हिंदुस्तान में मुसलमानों की आबादी लगभग 14% है, लेकिन शिक्षा, रोजगार और राजनीति में उनकी भागीदारी बहुत कम है। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
Related Articles
- सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन: मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा गरीबी और अशिक्षा की चपेट में है। इसकी वजह है कि मुसलमानों के पास संसाधनों की कमी है। उन्हें अच्छी शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुंच नहीं है।
- जातिवाद और सांप्रदायिकता: हिंदुस्तान में जातिवाद और सांप्रदायिकता की समस्या भी मुसलमानों की पिछड़ेपन का एक कारण है। मुसलमानों को अक्सर नौकरियों और अन्य अवसरों से वंचित किया जाता है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी: मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी बहुत कम है। मुसलमानों के पास संसद और राज्य विधानसभाओं में बहुत कम सीटें हैं। इससे उनके हितों को आगे बढ़ाने में मुश्किल होती है।
शिक्षा में पिछड़ापन
हिंदुस्तान में मुसलमानों का शिक्षा स्तर बहुत कम है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुसलमानों में साक्षरता दर केवल 70.9% है, जबकि हिंदुओं में यह 82.1% है। मुसलमानों में लड़कियों की साक्षरता दर लड़कों की तुलना में भी बहुत कम है।
मुसलमानों के शिक्षा में पिछड़ेपन की कई वजहें हैं। एक वजह है कि मुसलमानों के पास अच्छी शिक्षा के अवसरों की कमी है। मुसलमान बहुल क्षेत्रों में अक्सर सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब होती है। इन स्कूलों में शिक्षकों की कमी होती है और संसाधनों का अभाव होता है। इससे मुसलमान छात्रों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती है।
दूसरी वजह है कि मुसलमान परिवारों में शिक्षा को उतना महत्व नहीं दिया जाता है, जितना कि हिंदू परिवारों में दिया जाता है। मुसलमान परिवारों में अक्सर लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रेरित नहीं किया जाता है।
रोजगार में पिछड़ापन
हिंदुस्तान में मुसलमानों का रोजगार दर भी बहुत कम है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुसलमानों में कार्यबल में भागीदारी दर केवल 39.5% है, जबकि हिंदुओं में यह 44.7% है।
मुसलमानों के रोजगार में पिछड़ेपन की कई वजहें हैं। एक वजह है कि मुसलमानों को अक्सर नौकरियों से वंचित किया जाता है। उन्हें नौकरियों में प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
दूसरी वजह है कि मुसलमानों के पास कौशल की कमी होती है। मुसलमानों को अक्सर अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती है, जिससे उन्हें नौकरी के लिए जरूरी कौशल नहीं मिल पाते हैं।
राजनीति में पिछड़ापन
हिंदुस्तान में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी बहुत कम है। संसद में मुसलमानों की संख्या केवल 27 है, जो कुल सदस्यों की संख्या का केवल 4.5% है। राज्य विधानसभाओं में भी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
मुसलमानों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी की कई वजहें हैं। एक वजह है कि मुसलमानों के पास राजनीतिक दलों का समर्थन नहीं है। राजनीतिक दलों अक्सर मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में देखते हैं, लेकिन उन्हें अपने बीच से नेता नहीं उभारते हैं।
दूसरी वजह है कि मुसलमानों में राजनीतिक भागीदारी कम है। मुसलमानों में अक्सर राजनीति में रुचि नहीं होती है।
हिंदुस्तान में मुसलमानों का शिक्षा, रोजगार और राजनीति में पिछड़ापन एक गंभीर समस्या है। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। सरकार को मुसलमानों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे। समाज को भी मुसलमानों के प्रति अपनी सोच बदलने की जरूरत है।
The post अखिर क्यों हैं हिंदुस्तानी मुसलमान शिक्षा, रोजगार और राजनीति में पीछे? appeared first on salahuddinayyubi.com.