया रवि से कुछ कहती, उससे पहले ही रवि चार कदम आगे बढ़ गया।


माया ने उसे पीछे से आवाज दे कर बुलाना चाहा, पर रवि ने ऐसा दिखाया कि वो माया को जानता ही नहीं। 


माया अब समझ चुकी थी कि रवि अब वो रवि नहीं रह गया था। वह बदल चुका था। अब माया रवि के लिए एक इम्प्लाय की पत्नी मात्र बन कर रह गई थी। और ये मुलाकात माया को जीवन भर कचोटती रहेगी।    


Image:Google 


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