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नमाज़े फज्र और नमाज़ेमग्रिब के बाद की दुआ

  नमाज़े फज्र और नमाज़ेमग्रिब के बाद पढ़े

हज़रत मुस्लिम तमीमी रज़ियल्लाहु अन्हु से रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि मगरिब की नमाज़ से फारिग होकर किसी से बात करने से पहले सात मर्तबा कहो-



اَللّٰهُمَّ اَجِرْنِی مِنَ النَّارِ


अल्लाहुम्मा अजिरनी मीनन्नार

तर्जुमा-

ऐ अल्लाह ! मुझे दोज़ख से महफूज़ रखियो।'


जब तुम उसको कह लोगे और उसी रात को तुम्हारी मौत आ जाएगी तो दोज़ख से बचे रहोगे और अगर इस दुआ को सात बार फज्र की नमाज़ के बाद किसी से बात किये बगैर कह लोगे और उस दिन मर जाओगे, तो दोज़ख से बचे रहोगे।


दूसरी हदीस


- मिश्कात (अबूदाऊद)


में है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि फजर और मरिब की नमाज़ से फारिंग होने के बाद इसी तरह तशहहुद की हालत में बैठे हुए जो शख़्स दस बार यह पढ़ ले-



لَآ اِلٰهٓ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ بِيَدِهِ الْخَيْرُ يُحْیِ وَيُمِيتُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَیْءٍ قَدِيرٌ .


ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीका लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु बियदिहिल खैरू युहइ व युमीतु-वहुवा अला कुल्लि शैइन कदीर०

तर्जुमा

 अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं वह तन्हा है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए सब तारीफ है। उसी के हाथ भलाई है। वह जिंदा करता है और मारता है। है और वह हर चीज़ पर कुदरत रखता


तो उसके लिए हर बार के बदले दस नेकियां लिखी जाएंगी और उसके दस गुनाह नामा-ए-आमाल से मिटा दिए जाएंगे और उसके दस दर्जे बुलन्द कर दिए जाएंगे और हर बुरी चीज़ से और शैताने मर्दूद से बचा रहेगा और शिर्क के सिवा कोई गुनाह उसे हलाक न कर सकेगा और वह अमल के एतबार से सब लोगों से अफ्ज़ल रहेगा। हां, अगर कोई आदमी उससे ज़्यादा पढ़कर आगे बढ़ जाए तो और बात है।


मिश्कात (अहमद)



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