एक दफा का वाक़्या है कि हज़रत अवैस करनी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के दीदार का शौख इस क़दर पैदा हुआ कि उन्होंने मदिना आने का इरादा किया अब इधर उन्होंने आने का इरादा किया उधर आप नबी ऐ करीम को किसी गजवा मे शिरकत के लिये मदिना से बाहर जाना पड़ा...
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लेकिन आप नबी ऐ करीम ने हज़रत आईंशा (रज़ि ) से फरमाया कि मेरे जाने के बाद शायद कोई मेहमान आये अगर वोह यहाँ आये तो उसकी खूब खातिर पात कि जाये और हर तरह से ख्याल रखा जाये क्यूकि वोह बड़ा ही पारसा इंसान है...
और मेरे आने तक उसको रोकने कि कोशिश कि जाये और अगर वोह ना रुकना चाहे तो उसे मजबूर ना किया जाये मगर उसकी शकल वा सूरत याद रख ली जाये ये हिदायत दे कर रिसालते माब गजवा मे शिरकत के लिये रवाना हो गए बाद मे खुवाजा अवैस करनी मदिना तसरीफ ले आये मगर उनको जब पता चला कि हुज़ूर सरवरे कैनात इसवक़्त मदिना मे मौजूद नहीं तो उन्होंने उसी वक़्त वापसी का कसद किया उनको रोकने कि बड़ी कोशिश कि गई मगर वोह ना रुके और ना ही किसी किसिम कि खातिर पात करवाई और वापस लौट गए...
जब नबी ऐ करीम वापस मदिना तशरीफ़ लाये तो आते ही उन्होंने हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (रज़ि ) से सवाल किया किया कोई मेहमान आया था अम्मा आइशा ने अर्ज़ की अये अल्लाह के रसूल एक शख्स जों कि यमन से आया था उसकी शकल वा सूरत चरवाहों जैसी थी आपको वोह ना पाकर एक लम्हा भी यहाँ ना ठहरा और चला गया हुज़ूर बोले आइशा (रज़ि ) पता है वोह कौन था...
अर्ज की हुज़ूर मे बिलकुल नहीं जानती फरमाया वोह अवैस करनी था जों मेरे दीदार के लिये यहाँ आया था और दीदार की हसरत दिल मे ही लेकर वापिस चला गया और वोह ठहर भी नहीं सकता था क्यूकी उसकी वालदा जों की बूढी और आँखों से माजूर हैँ उसकी निगेहदास्त करने वाला कोई नहीं है इसलिए उसको हर हाल मे वापस जाना था...
और ये वोह शख्स है जों कि खुदा और उसके रसूल का सच्चा चाहने वाला है जिसको सिर्फ जिकरे इलाही से गरज है और वोह किसी चीज ने ना मरऊब है ना मुतासिर अवैस करनी मेरा आशिक़ है और अल्लाह उससे मोहब्बत करता है हज़रत आइशा ने जब ये बाते सुनी तो उनको खुवाजा अवैस करनी के मुकाम पर रश्क़ आने लगा और फरमाने लगी अये खुदा के हबीब वोह शख्स वाक़ई किस कदर अज़ीम होगा जिसकी जुहद वा तकवा और इबादत वा रियाजत की तारीफ खुदा और उसका हबीब करें