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जीवन के चमत्कारी रहस्य क्या हैं ?

आदमी कितना जीता है? 70 या 80 साल। बहुत अच्छी सेहत हुई तो 100 साल। इन 100 वर्षों में वह प्रारंभिक 25 वर्ष तो संसार, खुद को समझने और करियर बनाने में ही लगा देता होगा। अगले 25 वर्ष वह गृहस्थ जीवन के संघर्ष में गंवा देता होगा और अंत में सोचता होगा कि अब जिया जाए या शायद सोचता होगा कि अब सुकून से जीना चाहता हूं? हालांकि यह सोच काल और परिस्थिति के अनुसार सभी की अलग-अलग हो सकती है।

आजकल जीवन प्रबंधन के बारे में भी बहुत सुनने को मिलता है, लेकिन कितने लोग हैं, जो अपने जीवन का प्रबंधन कर सकते हैं? क्या सचमुच जीवन प्रबंधन करने के बाद जीवन वैसे ही चलता है? हालांकि उपरोक्त लिखी गईं सभी बातें व्यर्थ हैं। हम आपको बताएंगे कि किस तरह आपका जीवन संचालित होता है और आखिर क्या है जीवन का सही रहस्य। हम आपको जीवन रहस्यों के बारे में बता रहे हैं। उस पर आप अकेले में गंभीरता से विचार करना तो हो सकता है कि वह आपको समझ में आ जाए। हालांकि अधिकतर लोग पहले से ही समझदार हैं। हम उन्हें क्या समझाएं, वे दिनभर फेसबुक, ब्लॉग और ट्विटर पर अपने ज्ञान को प्रदर्शित करते ही रहते हैं।

निरोगी काया : यदि आप स्वस्थ हैं तो ही आपका जीवन है। अस्वस्थ काया में जीवन नहीं होता। व्यक्ति 4 कारणों से अस्वस्थ होता है : पहला मौसम-वातावरण से, दूसरा खाने-पीने से, तीसरा चिंता-क्रोध से और चौथा अनिद्रा से।

मौसम और वातावरण आपके वश में नहीं, लेकिन घर और वस्त्र हों ऐसे कि वे आपको बचा लें। घर को आप वस्तु अनुसार बनाएं। हवा और सूर्य का प्रकाश भीतर किस दिशा से आना चाहिए, यह तय होना चाहिए ताकि वह आपकी बॉडी पर सकारात्मक प्रभाव डाले।

खाना-पीना आपके हाथ में है अत: उत्तम भोजन और उत्तम जल जरूरी है। हर तरह के नशे से दूर रहने की बात भी आप जानते ही होंगे। आहार के साथ उपवास भी जरूरी है। उपवास के लिए विशेष दिन और माह नियुक्त हैं।

चिंता और क्रोध करने की भी आदत हो जाती है शराब पीने की तरह। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि नशा करके व्यक्ति चिंता में तो हो ही जाता है और वह चिड़चिड़ा भी हो जाता है। ये दोनों ही आदतें आपके शरीर को जल्द से जल्द बूढ़ा बना देंगी और साथ ही आप अपने परिवार को भी खो देंगे।

अब जहां तक चौथे कारण का सवाल है, ऐसे में कहना होगा कि उपरोक्त तीन है तो चौथा हो ही जाएगा। उत्तम नींद संजीवनी दवा के समान होती है। मानसिक द्वंद्व, चिंता, दुख, शोक, अनावश्यक बहस, अनावश्यक विचार आदि सभी से श्वासों की गति अनियंत्रित हो जाती है जिसके चलते नींद उड़ जाती है। इससे मुक्ति का सरल उपाय है प्राणायाम और ध्यान। हालांकि आप और कुछ भी कर सकते हैं।

आपने दुनियाभर की किताबें पढ़ी होंगी या घर में रखी होंगी, लेकिन क्या आपके घर में ऐसी किताबें हैं, जो आपको सेहतमंद और चिंत्तामुक्त बने रहने के उपाय बताती हों? जीवनभर आपने स्कूल और कॉलेज में जो पढ़ा है और कठिन मेहनत करके जो कमाया है, वह अस्पताल में जाकर सब व्यर्थ सिद्ध हो जाने वाला है।

आपको घर में रखना चाहिए घरेलू नुस्खों की कई किताबें, आयुर्वेद और योग से संबंधित किताबें, सीडी आदि। इसके अलावा सबसे जरूरी वे किताबें है जिनके माध्यम से आपको आपके शरीर और दवाओं का ज्ञान होता हो। आपके शरीर के भीतर के अंग कौन-कौन-से हैं और वे किस तरह कार्य करते हैं और उन्हें कौन-से भोजन और व्यायाम की जरूरत है, यह भी जानना जरूरी है। हालांकि आप फेसबुक पर चलने वाली व्यर्थ की बातें जानने में ज्यादा उत्सुक रहते होंगे?

