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सौराष्ट्र जिसे सोरठ और काठियावाड़ भी कहते हैं, खंभात और कच्छ की खाई के बीच की भूमि, जहाँ कई वीर क्षत्रियों ने जन्म लिया, कई संतो ने अपने ज्ञान से इस भूमि को पवित्र किया, जहाँ के चारण आज भी बहुत गर्व से सोरठ भूमि की गाथा कहते हैं.
सोरठ भूमि का गोहिलवाड, अमरेली जिले के लाठी में भीमजी गोहिल के यहाँ हमीर जी गोहिल का जन्म हुआ . बचपन से ही बहादुर हमीर जी, एक बार खाना खा रहे थे तब इन्हें इनकी भाभी द्वारा ये पता चला की विदेशी आक्रमण कारी सोमनाथ मंदिर लूटने आ रहे हैं. इनकी भाभी ने ताना मारते हुए कहा, आज सोरठ की भूमि पे कोई भी ऐसा क्षत्रिये खून नही बचा, जो विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करके उनसे सोमनाथ मंदिर की रक्षा कर सके. हमीर गोहिल का क्षत्रिय खून खौल उठा, उनसे ये ताना वर्दास्त नही हुआ, और खाने से उठकर, उन्होंने प्रतिज्ञा ली की जीते जी सोमनाथ किसी विदेशी को लूटने नही दूँगा. भाभी को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने उसे रोकने की कोशिश भी की पर वो नही रुके, और अपने साथ दुसरे २०० वीर लोगों को लेकर सोमनाथ की तरफ चल पड़े.
रास्ते में एक जगह विश्राम करते समय इनके कान में मरशिया (वीरों के मरने पर गाये जाने वाले गीत) गीत सुनाई दिया, हमीरजी ने देखा एक बूढी माँ गीत गा रही हैं, उन्होंने पास जाकर पूछा आप किसका मर शिया गा रही हो बा, बूढी माँ बोली अपने बेटे का, अभी १५ दिन पहले ही उसका स्वर्गवास हुआ है. हमीर जी ने कहा बा आप अपने पुत्र का मरशिया गा रहे हो उसी तरह मेरा मरशिया गाओगे, मुझे मरने से पहले अपना मरशिया सुनना है.
बा बोली बेटा, ये क्या कह रहे हो ? एक जवान जिन्दा मर्द का मरशिया गाकर मुझे पाप का भागीदार नही बनना. हमीर जी ने कहा , मैं घर से प्रतिज्ञा लेकर निकला हूँ की जीते जी सोमनाथ विदेशियों को लूटने नही दूंगा, वहां सुल्तान ज़फर की फ़ौज है और यहाँ हम सिर्फ २०० लोग, मरना तो निश्चित है, तो आप बिना किसी संकोच के मरशिया गाओ बा. बा ने कहा सोमनाथ की रक्षा के लिए निकले हो, मैं वहीँ जा रही हूँ, तुझ से पहले पहुचुंगी वहां जाकर देखूंगी की तू किस वीरता से लड़ता है, उस तरह से ही तेरे मरशिया गाऊँगी, और बा सोमनाथ के लिए निकल गयीं.
आगे गिर के जंगल से गुज़रते समय हमीर जी गोहिल का सामना जंगल में रहने वाले भीलों से हुआ, भीलों को जब ये मालूम हुआ कि ये नौजवान दल सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए इस ओर आया है, तो उन्होंने उनका बड़ा स्वागत किया. भील सरदार वेगडा जी भी अपने ३०० भील बंधुयों के साथ इस दल में शामिल हो गए और उन्होंने भी सोमनाथ की रक्षा की कसम ली. भील सरदार वेगडा जी की बेटी से हमीर जी का विवाह हुआ, और उस दिन वहां बहुत खुशी मनाई गयी.
अगले दिन सब अपने हथियारों सहित सोमनाथ मंदिर, प्रभास तीर्थ की और बढ़ चले. वहां पहुंचकर प्रभास का बाहरी क्षेत्र वेगडा जी ने संभाला और मंदिर का क्षेत्र हमीर जी ने अपने हाथों में लिया.
ज़फर खान की सेना जब प्रभास पहुंची तो उनका सामना पहले वेगडा जी भील से हुआ, वेगडा जी भील और उनके भील सिपाहियों ने जमकर टक्कर ली और तीर कमान से तोपों का सामना किया, पर जफ़र खान ने तोपों के गोले उन पर बरसाना चालू रखा, अंत में सभी भील सिपाही सोमनाथ की रक्षा करते हुए शहीद हुए.
ज़फर खान की सेना भीलों से सामना होने के बाद आगे बढ़ी, यहाँ हमीर जी गोहिल से सामना हुआ, जफ़र खान की सेना बराबर तोपों से गोले बरसाती रही फिर भी हमीर जी गोहिल ने ९ दिनों तक डटकर सामना किया. अंत में हमीर जी ने केशरिया करने का निर्णय किया, और सबको युद्ध रचना समझा दी, सब वीरों ने केशरिया साफा सर पे बांधा और किले के दरवाजे खोल कर सब मैदान में आ गए. सब ने वीरों की तरह मैदान में रण कौशल दिखाया, और जब तक लड़ सकने की एक भी उम्मीद उनके आखरी खून की बूंद में रही वे लड़े, अंत में सिर्फ हमीर जी बचे. ज़फर खान ने अपनी सेना को हमीर जी को चारों और से घेरने का हुक्म दिया, सारी सेना अब हमीर जी को घेर कर उनपर वार करने लगी, और लड़ते लड़ते उस वीर ने भी वहीँ, सोमनाथ की शरण में प्राण त्याग दिए.
उसके बाद ज़फर खान सोमनाथ मंदिर को लूटकर, फिर से उसे ध्वस्त करके अपनी राजधानी लौट गया.
જનની જણતો ભગત જણજે, કા આવા શુરવીર અને કા દાતાર, નહિતર રહેજે વાંજણી, મત ગુમાવીશ તારૂ નુર.
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