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अगर कोई लड़की या महिला आईपीसी की धारा 376 का झूठा केस करती है तो क्या करें?या अगर कोई लड़की किसी लड़के पर झूठा आरोप लगाती है और पुलिस में शिकायत करती है, तो ऐसी स्थिति में लड़का क्या कर सकता है? If a girl falsely accus

अगर कोई लड़की या महिला आईपीसी की धारा 376 का झूठा केस करती है तो क्या करें?या अगर कोई लड़की किसी लड़के पर झूठा आरोप लगाती है और पुलिस में शिकायत करती है, तो ऐसी स्थिति में लड़का क्या कर सकता है? If a girl falsely accuses a boy and complains to the police, what can the boy do in such a situation?What to do if a girl or woman files a false case of 376 IPC?


भूमिका - Introduction

हम इस लेख में जानेंगे कि जब भी कोई लड़की या महिला आईपीसी की धारा 376 का झूठा केस करती है तो आप  क्या करें?या अगर कोई लड़की या महिला किसी लड़के या आदमी  पर झूठा आरोप लगाती है और पुलिस में शिकायत करती है, तो ऐसी स्थिति में आप बिलकुल न घबराएँ जब भी कोई झूठा आरोप होता है, उस झूठ को साबित करने के लिए सबूत जरूर होते हैं। आप सामान्य बुद्धि का प्रयोग करें और सोचें कि आपके पास क्या सबूत हो सकते हैं जिससे आप उस लड़की के आरोपों को गलत साबित कर सकते हैं। जैसे ही आप अपने दिमाग पर थोड़ा जोर देंगे, आपको वे प्रमाण मिल जाएंगे। अब यह हो सकता है कि सबूत छोटा हो , अभी पुलिस उसको ना माने, तो भी आप उस सबूत या गवाह को सहेज कर रखिये।  आप सोच रहे होंगे कि लड़की के मामले में क्या सबूत हो सकते हैं, आपको उदहारण के रूप में बताता हूं।जैसे मान लीजिए कोई लड़की आपके ऊपर छेड़ छाड़ का केस दर्ज करा देती है, तो देखिए कि उस लड़की ने छेड़ छाड़ की घटना किस समय की बताई है, अब याद कीजिये उस समय आप कहाँ थे, अब मान लेते है आप उस समय कोचिंग क्लास में थे। तो हो गए ना पूरी कोचिंग क्लास के स्टूडेंट आपके गवाह। बस ऐसे ही अपनी स्थिति अनुसार आप अपनी बेगुनाही के सबूत जमा करिये और पुलिस को दिखाइए। अगर पुलिस नही मानती और केस दर्ज कर लेती है तो एंटीसिपेटरी यानी बाहर से बाहर जमानत लीजिये और तब आपके सबूत आपको जमानत दिलाने में मदद करेंगे।

अगर कोई रेप का झूठा आरोप लगा दे तो कानून की मदद कैसे ली जा सकती है? - If someone makes a false allegation of rape, how can the help of the law be taken? 

आपका वकील इस धारा के तहत उच्च न्यायालय में आपके लिए आवेदन कर सकता है। इसके जरिए आपको अपनी बेगुनाही का सबूत देना होगा।कानून हमारी सुरक्षा के लिए बने हैं। हम न्याय पाने के लिए बने हैं। लेकिन कुछ लोग कानून का गलत इस्तेमाल करते हैं। साजिश, किसी दुश्मनी में या द्वेष में कुछ लोग किसी के खिलाफ पुलिस में झूठा केस कर देते हैं। वे झूठे आरोप लगाकर निर्दोष लोगों को फंसाते हैं और उन्हें परेशानी में डालते हैं। ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है। तो क्या ऐसी स्थिति में फंसने से बचने का कोई कानूनी तरीका है?जी हां, बचाव के लिए कानूनी रास्‍ता है. अगर आपके खिलाफ कोई झूठी एफआईआर दर्ज करवा दे तो आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता में इसके बचाव के लिए भी प्रावधान किए गए हैं. सत्र एवं जनपद न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले  अधिवक्‍ता सत्यम शुक्ल  ने बताया कि आईपीसी की धारा 482 के तहत झूठी एफआईआर को चैलेंज किया जा सकता है.अगर आपके खिलाफ या आपके जाननेवाले के खिलाफ कोई झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई है तो धारा 482 के तहत उसे हाईकोर्ट से राहत मिल सकती है. इस मामले में आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी और पुलिस को अपनी कार्रवाई रोकनी होगी. लेकिन एफआईआर को झूठा साबित करने के लिए आपके पास पर्याप्‍त सबूत होने चाहिए.आपका वकील इस धारा के तहत हाईकोर्ट में आपके लिए अर्जी लगा सकता है. इसके जरिये आपको अपनी बेगुनाही का सबूत देना होगा. आप सबूत तैयार करने के लिए वकील की मदद से एविडेंस तैयार रख सकते हैं. साथ ही अपने पक्ष में गवाह भी तैयार रख सकते हैं. अपनी अर्जी में इनका जिक्र जरूरी होगा.जब यह मामला कोर्ट में आएगा और कोर्ट को लगेगा कि आपके पक्ष में पेश किए गए सबूत और गवाह पर्याप्‍त हैं तो पुलिस को तुरंत कार्रवाई रोकनी होगी. यदि किसी भी मामले में आपको साजिश करके फंसाया जा रहा हो तो आप हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं. हाईकोर्ट में केस चलने के दौरान पुलिस आपके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती.अगर आपके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी जारी होता है तो पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकती. यानी झूठी एफआईआर होने पर आप वकील के जरिये सीधे हाईकोर्ट की शरण में जा सकते हैं. कोर्ट के जज को जरूरी लगेगा तो वह जांच अधिकारी को जांच के संबंध में आदेश-निर्देश भी दे सकते हैं. आप सही हुए तो आपको राहत मिल जाएगी. लेकिन आप गलत हुए तो आपको कोई राहत नहीं मिलेगी.