चाहें तो योग करें, पैदल चलें, तैराकी करें या कसरत करें। 24 घंटे में से 1 घंटा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए देना चाहिए। जिस शरीर में आपको 70-80 साल रहना है, निश्‍चित ही आप उसके लिए कुछ तो करेंगे। यदि यह नहीं कर पाएं तो कम से कम उसके भीतर कचरा तो मत डालिए।

जेब में हो माया : हमारे ऋषि-मुनि कह गए हैं, 'पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख जेब में हो माया।' धन कमाना जीवन में बहुत जरूरी होता है और सभी यह कार्य करते भी हैं। कुछ लोग कड़ी मेहनत करके धन कमाते हैं और कुछ लोग स्मार्ट वर्क करके धन कमाते हैं। धन कमाने के अच्छे रास्ते भी हैं और बुरे भी।

अच्छे रास्ते से कमाया गया धन ही आपके जीवन को संतुष्ट कर सकता है अन्यथा आप शायद नहीं जानते हैं कि बुरे रास्ते का धन बुराई में ही समाप्त हो जाता है। ऐसे लोग जेलखाने, दवाखाने या पागलखाने में ही मिलते हैं।

धनवान बनने के गुप्त रहस्य के बारे में जानने से अच्छा है कि आप प्रैक्टिकल तरीके से इसके बारे में सोचें। हालांकि लोग कहते हैं कि अपार धन कमाने का कोई शॉर्टकट नहीं होता और सारे शॉर्टकट मार्ग जेल में जाकर ही खत्म होते हैं। लेकिन यह भी सही है कि आपका मार्ग सही है, तो उसे शॉर्टकट बनाया जा सकता है।

आपकी योग्यता ही सबसे बड़ी दौलत है। आप जितने योग्य और कार्यकुशल होंगे, आपके मार्ग की बाधाएं समाप्त होती जाएंगी। धन कमाने के शॉर्टकट मार्ग वे ही लोग ढूंढते हैं, जो अयोग्य हैं। आप सीखें वह सब कुछ जिसके माध्यम से धन कमाया जा सकता है। योग्य व्यक्ति की संसार को जरूरत है।

जैसी सोच, वैसा भविष्य : भगवान बुद्ध कहते हैं कि आज आप जो भी हैं, वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है। विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यही बात 'दि सीक्रेट' में भी कही गई है और यही बात धम्मपद, गीता, जिनसूत्र और योगसूत्र में कही गई है। इसे आज का विज्ञान 'आकर्षण का नियम' कहता है।

संसार को हम पांचों इंद्रियों से ही जानते हैं और कोई दूसरा रास्ता नहीं। जो भी ग्रहण किया गया है, उसका मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उस प्रभाव से ही 'चित्त' निर्मित होता है और निरंतर परिवर्तित होने वाला होता है। इस चित्त को समझने से ही आपके जीवन का खेल आपको समझ में आने लगेगा। अधिकतर लोग अब इसे समझकर अच्‍छे स्थान, माहौल और लोगों के बीच रहने लगे हैं। वे अपनी सोच को बदलने के लिए ध्यान या पॉजिटिव मोटिवेशन की क्लासेस भी जाने लगे हैं।

वैज्ञानिक कहते हैं कि मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60,000 विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि ‍मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। अधिकतर लोग नकारात्मक फिल्में, न्यूज, सीरियल और गाने देखते रहते हैं इससे उनका मन और मस्तिष्क वैसा ही निर्मित हो जाता है। वे गंदे या जासूसी उपन्यास पढ़कर भी वैसा ही सोचने लगते हैं। आजकल तो इंटरनेट हैं, जहां हर तरह की नकारात्मक चीजें ढूंढी जा सकती हैं। न्यूज चैनल दिनभर नकारात्मक खबरें ही दिखाते रहते हैं जिन्हें देखकर सामूहिक रूप से समाज का मन और मस्तिष्क खराब होता रहता है।

जैसी मति, वैसी गति : 3 अवस्थाएं हैं- 1. जाग्रत, 2. स्वप्न और 3. सुषुप्ति। उक्त 3 तरह की अवस्थाओं के अलावा हमने और किसी प्रकार की अवस्था को नहीं जाना है। जगत 3 स्तरों वाला है- एक, स्थूल जगत जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। दूसरा, सूक्ष्म जगत जिसका हम स्वप्न में अनुभव करते हैं तथा तीसरा, कारण जगत जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

उक्त तीनों अवस्थाओं में विचार और भाव निरंतर चलते रहते हैं। जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं और वे धारणा का रूप धर लेते हैं। चित्त के लिए अभी कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है लेकिन मान लीजिए कि आपका मन ही आपके लिए जिन्न बन जाता है और वह आपके बस में नहीं है, तब आप क्या करेंगे?

