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किसी महीने बरसात कम होती किसी महीने बकवास कम होती



करते करते
बकवास निरन्तर
सुजान हो चले जड़मति
ये भी तो किस्मत है होती

अभ्यास
समझ रोज का लेखन
आभासी कलम पन्ने जोतती
खुद ही कुछ बोती

जमा होते चले 
आगे के पीछे पीछे के आगे
आँखें मूंद वर्णमाला के मोती पर मोती

वाक्य चढ़े वाक्य के ऊपर
शब्दों की पहन कहीं अटपटी
कहीं फटी एक धोती

चित्र जड़े श्रँगार समझ कर
कुछ हल्के पर कुछ भार पटक कर
लिख डाली पोथी पर पोथी

धुँआ सोच कर हवा नोच कर
राख बनाते लिखे लिखाये अंगार दहक कर
कविता घोड़े बेच कर सोती

समझ समझ कर समझा लिखना
घुप्प अँधेरा जिसको दिन दिखना
सुबह सवेरे शुरु रात है होती

लिखना भर कर पेट गले तक
घिस घिस लिख कर गले गले तक
‘उलूक’ बेशरम पढ़ने वाले की आँखे
रोती हैं तो रोती।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/



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