कानून क्या कहता है ? - What does the law say ?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 में बलात्कार के अपराध की सजा बताई गई है. इसमें रेप करने वाले अपराधी के लिए कम से कम सात साल की सज़ा का प्रावधान है. कुछ मामलों में ये सजा मिनिमम 10 साल की भी हो सकती है.

                     NCRB ( नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के अनुसार, रेप के दर्ज मामलों में हर चौथी विक्टिम नाबालिग होती है. यही नहीं, लगभग 94 फीसदी मामलों में रेप करने वाले अपराधी विक्टिम के जान-पहचान वाले होते हैं. लब्बोलुआब ये कि बलात्कार की समस्या गंभीर है. और ये डेटा तो तब है, जब रेप के कई मामले रिपोर्ट ही नहीं हो पाते. ऐसे में फॉल्स रेप केस लगाने की बात कहना एक गंभीर मुद्दे की ओर से ध्यान भटकाता है.|

झूठी रेप केस के मामले में क्या होता है? - What happens in case of false rape case?

अगर किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसके खिलाफ ऐसा चार्ज लगाया जा सकता है, तो वो पहले ही एक्शन लेकर खुद को तैयार कर सकता है इस मामले से डील करने के लिए. ऐसा कई मामलों में नहीं हो पाता. लेकिन फिर भी इन ऑप्शन में क्या होता है, आप  यहां समझ लीजिए.

  • अरेस्ट होने से पहले -आप अग्रिम जमानत (anticipatory bail) के लिए याचिका दाखिल कर सकते हैं, ताकि पुलिस कस्टडी में आपको परेशान न किया जाए.
  • अरेस्ट होने या चार्जशीट फ़ाइल होने के बाद दो ऑप्शन होते हैं-
  1. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीडिंग (CrPC) के सेक्शन 482 के तहत एप्लीकेशन दी जा सकती है. FIR में लगी आपराधिक कार्यवाही (criminal proceedings) को खारिज कराने की. अगर आरोपी ये साबित कर दे कि उसके खिलाफ प्रथम दृष्टतया (Prima Facie) कोई केस नहीं बनता. या फिर ये सुबूत दे कि आरोप बिल्कुल असम्भाव्य हैं. या ये साबित कर दे कि ये पूरी प्रक्रिया उसे परेशान करने की बुरी नीयत के साथ शुरू की गई है. अगर हाई कोर्ट को ये लगता है कि एप्लीकेशन देने वाला व्यक्ति इन में से किसी भी शर्त को पूरा करता है, तो वो अपने अधिकार के तहत FIR की आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर सकता है.
  2. हाई कोर्ट के सामने रिट याचिका दायर करना. ये उन मामलों में होता है, जब ये आशंका हो कि इस मामले में पुलिस या निचली अदालत के साथ मिलकर आरोपी पर कार्यवाही की जा रही है. हाई कोर्ट संबंधित अधिकारियों के लिए आदेश जारी कर सकता है कि वो अपनी ड्यूटी उचित रूप से निभाएं. या फिर वो रिट ऑफ प्रोहिबिशन (निषेधाज्ञा का अधिकार) जारी कर निचली अदालत में चल रही आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा सकता है. इसके लिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226 अदालत को इजाज़त देता है.
  • बरी होने के बाद व्यक्ति के पास क्या विकल्प हैं?-अगर किसी पर ऐसा झूठा आरोप लगता है, और कोर्ट उसे बरी कर दे, तो उसके बाद किसी भी व्यक्ति के पास कानूनन ये विकल्प होते हैं:-
  1. आईपीसी की धारा 211 के तहत व्यक्ति एफआईआर दर्ज करवा सकता है। इस आशय से  कि उसे नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से उसके खिलाफ झूठी आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई है। इस मामले में सात साल तक की जेल हो सकती है।
  2. IPC की ही धारा 182. इस धारा के अनुसार उन लोगों को सजा दी जाती है, जो किसी भी नागरिक अधिकारी को झूठी जानकारी देते हैं, किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए. इसमें अधिकतम छह महीने की जेल हो सकती है.
  3. IPC की धारा 499-500 के तहत आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया जा सकता है. इसमें अधिकतम दो साल की जेल की सजा है।
  4. मानहानि का दीवानी मुकदमा दायर करना भी एक विकल्प है। जिस व्यक्ति पर इसका आरोप है, वह अपनी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है। मुआवजे की लागत समाज में व्यक्ति की स्थिति पर निर्भर करती है।