धारणा बन गए विचार ही आपके स्वप्न का हिस्सा बन जाते हैं। आप जानते ही हैं कि स्वप्न तो स्वप्न ही होते हैं, उनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं फिर भी आप वहां उस काल्पनिक दुनिया में उपस्थित होते हैं।

इसी तरह बचपन में यदि यह सीखा है कि आत्मा मरने के बाद स्वर्ग या नर्क में जाती है और आज भी आप यही मानते हैं तो आप निश्‍चित ही एक काल्पनिक स्वर्ग या नर्क में पहुंच जाएंगे। यदि आपके मन में यह धारणा बैठ गई है कि मरने के बाद व्यक्ति कयामत तक कब्र में ही लेटा रहता है, तो आपके साथ वैसा ही होगा। हर धर्म आपको एक अलग धारणा से ग्रसित कर देता है। हालांकि यह तो एक उदाहरण भर है। धर्म आपके चित्त को एक जगह बांधने के लिए निरंतर कुछ पढ़ने या प्रार्थना करने के लिए कहता है ताकि आप समूह के आकर्षण में बंधकर उसे ही सच मानने लगो।

वैज्ञानिकों ने आपके मस्तिष्क की सोच, कल्पना और आपके स्वप्न पर कई तरह के प्रयोग करके जाना है कि आप हजारों तरह की झूठी धारणाओं, भय, आशंकाओं आदि से ग्रसित रहते हैं, जो कि आपके जीवन के लिए जहर की तरह कार्य करते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि भय के कारण नकारात्मक विचार बहुत तेजी से मस्तिष्क में घर बना लेते हैं और फिर इनको निकालना बहुत ही मुश्किल होता है।

जाति स्मरण : हालांकि यह एक ऐसी बात है जिस पर आप ध्यान न भी देंगे तो भी आपके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, लेकिन ऐसी भी जानकारी होना चाहिए इसीलिए इसे यहां लिखा जा रहा है।

हमारा संपूर्ण जीवन स्मृति-विस्मृति के चक्र में फंसा रहता है। आप खुद या दूसरों को भी यादों के माध्यम से ही जान पाते हों। उम्र के साथ स्मृति का घटना शुरू होता है, जो कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है अगले जन्म की तैयारी के लिए।

यदि मोह-माया या राग-द्वेष ज्यादा है, तो समझो स्मृतियां भी मजबूत हो सकती हैं। व्यक्ति स्मृति-मुक्त तभी होता है जबकि प्रकृति उसे दूसरा गर्भ उपलब्ध कराती है, लेकिन पिछले जन्म की सभी स्मृतियां बीज रूप में कारण शरीर के चित्त में संग्रहीत रहती हैं। विस्मृति या भूलना इसलिए जरूरी होता है कि यह जीवन के अनेक क्लेशों से मुक्ति का उपाय है।

कैसे जानें पूर्व जन्म को : योग में पूर्व जन्म ज्ञान सिद्धि योग के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे जाति स्मरण का प्रयोग भी कहा जाता है। इस योग की साधना करने से व्यक्ति को अपने अगले-पिछले सारे जन्मों का ज्ञान होने लगता है। योग कहता है कि ‍सर्वप्रथम चित्त को स्थिर करना आवश्यक है तभी इस चित्त में बीज रूप में संग्रहीत पिछले जन्मों का ज्ञान हो सकेगा। चित्त में स्थित संस्कारों पर संयम करने से ही पूर्व जन्म का ज्ञान होता है। चित्त को स्थिर करने के लिए सतत ध्यान क्रिया करना जरूरी है।

ध्यान को जारी रखते हुए आप जब भी बिस्तर पर सोने जाएं, तब आंखें बंद करके उल्टे क्रम में अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद करें। जैसे सोने से पूर्व आप क्या कर रहे थे? फिर उससे पूर्व क्या कर रहे थे? तब इस तरह की स्मृतियों को सुबह उठने तक ले जाएं।

