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एक बोधप्रद कहानी : दूधवाला और बंदर


किसी एक गॉव में एक चरवाहा रहता था और उसके पास अपनी कुछ भैंसे भी थी जिनका दूध बेचकर वो अपना एवं अपने परिवार का गुज़ारा करता था. पर दूधवाला बड़ा ही बेईमान था वो ग्राहकों को जो दूध बेचता उसमे खूब सारा पानी भी मिला दिया करता. जिससे दूधवाले को तो ज्यादा मुनाफा मिलता पर बेचारे ग्राहकों को पुरे पैसे देने के बावजूद असली दूध नहीं मिल पाता था.

एक दिन की बात है जब दूधवाला गॉव में दूध बेचकर अपने घर को लौट रहा था तब उसने देखा की पास में ही एक घना पेड़ है और उसके बगल में पानी से भरा शांत तालाब भी है. दुधवालेने सोचा 'आज मौसम भी ऊमस भरा है और मुझे कुछ थकान भी महसूस हो रही है, क्यों न मैं इस तालाब के शीतल जल में नहा लूँ.. '

इतना सोचकर दूधवाला अपने कपडे और दूध की कमाई वाले पैसो की गठरी दोनों तालाब के किनारे रखकर पानी में उतर गया. तालाब का पानी भी ठंडा था इसलिए थका हुआ दूधवाला स्नान करने में व्यस्त हो गया.

कुछ ही देर हुई होगी की तालाब के बगल वाले के पेड़ से एक बंदर निचे उतरा. उसने देखा की तालाब में कोई व्यक्ति नहा रहा है और किनारे पर कपडे और एक गठरी पड़ी हुई है. बंदर को मजाक सुझा, उसने दूधवाले के पैसो की गठरी खोली और उसमे रखे सिक्को को इधर उधर उड़ाने लगा.

दूसरी और दूधवाले की नजर भी बंदर पर पड़ी. हाँलाकि वह तालाब के बीच में था और वहाँ से त्वरित किनारे आ पाना भी असंभव था इसलिए वो वहीँ से चिल्लाकर बंदर को पैसे की गठरी छोड़ देने के लिए कहने लगा. पर भला क्या जानवर भी इंसान की भाषा समझ सकते है ... !

कुछ ही पलो में बंदर ने दूधवाले के पैसो की गठरी खाली कर दी. बंदर ने उसके सिक्के चारो और फेंके जिसमे आधे सिक्के तालाब के किनारे पड़े और आधे तालाब के अंदर.

दूधवाला जब तालाब से बहार आया तब तक बंदर अपनी हरकत को अंजाम देकर वापस पेड़ पर चढ़ चूका था. निराश दूधवाले ने यहाँ-वहाँ बिखरे अपने सिक्को को इकट्ठा किया और वापस गठरी में बांधा, कपडे पहने और घर की और चलने लगा. उसे अब ये सीख मिल चुकी थी की वो भले ही दूध में पानी मिलाकर ग्राहकों को धोखा देता रहा पर आज एक बंदर ने उसे धोखे से कमाए पैसो का हिसाब बराबर कर दिया था.

Lesson of the story ; अत्याधिक लालच के लिए दुसरो को धोखा दे कर पैसा तो कमाया जा सकता है, पर वह पैसा आप के खुद के काम भी नही आ सकता, कुदरती रूप से वो पैसा अपना रास्ता खुद ही बना लेता है.



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