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“पूत कपूत तो क्यो धन संचे, पूत सपूत तो क्यो धन संचे” (poot kaput to kyon dhan sanchay) का अर्थ –
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ये हिंदी की प्राचीन समय से चली आ रही कहावतों में से एक है “पूत कपूत तो क्यो धन संचे, पूत सपूत तो क्यो धन संचे” अर्थार्थ अगर बेटा कुपुत्र है तो उसके लिये धन संचय क्यो किया जाय, वो तो उसे गलत कामो मे उडा देगा और अगर पूत सपूत है तब भी धन क्यो संचय किया जाय वो तो स्वयम अपनी काबलियत से आप से अधिक कमा सकेगा.
जिंदगी का एक कड़वा सत्य शंकराचार्य ने बताया कि जब तक आप में कमाने की क्षमता है, तब तक आपके संबंधी आपसे जुड़े रहेंगे। बाद में जब आप जर्जर देह के साथ जीएंगे तो आपके घर में भी आपसे कोई बात नहीं करेगा। यह सत्य इतना सनातन है, जिसको आदमी समझ ले तो उसके जीवन में कभी दुख नहीं आएगा।
लेकिन हम आज के समाज मे देखते है कि लोग अपने बेटो के लिये ही नही ही धन एकत्रित नहीं करना चाहते बल्कि बस चले तो अनेक पीढीयो के लिये संचय करके जाना चाहते है. शायद आज कल के लोग सोचते है कि उनके बाद आने वाले सभी बेटे, पोते निकम्मे होंगे. वे अपने पेट को भरने के काम के योग्य नही होंगे. अतः ऐसे सभी लोग सही/ गलत तरीको से या किसी भी प्रकार से धन जुटाने के प्रयास करते है, पता नही कल कैसा हो?
इन लोगो को कही संतोष. शांति नज़र नही आती. यही भ्रष्टाचार का मूल कारण है. इसी ने पैसे की ताकत, पैसे के अहम को भी बढा दिया है. लोग मूल्यो को भूल रहे है. भ्रस्ट रास्तो से धन संचय करने वालो को एक बात समझना चाहिये कि उनका धन जिस किसी पीढ़ी, बेटों आदि में जायेगा न तो उनको सुख देगा और न आपको। अगर संचय करना है तो शिक्षा का संचय करे अपने लिए और अपने बच्चो के लिए।
जिस तरह बड़े महल छोड़ कर जाने वाले राजाओं ने क्या कभी कल्पना की होगी की उनकी आने वाली पीढिया उस महल में कभी नहीं रहेगी जिसको बनवाते बनवाते उन्होंने ज़िंदगी खपा दी। आज परिस्तिथि बदल जाने से उनमे कइयो ने महल को होटलों में बदल दिया है। और कई महल खंडर के रूप में है। क्युकी उनके बच्चों ने उनकी देखभाल नहीं की
धन आपके पास उतना जरूर होना चाहिए की वर्तमान में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सके। न की भविष्य की चुनौती के लिए।
पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय।
विद्यार्थियों के लिए प्रश्न –
पूत सपूत तो क्यों धन संचय पूत कपूत तो क्यों धन संचय में कौन सा अलंकार है?
जब किसी शब्द-समूह अथवा पूरे वाक्य की आवृत्ति ही एक से अधिक बार हो, तो वहाँ पर लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :
पूत सपूत तो क्यों धन संचय,
पूत कपूत तो क्यों धन संचय।
या
मैं निज उर के उद्गार लिये फिरता हूं,
मैं निज उर के उपहार लिये फिरता हूं,
यहां पर लगभग पूरी पंक्ति ही दोहरा दी गयी है। सिर्फ एक पक्ति में एक शब्द ही अलग है। Hindi Literature में से कुछ ऐसी ही जानकारी और पढ़े। आप इसकी पीडीऍफ़ फ्री में यहाँ से पढ़ सकते है।
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