दिनचर्या का क्रम सतत जारी रखते हुए 'मेमोरी रिवर्स' को बढ़ाते जाएं। ध्यान के साथ इस जाति स्मरण का अभ्यास जारी रखने से कुछ माह बाद जहां मेमोरी पॉवर बढ़ेगा, वहीं नए-नए अनुभवों के साथ पिछले जन्म को जानने का द्वार भी खुलने लगेगा।

स्वाध्याय : स्वाध्याय का अभ्यास आपको मनचाहा भविष्य देता है। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना, अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना।

आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो, साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएं।

जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूंगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूं। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

ईश्वर प्राणिधान : वेद कहते हैं कि सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है, यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है- ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर-फकीर, न ज्योतिष और न ही गुरु घंटाल। यदि आप मर्द हो तो राहू, केतु या शनि से डरने की जरूरत नहीं। हाथ की अंगूठियां और गले का ताबीज निकालकर फेंक दें। वेद कहते हैं कि असुरक्षा से ही जीवन पैदा होता है और आत्मा बलवान बनती है।

एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएं नहीं। इससे आपके भीतर पांचों इन्द्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

विश्वास रखें सिर्फ 'ईश्वर' में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर उसकी तस्वीर ब्रह्मांड में ईश्वर के पास पहुंच जाएगी। ईश्वर उस तस्वीर को मूर्तरूप देकर आपके पास लौटा देगा। ब्रह्मांड में दूरस्थ स्थित ब्रह्म ही सत्य है।

अभ्यास :

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान।।

अभ्यास के बल पर मूर्ख भी बुद्धिमान हो जाता है, अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। इतिहास साक्षी है कि अभ्यास एवं परिश्रम के बल पर असंभव दिखाई देने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं। ऋषि-मुनियों की सिद्धियां, वैज्ञानिकों के आविष्कार, राजाओं की विजय गाथाएं- सब इसी का प्रमाण हैं कि यदि मनुष्य हिम्मत न हारे और निरंतर अभ्यास और प्रयास करता रहे तो फिर 'असंभव' शब्द के लिए कहीं स्थान नहीं। बार-बार एक ही काम को कर उसमें निपुण होने का प्रयास ही अभ्यास है।

अभ्यास एक ऐसा माध्यम है जिससे कठिन से कठिन कार्य में कुशलता पाई जा सकती है। जीवन में आप जो भी अच्छा जानते हैं और करना चाहते हैं, उसका अभ्यास करते रहिए। जीवन में अभ्यास की लगातार जरूरत पड़ती रहती है।

आप यदि शुरुआत में प्रतिदिन मन मारकर रोज 6 बजे उठते हैं तो कुछ दिनों बाद 6 बजे उठने का आपको अभ्यास हो जाता है। बाद में यदि आप न भी उठेंगे तो आपकी नींद ठीक 6 बजे ही खुल जाएगी। इसी तरह जन्म और मृत्यु आपके अभ्यास का ही परिणाम है। जिंदगीभर आप किस तरह जिए? अनुशासन में जिये या कि अराजक तरीके से? आपके इस तरीके के अभ्यास से ही आपकी मृत्यु होगी अर्थात अंत में परिणाम निकलेगा। अच्छे अंत से अच्छी शुरुआत भी होती है और अच्छी शुरुआत से अच्छा अंत।

जन्म और मृत्यु के रहस्य को समझना है, तो आप वर्तमान में जी रहे जीवन को समझें। आपकी आदतें, कर्म, अभ्यास, विचार आदि सभी चित्त में इकट्ठे हो रहे हैं। सभी के सम्मिलित प्रभाव से ही परिणाम निकलेगा। आपकी नींद खुलने का जब समय होता है, अधिकतर मौके पर तब ही आपके जन्म लेने का समय होगा इसलिए अभ्यास के महत्व को समझें। पुराने लोग अपनी दिनचर्या को सुधारते थे और उसी के अनुसार जीवन-यापन करते थे।

अभ्यास का महत्व समझें। अभ्यास व्यक्ति को परिपूर्ण और योग्य बनाता है। ऑफिस में, घर में या अन्य कहीं पर भी आप कोई-सा भी कार्य कर रहे हैं, उसे मन लगाकर करना जरूरी है। कोई-सा भी कर्म खाली नहीं जाता है। अभ्यास का अर्थ है- एक ही प्रक्रिया को बार-बार, निरंतर दोहराना। दोहराने की इस प्रक्रिया के चलते त्रुटियां होने की गुंजाइश समाप्त हो जाती है। अच्छा अभ्यास करें।

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