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अल्लाह के राह मे शम्मा जलाना

 सात सम्मय



हजरत अहमद खिजरोया का वाक़्या है कि एक मर्तबा कोई बुजुर्ग आपके यहाँ तशरीफ लाये तो आपने अजराहे महमान नवाजी उस दिन सात सम्मय रोशन की ये देखकर उन बुजुर्ग ने ऐतराज किया कि ये तकलीफ उठाने की किया जरुरत है ऐसा नहीं करना चाहिए आपने फरमाया कि मैंने तो ये तमाम शम्मय सिर्फ खुदा के वास्ते रोशन की हैँ और अगर आप गलत समझें तो फिर इस मेसे जो शमा खुदा के लिये रोशन ना हुआ उसको बुझा दें ये सुनकर वोह बुजुर्ग पूरी रात उन शमो को बुझाने मे लगे रहे लेकिन एक भी ना बुझ सकी फिर सुबह को आपने फरमाया कि मेरे साथ चलो मैं तुम्हें कुदरत के आजाईबात का नजारा करवाना चाहता हू चुनानचे जब एक गिरजा घर के दरवाजे पर पहुचे तो वहां एक काफिर बैठा हुआ था और उसने आपको देखते ही बहुत ताजीम के साथ दस्तर खान बिछवाया और खाना लाकर कहा आइये हम दोनों खाना खाये आपने फरमाया की खुदा के प्रतिद्वंद्वी के साथ कैसे खाना खा सकते हैँ ये सुनकर वोह ईमान ले आया और उसके साथ और भी 69 लोग मुसलमान हो गये और उसी दिन अल्लाह ताला को आपने खुवाब मे ये फरमाते देखा कि आये अहमद तूने हमारे लिये सात शम्मय रोशन की और उसके सिला मे हमने तेरे ही वसीले से सत्तर दिलों को नूरे ईमानी से रोशन कर दिया,


भरोसे की इन्तेहा


हजरत अहमद खिजरोया फरमाया करते थे के सफर हज के दौरान मेरे पाओ मे काटा चुभ गया और मैंने इस तसर्रुफ से नहीं निकाला कि उससे तवक्कल मुतासिर हो जायेगा चुनानचे जखम लगने की वजा से मेरा पाओ कमजोर हो गया जिसकी वजा से मैं लगड़ाते हुऐ मक्का मे दाखिल हुआ और उसी हालत मे हज करके वापिस हो गया लेकिन रास्ते मे लोगों ने बहस करके वोह काटा निकाल दिया और जब मैं हजरत बा यजीद की खिदमत मे हाजिर हुआ तो उन्होंने मुस्कुराकर पूछा कि जो अजियत तुम्हें दी गई थी वोह कहाँ गई मैंने जवाब दिया कि मैंने तो अपने इख़्तियार को उसके ताबे कर दिया था उसपर हजरत बा यजीद ने फरमाया कि खुदको सहबे इख़्तियार समझना किया शिर्क मे दाखिल नहीं 



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