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चिट्ठों के बीच बारह साल/ नवें महीने की चालीसवीं बकवास/ जरा बच के/ नजूल है/

 


याद करने की कोशिश है 
 फजूल है 

क्या लिखा कितना लिखा
लिखा लिखाया सारा सब है
बस है
ऊल जलूल है 

कवियों कथाकारों के बीच
घुस घुसा कर
करतब दिखाता रहा
एक जमूरा बिन मदारी 
ये सच है
कबूल है

कविता कहानियों की दौड़
होती रही है 
होती रहेगी हमेशा 
शामिल होने का निमंत्रण है
डर है इतना है
बबूल है

लिखने को गिनना गिनकर फ़िर लिखना 
एक आदत हो चली है
लिखना लिखाना अलग बात है
गिनना गिनाना जरूरी है
मकबूल है

लेखक लेखिका
यूँ ही नहीं लिखा करते 
कुछ भी कहीं भी कभी भी
हर कलम अलग है स्याही अलग है
पन्ना अलग है बिखरा हुआ है
कुछ उसूल है

लिखना उसी का लिखाना उसी का
गलफहमी कहें
कहें सब से बड़ी है
भूल है

‘उलूक’
पागल भी लिखे किसे रोकना है
बकवास करने के पीछे
कहीं छुपा है
रसूल है।

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/


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