धारा 376 के झूठे आरोप का उपचार - Treatment of false allegation under section 376 IPC

आपने ऐसे कई मामले देखे होंगे जिनमें एक शख्स शादी का झांसा देकर 4 साल तक महिला से रेप करता रहा है. आपने सोशल मीडिया पर या अखबारों में ऐसी खबरें देखी होंगी, तो ऐसे मामलों में हाई कोर्ट जिन आरोपियों को पूरी तरह से रिहा कर सकता है। कोर्ट का मानना है कि अगर लड़की बालिग है और दिमाग ठीक है तो कोई भी आरोपी उसके साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती नहीं कर सकता है। मेडिकल रिपोर्ट में यह साबित हो गया है कि बच्ची को किसी तरह की चोट नहीं आई है। और आपसी रजामंदी से रिश्ता बनाया है और अगर वो लड़की जबरदस्ती आपको फंसाने की कोशिश कर रही है तो रिपोर्ट में साबित हो जाता है कि ऐसा कोई रेप नहीं हुआ है.
जिसमें यह भी माना गया है कि दुष्कर्म किया है तो इस तरह के केस में ट्रायल कोर्ट के द्वारा अभियुक्त की जमानत याचिका को खारिज कर सकते हैं। लेकिन अगर किसी अपराधी व्यक्ति के पास में उसके बचाव के कोई भी प्रूफ मौजूद है उसके रिकॉर्डिंग या कोई पिक्चर किसी तरह की कोई भी डॉक्यूमेंट अगर अभियुक्त के पास में मौजूद है तो वह अपने बचाव के लिए उनको न्यायालय में पेश कर सकता है।और अपना पूरी तरह से बचाव कर सकता है।
  • धारा 376 से बचाव- दूसरा बात इसमें यह है कि झूठा दुष्कर्म का मुकदमा अगर किसी अभियुक्त पर चलाया गया है ऐसे में बहुत से ऐसे पीड़ित व्यक्ति होते हैं जो अपने पक्ष में बहुत से मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय के द्वारा फैसले सुना दिए जाते हैं तो इस तरह के झूठे मुकदमों में लोग फंस जाते हैं और कई बार इस तरह के सबूतों के आधार पर बरी भी हो जाते हैं। अगर आपको लगता है कि आपके ऊपर बलात्कार का मुकदमा दर्ज अगर हो चुका है और पुलिस आप को पकड़ने के लिए घूम रही है तो आपको अगर लग रहा है कि लड़की ने आपको झूठे केस में सिर्फ पैसों के लालच के लिए फसाया है तो आपको अपने बचाव के लिए कुछ ऐसे सबूत अदालत में पेश करने होंगे। जिससे यह साबित हो सके कि आप को फंसाने का काम लड़की ने पैसों के लिए किया है।
                                          ऐसे में आप FIR को भी कर सकते हैं। FIR को करवाने के लिए आईपीसी सेक्शन 482 के अंतर्गत हाईकोर्ट में आपको एक प्रार्थना पत्र दायर करना होगा।उसके साथ आपको सभी प्रूफ को अटैच करने होंगे।उसके आधार पर आपको हाई कोर्ट से FIR कुवश कर सकता है। बस आपके पास सबूत होने चाहिए।

                                          मुझे आशा है कि लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। यदि आप दिलचस्प विषयों पर इस तरह के और लेख पढ़ना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट indianlawfact.blogspot.com पर जाएँ।




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