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चाचा, कुछ तोहफे ऐसे होते है जो दीखते नहीं सिर्फ दिए जाते है


एक बड़े से building में security guard की नौकरी कर रहे वॉचमेन की ये बात है. लगभग 35-40 वर्ष का वॉचमेन 50 मंजिला ऊँची बिल्डिंग की चौकीदारी करके अपने परिवार का गुजारा कर रहा था. बिल्डिंग में आनेजाने वाले लोग से हाय-हेलो, उनकी गाडीओं की अच्छे ढंग से parking, और कोई ऊपर की मंजिल से छोटा मोटा काम देता तो वो भी करना ये सब इसका रोज का काम था. बिल्डिंग में आनेवाले लगभग सारे लोग इस वॉचमेन से संपूर्ण वाकिफ थे. 

इस बार दीवाली का मौका था. बिल्डिंग में रहने वाले ज्यादातर लोग ने वॉचमेन को कोई न कोई बक्षीस दी थी. किसी ने अपने पुराने कपडे तो किसी ने कोई पुरानी चीज और किसी ने मिठाई. दीवाली की अगली रात वॉचमेन के पास बहोत सारी बक्षिसो का ढेर लग गया. बिल्डिंग से एक चाचा निचे उतरे वॉचमेन के पास इतनी सारी बक्षिसे देखकर बोले, "अरे, माफ़ करना दोस्त, आज मैं तुम्हारे लिए कोई बक्षीस नहीं लाया.. "

वॉचमेन ने कहा,"कोई बात नहीं चाचा, वैसे भी आप तो मुझे हर रोज तोहफा देते है. आप रोज मुझसे मिलते है, हँसकर बात करते है, "कैसे हो..? पूछते हो, बिल्डिंग सभी आपकी तरह नही है. बस आते है और जाते है और मेरे साथ बस नौकर जैसा ही व्यवहार करते है... "

"...आप अकेले हो जो मेरे साथ एक इंसान की तरह पेश आते हो, बाकी सब तो ''बड़े लोग" है. एक दिन बक्षीस देकर शायद वो मानते होंगे की उनका फर्ज अदा हो गया. पर आप जो मेरे सामने हँसकर आते है न वो ही मेरे लिए आपकी और से बड़ी बक्षीस है. 

चाचा के प्रति वॉचमेन के दिल में जो भाव उभर रहा था उसे न्याय देने के लिए चाचा वॉचमेन के पास बैठे. वॉचमेन चाचा से कहने लगा, "चाचा, वो दिन मैं कैसे भूल सकता हूँ, जब तुम देर रात काम निपटा कर लौट रहे थे और मैं भी उस दिन बड़ा डिस्टर्ब था. आप थके हुए थे फिर भी आपने मेरा चेहरा भाँपकर पूछा, "क्यों मुंह लटका हुआ है दोस्त.. ? क्या हुआ..? मैंने कहा 'कुछ नहीं, बस यूँ ही..' 

"..उस रात मैंने डिस्टर्ब होने की जो वजह थी वो आपको नहीं बताई फिर भी आपने ये कहकर मेरी उलझन सुलज़ा दी थी की 'हर दिन एक सा नहीं होता.. तेरी उदासी की जो भी वजह हो उसे छोड़, बस थोड़ा हँस भी दे..' आपने मुझे गले लगाया और मेरे सर पर हाथ फिराया. फिर आप चले गए. पर यकीन मानिए आपके जाने के बाद मुझे गजब की राहत महसूस हुई. 

"..फिर दूसरे दिन मुझे पता चला की उस दिन आपके साथ भी किसीने फ्रॉड किया था और रात में जब हमारी मुलाकात हुई थी तब आप भी डिस्टर्ब थे फिर भी आपने मेरी उदासी दूर की. चाचा, उस रात आपकी सांत्वना से बढ़कर गिफ्ट आज तक मुझे किसीने नहीं दिया..."

वॉचमेनने चाचा से कहा, " चाचा, एक बात कहूँ, मैं इस नौकरी पर हूँ तो आपकी वजह से, आप अकेले ऐसे इंसान है जिन्हे देखकर मेरी थकान दूर हो जाती है, आपकी हल्की सी smile मुज में नयी energy भर देती है, आपके हर शब्द मुझे सांत्वना की तरह मीठे लगते है, मैं भी प्रयास कर रहा हूँ आप जैसा इंसान बनने का. चाचा, कुछ तोहफे ऐसे होते है जो दीखते नहीं सिर्फ दिए जाते है और स्वीकारे जाते है. 

Moral of the story : बड़ा इंसान बनना अच्छा है पर उससे भी important बेहतर इंसान बनना है. 


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